बुद्ध और कार्ल मार्क्स पर बाबा साहेब अंबेडकर के क्या विचार थे?….जानिए

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डॉक्टर बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महु जिले में हुआ था। बाबा साहेब अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन लोगों के कल्याण में समर्पित कर दिया था। एक लेखक के रुप में भी बाबा साहेब अंबेडकर ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बाबा साहेब अंबेडकर ने आज के दिन 2 दिसंबर को 1956 में अपनी अंतिम पांडुलिपि, “द बुद्धा या कार्ल मार्क्स” को पूरा किया था। आज हम अपने इस लेख में जानेंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर ने इस पांडुलिपि में बुद्ध और कार्ल मार्क्स पर क्या कहा था?

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आधुनिक और पुरातन :

 

बाबा साहेब अंबेडकर एक विचारक और चिंतक थे। उन्होंने बुद्ध और कार्ल मार्क्स दोनों को पढ़ा और समझा भी था। लेकिन हम आपको बता दें कि बुद्ध और कार्ल मार्क्स के बीच तकरीबन 2831 वर्ष का अंतर था। दोनों का संबंध भी अलग-अलग क्षेत्र से था। जैसे कार्ल मार्क्स का संबंध राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, शिल्पकार से था। जबकि बुद्ध को केवल धर्म का संस्थापक माना जाता था। बुद्ध का राजनीति और अर्थशास्त्र से कोई संबंध नहीं था। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि मार्क्स आधुनिक थे जबकि बुद्ध पुरातन हैं।

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ऐसे में बहुत से लोग हो सकते हैं जो बुद्ध और मार्क्स की तुलना पर हँसी उड़ा सकते हैं कि आखिर मार्क्स बुद्ध की शिक्षा से क्या सीख सकते हैं? क्या दोनों की एक दूसरे से तुलना संभव भी है? बाबा साहेब अंबेडकर ने अपनी अंतिम पांडुलिपि “बुद्ध और कार्ल मार्क्स” में दोनों की तुलना करते हुए दोनों के विचारों के बारें में बताया है।

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DOCTOR BABA SAHEB AMBEDKAR, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

बुद्ध के विचार क्या थे?

बुद्ध का सिद्धांत अहिंसा से जुड़ा है। उनकी शिक्षा और उपदेशों का सार अहिंसा को ही माना जाता है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस बात से अनजान हैं कि बुद्ध ने जो उपदेश दिए हैं वह काफी व्यापक हैं। इनका महत्व अहिंसा से भी बढ़कर है। बुद्ध के विचार इस प्रकार है कि :-

• मुक्त समाज के लिए धर्म ज़रुरी है।
• ईश्वर को धर्म का केंद्र मानना गलत है।
• आत्मा की मुक्ति और मोक्ष को धर्म का केंद्र मानना गलत है।
• धर्म के लिए पशु का बलिदान करना गलत है।
• वास्तविक धर्म व्यक्ति के दिल में होता है शास्त्रों में नहीं।
• मनुष्य और नैतिकता धर्म का केंद्र होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो वह धर्म केवल एक अंधविश्वास है।

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• धर्म को जीवन के तथ्यों से जुड़ा होना चाहिए सिद्धांतों से नहीं।
• कुछ भी स्थायी नहीं होता सब निरंतर बदलता रहता है।
• युद्ध गलत है जब तक कि यह सत्य और न्याय के लिए न हों।
• सभी मनुष्यों के लिए शिक्षा ज़रुरी है। जिस तरह जीवित रहने के लिए
भोजन की ज़रुरत होती है। ठीक वैसे ही मनुष्य के लिए ज्ञान ज़रुरी है।
• कुछ भी अंतिम नहीं है।
• सभी लोग समान है।

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कार्ल मार्क्स के क्या विचार थे?

