चुनावी मुद्दों में क्यों शामिल नहीं होती बेहतर शिक्षा व्यवस्था ?

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कुछ तस्वीरें ऐसी होती है जो कभी नहीं बदलती। देश में प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है जो बदहाल स्कूली शिक्षा व्यवस्था का प्रतिबिंब हमारे सामने रखती है ! ASER की 2018 व 2021 की रिपोर्ट कुछ ऐसी ही तस्वीर हमारे सामने रखती है।

(Annual Status of Education Report)  ने 2018 के बाद नवंबर 2021 को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की। यह रिपोर्ट ग्रामीण भारत में 5-16 आयु वर्ग के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति बताती है।  जिसमें बुनियादी पढ़ने और अंकगणितीय कार्यों को करने की क्षमता भी शामिल है।

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद शिक्षा के स्तर में कुछ सकारात्मक बदलाव हुए हैं। मसलन प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का नामांकन 94 फ़ीसदी हो गया है। यकीनन वह दिन भी जल्द आएगा जब कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा।

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शिक्षा बुनियादी जरूरत है जिसका सवाल उसकी गुणवत्ता से है। लेकिन हमारे देश में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा की गुणवत्ता आजादी के 70 दशक बाद भी निराशाजनक है। देशभर में लगभग 13 लाख सरकारी स्कुल है जिनमें 1 लाख 50 हजार 630 स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे हैं। यह “शिक्षा का अधिकार” कानून के उस विधान का उल्लंघन है जिसमें कहा गया है कि हर 30 से 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना अनिवार्य है !

2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश के अधिकतर स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं है। और जिनमें है भी वह उपयोग करने लायक नहीं है । बताते चलें कि लड़कियों के पढ़ाई छोड़ने का यह सबसे मुख्य कारण है ! ASER ने 2021 में कोविड -19 महामारी के कारण फोन-आधारित सर्वेक्षण किया, क्योंकि क्षेत्र सर्वेक्षण संभव नहीं था। जिस कारण 2018 की भांति जमीनी हकीकत सामने नाही आ पायी।

रिपोर्ट के अनुसार प्राथमिक स्कूलों में 9 लाख, तो माध्यमिक स्कूलों में 1 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं। भारत में स्कूली शिक्षा का अंतिम पड़ाव कक्षा 8 को माना जाता है। इस स्तर पर विद्यार्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें कम से कम बुनियादी कौशल में महारत हासिल हो लेकिन असर 2018 की रिपोर्ट के अनुसार कक्षा 8 के 27 फीसदी छात्र कक्षा 2 का पाठ पढ़ने में भी असक्षम है। यह आंकड़ा 2016 से जस का तस बना हुआ है !

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कक्षा 5 के 52 फ़ीसदी तो कक्षा 7 के 68 फीसदी छात्र कक्षा दूसरी की किताब नहीं पढ़ सकते हैं ! जबकि कक्षा 5 के 72 फीसदी छात्र 100 को 2 से भाग नहीं दे पाते।

ग्रामीण भारत में स्कूली शिक्षा की स्थिति चिंताजनक विषय है जहां चार में से एक छात्र कक्षा 8 में पढ़ाई छोड़ देता है। वहीं उनमें से 55 फ़ीसदी छात्र आधारभूत कौशल गणित नहीं सीख पाते हैं ! यहाँ तक की आधुनिकता के दौर में 78 फीसदी से ज्यादा स्कूलों में बच्चों के लिए कम्प्यूटर उपलब्ध नहीं है।

हालाँकि असर 2021 की रिपोर्ट के अनुसार 2018 और 2020 के बीच सरकारी स्कूलों में नामांकित बच्चों के अनुपात में समग्र वृद्धि हुई थी। नामांकन 64.3% से बढ़कर 65.8% हो गया। लेकिन 2021 में नामांकन अचानक बढ़कर 70.3% हो गया।

लेकिन क्या शिक्षा स्कूल में दाखिले भर का मामला है ?

भारत में 10 फ़ीसदी आबादी 14 से 18 साल की है। इन बच्चों को बुनियादी शिक्षा से वंचित रखना एक प्रकार से भावी नागरिक को देश की मुख्यधारा में प्रवेश से वंचित रखना है। वर्तमान स्कूली शिक्षा की दुर्दशा मजबूत अर्थव्यवस्था व विकासशील देश के प्रयत्नों पर कुठाराघात है। रिपोर्ट के बाद सरकारों से उम्मीद है कि देश की प्राथमिक व माध्यमिक स्तर की शिक्षा की तस्वीर सुधारने के लिए बड़ी पहल की जाएगी जिससे छात्र बुनियादी शिक्षा प्राप्त कर बेहतर राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सकें !

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