उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के करहल क्षेत्र में दलित समुदाय के एक युवक पर जानलेवा हमला होने का मामला सामने आया है। घटना 18 नवंबर की शाम की है, जब गांव राजपुर निवासी अनुसूचित जाति के रीशू जाटव ने बसपा के लिए प्रचार किया था। रीशू जब कस्बे के बाजार किसी काम से जा रहे थे, तभी जैन इंटर कॉलेज के पास कुछ युवकों ने उन्हें रोक लिया। आरोपियों में मनोज यादव, वेद सिंह, माधौ सिंह, विमल कुमार यादव, अजय यादव और सुरजीत सिंह के नाम सामने आए हैं। इन सभी ने रीशू को घेरकर जातिसूचक गालियां दीं और कहा, “तू बसपा का बड़ा नेता बनता है। तुझे ककरैय पलोखरा में बसपा के लिए वोट मांगते देखा गया है।”
विरोध करने पर तमंचे से फायरिंग
जब रीशू ने इन आरोपों का विरोध किया, तो आरोपियों ने तमंचों से उन पर फायरिंग कर दी। गोली चलने की आवाज सुनकर आसपास के लोग घटनास्थल पर पहुंचे। लोगों की भीड़ देखकर आरोपी जान से मारने की धमकी देते हुए वहां से भाग निकले। यह हमला केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि दलित समुदाय के खिलाफ हिंसा का गंभीर मामला है, जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया है।
पुलिस में मामला दर्ज, आरोपियों की तलाश जारी
पीड़ित रीशू जाटव ने मामले की शिकायत पुलिस से की, जिसके बाद पुलिस ने आरोपी मनोज यादव, वेद सिंह, विमल यादव, अजय यादव और अन्य के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस का कहना है कि आरोपियों की तलाश जारी है, और जल्द ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
दलितों पर बढ़ते हमले: कब थमेगा यह अत्याचार?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि दलित समुदाय पर होने वाले अत्याचार कब थमेंगे। यह घटना उस समय की है जब देशभर में संविधान और समानता की बात की जाती है। दलित युवक पर फायरिंग और जातिसूचक गालियों से यह साफ जाहिर होता है कि सामाजिक भेदभाव और राजनीतिक हिंसा अब भी समाज में जड़ें जमाए हुए हैं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं और दलित नेताओं का आक्रोश
इस घटना के बाद दलित नेता और सामाजिक कार्यकर्ता खुलकर सामने आए हैं। सूरज कुमार बौद्ध ने ट्वीट करते हुए लिखा, “अब तुम्हारी हर गुंडागर्दी का जवाब हम कानून से देंगे। बाबासाहेब के अनुयायी जुल्म नहीं सहेंगे।” यह संदेश न केवल आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करता है, बल्कि समाज को जागरूक करने की भी कोशिश है।
राजनीतिक दलों की चुप्पी पर सवाल
दलित समुदाय से जुड़े लोगों ने इस मामले में राजनीतिक दलों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए हैं। लक्ष्मण यादव, क्रांति कुमार और योगेंद्र यादव जैसे नेता, जो अक्सर सामाजिक न्याय की बात करते हैं, इस मामले में मौन हैं। क्या यही उनका संविधान की रक्षा का तरीका है?
राजनीतिक प्रचार बन रहा दलितों के लिए खतरा
इससे पहले भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां दलित समुदाय के लोगों को उनके राजनीतिक झुकाव के कारण हिंसा का सामना करना पड़ा। यदि सपा को वोट नहीं दिया गया, तो दलित लड़की की हत्या कर दी गई। अब बसपा का प्रचार करने पर दलित युवक को गोली मारी गई। यह स्पष्ट करता है कि राजनीतिक प्रचार करना दलित समुदाय के लिए खतरा बनता जा रहा है।
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दलित समुदाय की एकजुटता का संदेश
इस घटना ने दलित समुदाय को एक बार फिर एकजुट होने की प्रेरणा दी है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाबासाहेब अंबेडकर द्वारा दिए गए अधिकारों के लिए अब कानूनी लड़ाई तेज की जाएगी। ऐसी घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि जब तक समाज में समानता और न्याय स्थापित नहीं होता, तब तक संघर्ष जारी रहेगा।
ये घटना पूरे दलित समाज पर एक मानसिकता पर हमला है। पुलिस को जल्द से जल्द आरोपियों को गिरफ्तार कर सख्त सजा देनी चाहिए ताकि यह घटना दूसरों के लिए एक उदाहरण बने। दलित समुदाय ने साफ कर दिया है कि वे अब किसी भी तरह की हिंसा और भेदभाव सहन नहीं करेंगे।
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