ओबीसी आरक्षण बचाओ काफी समय से चर्चाओं में है, जिसे लागू करने की बात कई सालों से चल रही है। बताया जा रहा है, कि पिछले साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह घोषणा करते हुए कहा था कि, राज्य में बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं होंगे। जबकि विपक्षी दलों ने योगी सरकार को पिछड़ा वर्ग विरोधी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ा। वहीं, हाल ही में हुए यूपी निकाय चुनाव में भी ओबीसी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा रहा। वहीं, हाल में कई परीक्षाओं के रिजल्ट्स की घोषणा हुई है, जिसमें ओबीसी, एससी और एसटी का कटऑफ जनरल के बराबर आया है ताकि 50% जनरल सीट पर एक भी ओबीसी, एससी और एसटी नहीं पहुंच सके। इसका मतलब 50% जनरल और 10% EWS को मिलाकर 60% सीट जनरल के लिए रिज़र्व किया जा रहा है।
यही वजह है कि भारत में ओबीसी आरक्षण को लेकर माहौल तेज़ी से गरमाया है। इसमें कोई संशय नहीं है कि आरक्षण जरूरी है ताकि पिछड़े वर्ग को समान अवसर प्रदान किए जा सके और मुख्यधारा से पिछड़े हुए व्यक्ति तक सुविधाओं को पहुंचाया जा सके क्योंकि ये वो लोग हैं जो मुख्यधारा के लोगों से प्रतिस्पर्धा तभी कर सकते है जब उन लोगों को विशेष सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाए। क्योंकि इन लोगों के साथ भूतपूर्व समय में शोषण हुआ था, जिसकी वजह से वो मुख्यधारा से पिछड़ गए। समानता सुनिश्चित करने के लिए अर्थात सभी लोगों को योग्यता के आधार पर आंकने से पहले उन्हें समान स्तर पर लाया जाना चाहिए।
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आरक्षण के माध्यम से प्रत्येक समुदाय के जरूरतमंद व्यक्ति की मदद होती है और आरक्षण को लेकर जागरूकता पैदा करने की भी आवश्यकता है क्योंकि जहां अनारक्षित वर्ग प्रावधान का विरोध करते रहते हैं, वहीं आरक्षित वर्ग के भीतर के सबसे जरूरतमंद वर्गों को शायद ही इस बात की जानकारी होती है कि प्रावधान से कैसे लाभ उठाया जाए या यहां तक कि ऐसे प्रावधान मौजूद हैं या नहीं। कुछ जाति विशेष के लोग आरक्षण पाने के लिए सड़को पर उतर जाते है। आंदोलन करते है और देश की सम्पत्ति का नुकसान करते है। आरक्षण के नाम पर खूब राजनीति भी होती है। लेकिन सही बात कहने से नेता भी डरते है। डिग्री की कीमत और बेरोजगारों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
इसी आरक्षण की आग पर तुष्टिकरण की राजनीति, वोट बैंक की राजनीति, जातिवादी राजनीति की रूपी रोटियां सेंकी जाती है, और सेंकी जा रही है और फिर हाल-फिलहाल में आया, जाति आधारित जनगणना का जुमला आरक्षण में और लोगों के विकास व जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में कितना मदद करेगा ये तो राम ही जानें। लेकिन राजनेताओं की मज़बूत बैसाखी जरूर बन जाएगा। और फिर किसी जाति के बहुसंख्यक को तवज्जो मिलेगी और फिर अल्पसंख्यक मुख्यधारा के पिछड़े और गहरे गर्त में धकेल दिया जाएगा।
संविधान में ओबीसी सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्णित किया गया है, और भारत सरकार उनके सामाजिक और शैक्षिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए हैं – उदाहरण के लिए, ओबीसी सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 27% आरक्षण के हकदार हैं। संविधान में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने वाला अनुच्छेद 15(4), 15(5), समानता के सिद्धांत के लिए अनुच्छेद 15(1) का अपवाद नहीं, विस्तार है।
