पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के बारे में जान लीजिए

Draupadi Murmu
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राष्ट्रपति चुनाव में 748 में से 540 वोट प्राप्त करके भारतीय जनता पार्टी नीत एनडीए की राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति बन गयी है। इस चुनाव में विपक्ष के नेता यशवंत सिन्हा को 208 वोट मिले थे। बहरहाल, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और 25 जुलाई 2022 से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अपना कार्यभार संभालेंगी।

जब से एनडीए की तरफ़ से राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रस्तावित किया गया था तब से ये नाम खूब चर्चा में रहा। सबकी जुबान पर बस यही बात थी कि अगर द्रौपदी मुर्मू चुनाव जीत जाती हैं तो वह पहली आदिवासी महिला रास्ट्रपति होंगी। और ऐसा हुआ भी। जब ये खबर आई की द्रौपदी मुर्मू चुनाव जीत चुकी हैं तब पूरे देश में बीजेपी की तरफ़ से जश्न मनाया गया। विषेकर द्रौपदी मुर्मू के राज्य झारखंड में। उनके भाई ने इस मौके पर मीडिया से कहा कि मुर्मू की जीत आदिवासी समुदाय के लिए गर्व की बात है।

लेकिन द्रौपदी मुर्मू का रास्ट्रपति बनने तक का सफ़र इतना आसान नहीं रहा। चाहे उनका झारखंड के गवर्नर का कार्यकाल हो या उनका व्यक्तिगत जीवन दोनो जगह उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। तो चलिए इस लेख के माध्यम से भारत की नई रास्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के बारे में विस्तार से बात करते हैं…

संथाल समुदाय से आती हैं मुर्मू :

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में हुआ था। मुर्मू एक आदिवासी समूह संथाल से ताल्लुक रखती हैं। मुर्मू ने रमा देवी महिला कॉलेज से कला स्नातक की है। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू है। जो ग्राम परिषद के पारंपरिक मुखिया थे। उनकी शादी एक बैंकर श्याम चरण मुर्मू से हुआ थी। जिससे उनके दो बेटे और एक बेटी है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा रहा है। साल 2009 से साल 2015 उनके जीवन का सबसे कठिन समय रहा जब उन्होंने अपने पति और दोनों बेटों को खो दिया है। वहीं उनकी बेटी इतिश्री की शादी गणेश हेम्ब्रम से हुई है।

मुर्मू की राजनीति में एंट्री :

द्रौपदी मुर्मू झारखंड की नौवीं राज्यपाल बनी थीं। मुर्मू साल 2000 में झारखंड के गठन के बाद से पांच साल का कार्यकाल (2015-2021) पूरा करने वाली झारखंड की पहली राज्यपाल हैं। राज्यपाल बनने से पहले वह बीजेपी की सदस्य रही हैं।

ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान, वह 6 मार्च, 2000 से 6 अगस्त, 2002 तक वाणिज्य एवं परिवहन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहीं। इसके अलावा 6 अगस्त, 2002 से 16 मई 2004 तक मत्स्य पालन एवं पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री रही थीं।

मुर्मू 2013 से 2015 तक भगवा पार्टी की एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी थीं। गौरतलब है कि उन्होंने सबसे पहले 1997 में एक पार्षद के रूप में चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी और उसी वर्ष उन्हें भाजपा के एसटी मोर्चा का राज्य उपाध्यक्ष चुना गया था।

राजनीति में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने 1979 से 1983 तक राज्य सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया था। साल 1997 तक मुर्मू ने रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में एक शिक्षक के रूप में काम किया।

15वी रास्ट्रपति के रूप में मुर्मू देश की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति और भारत की स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली पहली राष्ट्रपति बन गयीं हैं।

अपने ही समुदाय का झेलना पड़ा विरोध :

साल 2016-2017 में रघुबर दास मंत्रालय ने छोटानागपुर किरायेदारी अधिनियम 1908 और संथाल परगना किरायेदारी अधिनियम 1949 में संशोधन की मांग की।

ये दोनों वो कानून थे जो भूमि पर आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते थे। इन कानून के मुताबिक ज़मीन का लेन देन सिर्फ़ आदिवासी समुदाय के बीच ही हो सकता था। इन कानून में इन नए संशोधनों ने सरकार को आदिवासियों की ज़मीन का व्यवसायिक उपयोग ओर उसे पट्टे पे लेने की अनुमति दी थी।

मौजूदा कानून में संशोधन करने वाले प्रस्तावित विधेयक को झारखंड विधानसभा ने मंजूरी दे दी थी और नवंबर 2016 को ये बिल मुर्मू को अनुमोदन के लिए भेज गया था। अब बस इंतज़ार इस बिल पर मुर्मू के सिग्नेचर का था।

लेकिन दूसरी तरफ़ आदिवासियों ने प्रस्तावित कानून का कड़ा विरोध किया और पत्थलगड़ी आंदोलन की शुरुआत की। इस पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान, काश्तकारी अधिनियमों में प्रस्तावित संशोधनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए गए। लेकिन एक घटना में विरोध हिंसक हो गया और आदिवासियों ने भाजपा सांसद करिया मुंडा का अपहरण कर लिया। पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में आदिवासी समुदायों पर हिंसक कार्रवाई की, जिससे एक आदिवासी व्यक्ति की मौत हो गई।

इस वक्त आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी सहित 200 से अधिक लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। आंदोलन के दौरान आदिवासी समुदायों के खिलाफ पुलिस की आक्रामकता पर मुर्मू के नरम रुख की आलोचना की गई थी। महिला आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता अलोका कुजूर के अनुसार ये उम्मीद की गई थी कि मुर्मू आदिवासियों के समर्थन में सरकार से बात करेंगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। मुर्मू ने इस वक्त आंदोलन के नेताओ से ही संविधान में विश्वास रखने की अपील कर डाली।

बात साल 2017 की है जब मुर्मू नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के साथ थी तब उन्हें इस संशोधन के ख़िलाफ़ कुल 192 ज्ञापन मील थे। विपक्ष के नेता हेमन्त सोरेन ने इस वक्त कहा था कि भाजपा सरकार कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए बिल में संशोधन कर रही है और इस तरह से वो आदिवासियों की ज़मीन का अधिग्रहण करना चाहती है।

ऐसे में विपक्षी दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, झारखंड विकास मोर्चा और अन्य ने बिल के खिलाफ तीव्र दबाव डाला था। 24 मई 2017 को, मुर्मू ने बिलों को मंजूरी देने से इनकार कर राज्य सरकार को बिल वापस कर दिया। और साल 2017 में बिल को वापस ले लिया गया।

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