मायावती का राजनीतिक पतन और चन्द्रशेखर आज़ाद का बढ़ता बहुजन कारवां।

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ब्राह्मण सम्मेलन मायावती जी का मास्टर स्ट्रोक है, उनके कितना समझदार भाजपा वाले नहीं हैं। अब भाजपा का पत्ता यूपी में साफ है क्योंकि ब्राह्मण सम्मेलन करवाकर वह ब्राह्मण व दलित वोटों से यूपी में सरकार बना लेंगी। और भाजपा लाचार रहेगी। यह है बसपाई समर्थकों की मज़बूत व मासूम धारणा।

भाजपा मन्दिर-मस्जिद में मंदिर की लड़ाई जीती व मन्दिर बनवा रही है। इसके लिये उसके लोग 7 दशक से लगे हुये हैं। देश व राज्य में सवर्ण-SC-ST-OBC-मुस्लिम वोटों के योगदान से भाजपा केंद्र व राज्य में सरकार बनाई है। मायावती जी के पास चमार/जाटव के 50% वोटों के अलावा किसी भी जाति का कैडर वोट नहीं है। लखनऊ व दिल्ली दोनों दूर हैं।

कहते हैं समय सबका हिसाब करता है, अगर चन्द्र शेखर आज़ाद बसपा में होते तो और तेजी से आगे बढ़ रहे होते तो मायावती जी द्वारा बाकी नेताओं की तरह उन्हें पार्टी का ग़द्दार व दलाल कहकर निकाल दिया होता और बसपाई भक्त यही प्रचार करके उनकी ख्याति और योगदान दोनों ख़त्म कर देते। लेकिन इस बार दांव उल्टा पड़ गया। मायावती जी ने चन्द्र शेखर आज़ाद को भाजपा का एजेंट बोलीं ताकि आज़ाद को समाज नकार दे। लेकिन दांव इतना उल्टा पड़ा कि चन्द्र शेखर आज़ाद ज्वालामुखी की उठते ही जा रहे हैं। चन्द्र शेखर आज़ाद को कैसे ख़त्म करें अब मायावती के पास एक फार्मूला और है अपने बाद अपने भातीजे को लॉन्च करना क्यों कि बहुजन व समता मूलक दर्शन उनके लिए कुछ नहीं है वह लोकतंत्र नहीं राजतंत्र लाना चाहती हैं। अब यह भी कहेंगे कि बाकी लोग लोग अपने परिवार को राजनीति में लाये और राज्याभिषेक किये तो मायावती जी क्यों नहीं ? उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि मायावती जी बहुजन दर्शन को मानती हैं जो कि समता मूलक है। फिर जब वह अपने ही भी भतीजों को पार्टी का मुखिया बनायेंगी तो बहुजन दर्शन की समतामूलक अवधारणा का क्या होगा ? अर्थात राजा का ही परिवार राजा बनेगा। फिर बाकी कार्यकर्ताओं नेताओं का नम्बर कब आयेगा को कई दशक से बसपा के लिए कार्य कर रहे हैं ?

ब्राह्मण सम्मेलन का सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ कि बहुजन तबका अब मंदिर उदघाटन के बाद रामलला के दर्शन करने बड़ी संख्या में जायेगा। जिसका समाज में धार्मिक वर्चस्व होता है वही सत्ता में होता है। बहुजन दर्शन पर तैयार समाज थोड़ा ही सत्ता में पहुँचा था कि उसे RSS की एजेंट मायावती ने हिंदू धर्म में फिर से ढकेल दिया। कुछ लोग इसे महापरिवर्तन से जोड़ रहे हैं उन्हें यह अच्छे से मालूम है कि यही लोग तुम्हे अधिकारों से वंचित रखे थे। तुम कांशीराम को भूलकर जयश्रीराम बोलने लगे लेकिन वह जय भीम बोलकर अंततः बहुजनों राजनीतिक धारा को सर्वजन में जोड़कर जय परशुराम जय श्रीराम बुलवा दिया। मायावती का क्या है वह तो अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रही हैं। नुकसान समाज का हो रहा है। पुष्यमित्र सुंग का इतिहास जानने वाले चुप हैं।

कितना अच्छा दिन है 23 जुलाई धम्म चक्क पवत्तन दिवस पर बुद्धिज्म पर कोई कार्यक्रम न करके मायावती जी के दिशा निर्देशन व सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में ब्राह्मण सम्मेलन हुआ साकेत नगरी अयोध्या में।

अब ब्राह्मण अपना सारा वोट भाजपा को छोड़कर बसपा को देकर यूपी में बसपा की सरकार बनायेंगे। और भाजपा को असहाय छोड़ देंगे। ऐसी सतही समझ है सतही चिंतकों की।

इसे कहते हैं राजनीति का सतही ज्ञान जब बसपा समाजवादी से गठबंधन की तो सपा सही, 1995 में बसपा भाजपा से गठबंधन की तो भाजपा सही, अन्य राज्यों में बसपा कांग्रेस का समर्थन की तो कांग्रेस सही। इनके अविकसित भक्तों का चिंतन देखिये, स्वतंत्र बहुजन राजनीति करने वाले चन्द्र शेखर आज़ाद की बुराई कर रहे हैं। और जिसका एजेंट बोल रहे हैं इनकी पार्टी उन्हीं से साथ गठबंधन कर रही है। दरअसल ऐसे लोग आजीवन भक्ति में दम तोड़ देते हैं और जहाँ भी रहते हैं वहाँ कोई भी सामाजिक योगदान नहीं दे पाते बस पेट पालो अभियान तक सीमित हैं। कभी समाज के दुःख सुख में चन्द्र शेखर की तरह ज़मीन पर आये तो पता चले।अभी OBC आरक्षण NEET पर ASP धरना कर रही है बसपा व उसके समर्थकों के मुँह में दही जमा है।

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