उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 17 फरवरी 2021 को एक दलित परिवार की 3 बेटियों को कथित तौर पर जहर दे दिया गया जिनमें से दो की मौत हो गयी जबकी एक की जान बच गई. घटना को लगभग 2 साल होने वाले है लेकिन पीड़ित परिवार की परेशानियां अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है. पीड़ित परिवार की माने तो अब तक अदालती में केवल एक बार सुनवाई हुई है.
17 फरवरी को क्या हुआ था:
17 फरवरी 2021 यह वो दिन है जिसे शायद पीड़ित परिवार जिंदगी भर नहीं भुल पाएगा. पिता पड़ोस के गाँव में मजदूरी करने गए हुए थे. जब लौटे तो तो देखा कि गाँव वाले उनकी 17 साल की बेटी और उसकी 13 साल की चचेरी बहन को ढूढ रहे थे। पता चला की तीनों बच्चियां बेहोशी की हालत में है. सभी के हाथ दुपट्टे से बंधे थे। जिसके बाद तीनों को अस्पताल ले जाया गया. जहां उनमें से 2 की मौके पर मौत हो गयी. वहीं एक की जान बच गई।
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न्याय के लिए अब भी इंताज़ार कर रहा पीड़ित परिवार:
पीड़ित परिवार आज भी न्याय की गुहार लगा रहा है. लड़कियों के परिजनों का कहना है कि लगभग दो साल होने को आए हैं और अदालती कार्यवाही कछुए की चाल से चल रही है. पिछले 22 महीनों में केवल एक अदालती कार्यवाही हुई है।
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आपको बता दे कि मुख्य आरोपी विनय फिलहाल न्यायिक हिरासत में है, जबकि नाबालिग आरोपी बाल सुधार केंद्र में है। “अभी तक इस मामले में PW1 (प्राथमिक गवाही) का बयान हुआ है. जिस समय पीड़िता का बयान दर्ज किया जाना था। उस समय अदालत में हड़ताल थी. वहीं कोरोना के कारण कोर्ट की सुनवाई भी ऑनलाइन हो रही थी.
क्या था पूरा मामला:
आपको बता दे कि आरोपी विनय ने लॉकडाउन के दौरान 17 वर्षीय लड़की जो हमले में बच गई थी उससे दोस्ती की थी लेकिन जब लड़की ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर अपना फोन नंबर देने से इनकार कर दिया, तो उसने उसे मारने का फैसला किया. जिसके चलते उसने पानी की बोतल में कीटनाशक मिलाकर लड़की को पिलाने की कोशिश की लेकिन अन्य दो लड़कियों ने भी उसी पानी की बोतल से पानी पी लिया जिसमें कीटनाशक मिला हुआ था। विनय के बयान के अनुसार कि उसने अन्य दो को पानी पीने से रोकने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। जब लड़कियां बेहोश हो गईं, तो वह घबरा गया और मौके से अपने साथी के साथ भाग गया.
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बीमार हैं न्यायिक प्रणाली?
घटना पर नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच की कार्यकर्ता शोभना स्मृति ने कहा है कि, “पिछले लगभग दो वर्षों में मामले को फैसले की दिशा में प्रगति करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.“ उनके अनुसार मामलें मे जो देरी हुई वो देश में न्यायाधीशों और अदालतों की कमी के कारण हुई. “इस देश में न्याय वितरण प्रणाली को बीमार करने वाली बहुत सी चीजें हैं. वहीं दलित, ग्रामीण क्षेत्रों में समाज के सबसे शोषित वर्गों में से हैं। ऐसे मामलों में तेजी से कार्यवाही होनी चाहिए. ”
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