दबंग प्रधान का कहर: दलित मजदूर के बेगारी से मना करने पर की पीट-पीटकर हत्या, फावड़े से हमला

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बाराबंकी में ग्राम प्रधान ने दलित मजदूर विश्राम गौतम को बेगारी से मना करने पर फावड़े से पीट-पीटकर मार डाला। घायल विश्राम की अस्पताल में मौत हो गई। पत्नी की तहरीर पर पुलिस ने प्रधान के खिलाफ केस दर्ज कर कार्रवाई शुरू की है।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के मोहम्मदपुर खाला थाना क्षेत्र में एक दलित मजदूर की हत्या ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया है। अमेरा गांव के रहने वाले 50 वर्षीय विश्राम गौतम को ग्राम प्रधान गेंदलाल चौहान उर्फ गुड्डू ने बेगारी से मना करने पर जानलेवा हमले का शिकार बनाया। घटना तब हुई जब प्रधान ने मजदूर से मनरेगा के कार्य का वादा करके उसे अपने साथ बुलाया और फिर फजेहतापुर गांव में पुआल (धान का अवशेष) भरने के काम में लगाने की कोशिश की। मजदूर विश्राम ने इस बेगारी का विरोध किया, जिस पर प्रधान को गुस्सा आ गया और उसने फावड़े के डंडे से मजदूर पर बर्बर हमला कर दिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया।

बेरहम पिटाई और मदद की बजाय प्रधान की बेरुखी

हमले के बाद प्रधान ने घायल विश्राम को बेहोशी की हालत में घर छोड़ दिया, लेकिन कोई मदद नहीं दी। विश्राम की पत्नी रामप्यारी ने पति की बिगड़ती हालत देख कर उन्हें फतेहपुर के सीएचसी में भर्ती कराया। वहाँ से हालत में सुधार न होने के कारण उन्हें जिला अस्पताल और बाद में लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां सोमवार देर शाम विश्राम की मौत हो गई। इस घटना से परिवार में कोहराम मच गया और रामप्यारी ने प्रधान के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

गांव में गुस्से का माहौल, पुलिस ने दर्ज किया मामला

रामप्यारी की तहरीर पर पुलिस ने प्रधान गेंदलाल चौहान के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट सहित हत्या के प्रयास और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस अधिकारी अनिल सिंह ने बताया कि आरोपी प्रधान की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं। विश्राम के शव को लेकर जैसे ही मंगलवार की शाम गांव पहुँचा, ग्रामीणों में आक्रोश फूट पड़ा। एक घंटे की गहमागहमी के बाद पुलिस के समझाने-बुझाने पर विश्राम का अंतिम संस्कार किया गया। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में इस तरह की घटना दलित समाज के प्रति नफरत और दबंगई की मिसाल है।

गरीबी में जीवनयापन, मजदूरी ही सहारा

विश्राम अपने परिवार के साथ बेहद गरीब हालत में झोपड़ी और कच्चे मकान में रहते थे। चार भाइयों में सबसे बड़े विश्राम अपने परिवार के साथ मजदूरी कर जीवनयापन कर रहे थे। वे अपनी पत्नी के साथ मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटा पाते थे। उनका परिवार मनरेगा के जरिए काम मिलने की उम्मीद कर रहा था, पर प्रधान ने उन्हें बेगारी में झोंकने का प्रयास किया और मना करने पर उनकी जान ले ली।

दलितों पर बढ़ता अत्याचार और प्रशासन की उदासीनता

इस घटना ने दलित समुदाय में असुरक्षा और भेदभाव का एक बार फिर से प्रमाण दिया है। विश्राम जैसे मजदूर, जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, दबंगों के सामने असहाय हो जाते हैं। पुलिस ने कार्रवाई का आश्वासन दिया है, लेकिन दलित समुदाय के लोग न्याय की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन को इस तरह के मामलों पर सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि आगे किसी और गरीब और मजबूर व्यक्ति को दबंगों के कहर का शिकार न बनना पड़े।

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