कार्ल मार्क्स के विचार के बारे में बात करें तो इनका उद्देश्य यह साबित करना था कि उनका समाजवाद “वैज्ञानिक” था। कार्ल मार्क्स पूंजीपतियों के खिलाफ थे। जिन सिद्धांतों को मार्क्स ने प्रस्तुत किया था उनका उद्देश्य कुछ और नहीं बल्कि इस दावे को साबित करना था कि समाजवाद वैज्ञानिक प्रकार का था, स्वप्नदर्शी अव्यवहारिक नहीं। मार्क्स के विचार इस प्रकार है:-

• समाज दो वर्गों में विभाजित है। पहला मालिक और दूसरा श्रमिक।
• मार्क्स का कहना था कि दर्शन का उद्देश्य दुनिया का पुनर्निर्माण करना है।
• हमेशा दो वर्गों के बीच एक वर्ग विवाद होता है।
• जो शक्तियां इतिहास की दिशा को निश्चित करती हैं वह मुख्य रुप से आर्थिक होती हैं।
• मालिक श्रमिकों का शोषण करते हैं।
• यह शोषण उत्पादन के साधनों के राष्ट्रीयकरण से और निजी संपत्ति के उन्मूलन से समाप्त किया जा सकता है।

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BOOK, IMAGE CREDIT BY SOCIAL MEDIA

 

• यह शोषण मजदूरों की समस्याओं को बढ़ाता है।
• इन समस्याओं से मजदूरों के बीच क्रांतिकारी भावना होती है जिसकी वजह से क्लास संघर्ष में वर्ग संघर्ष का रुपांतरण हो जाता है।
• मालिकों की संख्या के मुकाबले मजदूरों की संख्या ज्यादा है ऐसे में मजदूरों के द्वारा राज्य को हथियाना स्वाभाविक है। इसे मार्क्स ने “सर्वहारा वर्ग की तानाशाही” कहा है।
• इन तत्वों का प्रतिरोध नहीं किया जा सकता, इसलिए समाजवाद ज़रुरी है।

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बुद्ध और कार्ल मार्क्स पर बाबा साहेब अंबेडकर ने क्या कहा था?

 

कुछ भी स्थायी नहीं:– बाबा साहेब अम्बेडकर ने कार्ल मार्क्स की तुलना बुद्ध से की थी। उनका कहना था कि बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद दोनों ही इस बात से सहमत नहीं थे कि ब्रह्मांड के निर्माण में ईश्वर के हस्तक्षेप शामिल है। बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि बुद्ध और कार्ल मार्क्स दोनों इस बात से सहमत थे कि दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है। सब बदलता रहता है। बस फर्क इस बात का था कि दोनों ने इसे अलग नाम दिए थे। मार्क्स ने इसे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद कहा जबकि बुद्ध ने ‘अनित्त’ कहा।

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तानाशाही:- बौद्ध धर्म ने समाज से दुख दूर करने के उपाय खोजे। जबकि मार्क्स ने गरीबी और उसके कारण होने वाले शोषण से लड़ने का रास्ता दिखाया था। अम्बेडकर मार्क्स की सभी शर्तों से सहमत थे लेकिन वह मार्क्स की सर्वहारा तानाशाही के सिद्धांत के सख्त खिलाफ थे।

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KARL MARX, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

 

लोकतांत्रिक परंपरा:- अपनी पुस्तक “बुद्ध या कार्ल मार्क्स” में बाबा साहेब अम्बेडकर ने बताया कि उनका दार्शनिक आधार बौद्ध धर्म में है। उन्होंने यह भी बताया कि गौतम बुद्ध न केवल महाजनपदों की लोकतांत्रिक परंपराओं में विश्वास करते थे, बल्कि उन्होंने उसे अपने दर्शन के रूप में भी शामिल किया था। इस पर बाबा साहेब अंबेडकर ने बताया कि बुद्ध का विचार था कि आधुनिक समय में किसी भी प्रकार की तानाशाही का कोई स्थान नहीं होगा और समाज बुद्ध के दिनों से आगे बढ़ जाएगा।

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बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद:- मार्क्सवाद पर अंबेडकर का कहना था कि मार्क्सवाद आर्थिक समानता तो हासिल कर सकता है। लेकिन जातिगत व्यवस्था से बनी जो जातिगत बाधाएं हैं वह भारत में असमानता को उत्पन्न कर सकती हैं। जिसकी वजह से समानता में बाधा आ सकती है। तो इस पर बाबा साहेब अंबेडकर ने जोर देकर कहा था कि “बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद के बीच कई समानताएं हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक समानता के लिए भारतीयों द्वारा किये जा रहे संघर्ष में बौद्ध धर्म और मार्क्सवाद की सख्त जरूरत है”।

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