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अनुच्छेद 15(1) राज्य को केवल धर्म, वर्ग, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर अपने नागरिकों के साथ भेदभाव करने से रोकता है। शैक्षणिक संस्थानों में उनके प्रवेश के संबंध में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने के लिए संविधान (93 वां संशोधन) अधिनियम 2005 में अनुच्छेद 15 में खंड (5) डाला गया था। अनुच्छेद 15(5) में इस अनुच्छेद में या अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (जी) में कुछ भी राज्य को नागरिकों के सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए कानून द्वारा कोई विशेष प्रावधान करने से नहीं रोकेगा या जहां तक ऐसे विशेष प्रावधान निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में उनके प्रवेश से संबंधित हैं, चाहे वे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त हों या गैर-सहायता प्राप्त, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अलावा, जो अनुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट हैं।
वास्तविक समानता इस तथ्य को स्वीकार करती है कि केवल समानों के बीच समानता है और असमानों के साथ समान व्यवहार करना असमानता को कायम रखना है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, “अनुच्छेद 15 (4) और अनुच्छेद 15 (5) अनुच्छेद 15 (1) में निर्धारित समानता के अधिकार की गारंटी के अलावा और कुछ नहीं हैं।” OBC आरक्षण को लेकर यूपी सरकार काफ़ी जोश में है क्या ऐसा मान लिया जाए कि इन सब का कारण बन 2024 के लोकसभा चुनाव है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि राज्य में बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव नहीं होंगे। जबकि विपक्षी दलों ने योगी सरकार को पिछड़ा वर्ग विरोधी बता रहे है।
वैसे यूपी में पिछड़ा वर्ग आयोग 1993 से है, लेकिन इस आयोग का काम मूलत: ओबीसी जातियों में शैक्षणिक पिछड़ेपन का आकलन करना है न कि राजनीतिक आरक्षण देना। OBC आरक्षण से संबंधित, 2 अक्तूबर, 2017 को राष्ट्रपति के अनुमोदन के उपरांत संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत गठित इस आयोग को रोहिणी आयोग (Rohini Commission) भी कहा जाता है। इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण और उनके लिये आरक्षित लाभों के समान वितरण का काम सौंपा गया था। वर्ष 2015 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes- NCBC) ने सिफारिश की थी कि OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये। NCBC के पास सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में शिकायतों व कल्याणकारी उपायों की जांच करने का अधिकार है।
केंद्र सरकार ने OBC अनुच्छेद 16 (4) के लिये यूनियन सिविल पदों और सेवाओं में 27% सीटें आरक्षित की हैं। वर्ष 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को OBC के बीच क्रीमी लेयर (उन्नत वर्ग) को बाहर करने का निर्देश दिया। 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जो पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय था।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण तय करने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए अधिसूचना जारी करने की अनुमति दे दी।दूसरी तरफ़ नौकरी के मामले में भी ओबीसी आरक्षण के मामले में बहुत कम पद दिए गए हैं।आरक्षण उचित है, जहां तक यह समाज के दलित और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लाभ के लिए उचित सकारात्मक भेदभाव प्रदान करता है।
क्रीमी लेयर के आधार से अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण के लाभ से बाहर रखा गया है। जिन परिवारों की वार्षिक आय 8 लाख रूपये से ज्यादा है। उनको सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण नहीं दिया जाता है। ऐसे लोग क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते है। क्रीमी लेयर की शुरूआत 1993 से हुई। आरक्षण के नीतियों में समय-समय पर बदलाव होना चाहिए ताकि सही व्यक्ति तक आरक्षण का लाभ पहुंच सके। बहुत लोगो को आरक्षण गलत लगता है, जिन लोगो को आरक्षण दिया जाता है कभी जाकर उनके जीवनस्तर को देखे, उनके शिक्षास्तर को देखे, उनके आर्थिक स्तर को देखे। तब आपको यकीन हो जायेगा कि आरक्षण देना सही है।
यह रिपोर्ट – दीपाली (दिल्ली विश्व विद्यालय, हिंदी पत्रकारिता की छात्रा) द्वारा लिखी गई है।
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