यूपी का मछलीशहर जहां पिछड़े दलित करते हैं हार जीत का फैसला 

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मछलीशहर में दलितों के अलावा दूसरी जातियां भी आंकड़ों में कमतर नहीं है। अगर जातिगत आंकड़े देखें तो यादव समेत अन्य पिछड़ा वर्गों की संख्या दलित वोटरों से कहीं ज़्यादा है। ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटरों को नज़रअंदाज़ करना भी पार्टियों के लिए हानिकारक हो सकता है…

LOKSABHA ELECTION 2024 : मछलीशहर लोकसभा सीट की शुरुआत साल 1962 में हुई थी। इस सीट के एक तरफ इलाहाबाद हुआ करता था तो दूसरी तऱफ बनारस होता था। मछलीशहर की लोकसभा सीट का गठन जौनपुर जिले के मछलीशहर, मड़ियाहूं, जफराबाद, केराकत और वाराणसी जिले की पिंडरा विधानसभा को मिलाकर हुआ था। मछलीशहर और कोराकत विधानसभा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया था। यहां पर सबसे पहले 1962 में कांग्रेस के गणपत ने जनसंघ के महादेव को हराकर जीत हासिल की थी। दूसरी बार भी 1984 में कांग्रेस के श्रीपति ने जीत हासिल की थी और कांग्रेस पार्टी का मछलीशहर लोकसभा सीट पर दबदबा कायम हो गया था।

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लोकसभा चुनाव 2024 में  बीपी सरोज :

वर्तमान में मछलीशहर की लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास है। पिछले चुनावों में विपक्ष ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी और मात्र 181 वोटों से भाजपा के प्रत्याशी को यहां जीत मिली थी। आपको बता दें कि साल 2019 में इस सीट पर एक रोमांचक मुकाबला देखने को मिला था। साल 2019 के चुनाव में भाजपा के बीपी सरोज ने सपा बसपा गठबंधन के उम्मीदवार रहे टी राम को केवल 181 वोटों से मात दी थी। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने फिर से लोकसभा चुनाव 2024 में बीपी सरोज को टिकट दिया है। अब देखने वाली बात यह है कि इस बार पार्टियां बीपी सरोज को हराने के लिए किस तरह की रणनीति अपनाती हैं।

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मछलीशहर एक बड़ा दलित वोट बैंक :

आपको बता दें कि मछलीशहर लोकसभा क्षेत्र में सभी 5 विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर लगभग 20 लाख वोटर है जिनमें एक बड़ा दलित वोट बैंक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। तभी तो सपा ने अपना जातीय समीकरण साधने के लिए अपने पुराने नेता तूफानी सरोज के बेटी प्रिया सरोज को चुनावी जंग में उतारा है। सपा ने प्रिया सरोज को चुनावी रण में उतारकर युवाओं और पीडीए, दोनों को साधा है। मछलीशहर में दलितों के अलावा दूसरी जातियां भी आंकड़ों में कमतर नहीं है। अगर जातिगत आंकड़े देखें तो यादव समेत अन्य पिछड़ा वर्गों की संख्या दलित वोटरों से कहीं ज़्यादा है। ब्राह्मण और क्षत्रिय वोटरों को नज़रअंदाज़ करना भी पार्टियों के लिए हानिकारक हो सकता है।

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पिछड़े और दलित ही तय करते हैं जीत :

मछलीशहर में पिछड़े और दलित ही तय करते हैं कि जीत किसकी होगी। क्योंकि यहां पर पिछड़े और दलित मतदाताओं की संख्‍या सबसे ज्‍यादा है। मछलीशहर में पिछड़े में भी यादवों की संख्या ज्यादा है पिछड़ों के बाद अनुसूचित जाति मतदाता दूसरे नंबर पर हैं। इसके बाद ब्राह्मण, राजपूत, कायस्‍थ, मुस्लिम और अन्‍य जाति के मतदाताओं का नंबर आता है। मछलीशहर में जातिगत आंकड़ों के अनुसार कुल 20 लाख वोटर में लगभग 3 लाख दलित, यादव 2 लाख, अन्य पिछड़ा 2 लाख, पटेल 1 लाख, ब्राह्मण 1 लाख, क्षत्रिय 1 लाख और मुस्लिम 80 हजार के आसपास है।

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हर पार्टी को मिला मौका :

मछलीशहर के मतदाताओं ने हर दल को आजमाया। शुरुआती तीन चुनाव में कांग्रेस का परचम लहराया और इसके बाद बीएलडी, जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा और फिर बसपा-सपा की बारी आई। भले ही मछलीशहर ने  हर पार्टी को अपने यहां पर राजनीति खेल खेलने का अवसर दिया हो लेकिन इस बार पार्टियां की मछलीशहर के दलित वोट बैंक पर नज़र है। सपा ने भी अपना जातिय समीकरण साधने के लिए चुनावी रण में प्रिया सरोज को उतारा है। बाकी अन्य पार्टियां भी जातिय समीकरण साधने के लिए तमाम तरह के दावे और रणनीतियां अपनाने की होड़ में लगी हुई हैं। अब ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा आखिर किस पार्टी को मछलीशहर लोकसभा सीट पर जीत हासिल होती है।

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