जल्दी जल्दी तैयार हो जाती हूँ। इससे पहले कि कुछ खाना पड़े कॉलेज के लिए निकल जाऊँगी, नहीं तो फ़ालतू में मम्मी कुछ ना कुछ ज़रूर खिला देंगी। लड़की मन ही मन सोच रही थी और आईने के सामने खड़ी जल्दी-जल्दी बाल संवार रही थी। जैसे तैसे बाल सही किए, बैग उठाया मम्मी की तरफ़ बढ़ी ही थी बाय बोलने के लिए कि बोलने से पहले ही अचानक माँ ने टोक दिया..अरे, लवी बेटा ले तेरे लिए आज बादाम का दूध बनाया है। थोड़ा सा पी ले, वो सर्दियाँ शुरू होने वाली हैं ना तो सुबह सुबह बादाम का दूध अच्छा रहेगा।
लवी दूध के गिलास की तरफ़ देख रही थी और माँ लवी की तरफ़। इतने में माँ बोली लवी काजल तो लगा ले, शायद आज लगाया नहीं। अरे माँ वो जल्दी में भूल गयी, लवी ने जवाब दिया। कोई बात नहीं अब लगा लेना पर पहले ये दूध पी ले, माँ ने कहा।
माँ मुझे कुछ नहीं खाना है, जल्दी जाना है आज। जल्दी ही चली जाना बेटा पर ये दूध तो पीती जा देख तेरे लिए बड़ी मुश्किल से बनाया है। आज मेरा करवाचौथ का वृत है तो पानी तक नहीं पिया है बड़ी प्यास लग रही और एक तू है कि…., अचानक माँ ने तेवर बदल कर पूछा लवी कहीं तूने भी तो करवाचौथ का वृत नहीं रखा। देख तू मुझसे कुछ नहीं छुपाती है ना, तो मुझे पता है ऐसा कुछ नहीं है, पर फिर भी कुछ हो तो बता देना, है ना।
नहीं माँ ऐसा कुछ नहीं है, पर हाँ आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी, समझो मैं भी वृत हूँ, बड़े साधारण अंदाज़ में लवी ने बोल दिया। माँ को ये बात कुछ अच्छी नहीं लगी थी, अपनी जवान हो रही बेटी को वो भी साधारण अंदाज़ में ही समझाना चाह रही थी। बेटा देखो अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है और ये करवाचौथ शादीशुदा औरतों के लिए होता है, तुम वृत नहीं रख सकती बेटा।
क्यों नहीं रख सकती माँ? लवी ने नज़रें नीचे करके कुछ ग़ुस्से से बोला। क्यों की ये वृत पति की लम्बी उम्र की कमना के किए रखा जाता है, जिसका पति होता है, अब तेरा तो कोई पति है नहीं तो फिर तू किसके लिए रखेगी, इसलिए ये सिर्फ़ शादीशुदा महिलाओं के लिए होता है, अब ये दूध पी ले और जा।
पर माँ मेरा कोई पति अभी नहीं है तो क्या ? बाद में तो होगा ना, उसके लिए रख सकती हूँ ना….? इतना बोलना था की माँ बोल पड़ी, तू उसे जानती है क्या? तूने उसे देखा है क्या? तू उससे मिली है क्या? तेरा वृत खुलवाने कोई आएगा क्या जिसके लिए तूने वृत रखा है? माँ का ग़ुस्सा सातवें असमान पर पहुँच चुका था, उसे बिलकुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था की उसकी बेटी कुँवारी रह कर करवाचौथ (जो की सुहागनों का त्यौहार है) का वृत रखे।
माँ मेरा पति कोई ना कोई तो होगा ना, हो सकता है उसे मैंने कहीं देखा हो, हो सकता है वो कहीं अपने रिश्तेदार, अपने शहर, मेरे कॉलेज… कहीं ना कहीं तो होगा ही, अब सभी शादियाँ हमेशा नयी जगह ही होती हैं ऐसा भी तो नहीं है, हो सकता है मैं उसे जानती हूँ, और माँ ये भी तो हो सकता है ना कि आप भी उसे जानती हों!
वैसे माँ आप तो भगवान को मानती हो ना..पर क्या आप उसे जानती हो? क्या अपने उसे देखा है? क्या आप उससे मिली हैं? क्या आपने उससे कभी बात की है? क्या वो आपको जानता है? क्या वो आपका वृत खुलवाने आता है? क्या उसे आपकी बीमारी के बारे में पता है? अगर पता है तो वो आपकी बीमारी ठीक क्यों नही कर देता? क्या वो चाहता है कि सबका अच्छा सोचने वाली मेरी माँ बीमारी से परेशान रहे, ये कैसा अपना भगवान है?
माँ आपको पता है डायबिटीज़ और हाइपोथायराडिज़म की वजह से आपको दिन में कितनी बार खाना खाना पड़ता और ‘पॉलिफेजिया’ की वजह से आपको अधिक भूख लगती है, माँ। आपको अपना ख़याल रखने की ज़रूरत है, मैं आपको ये समझना चाह रही रही थी कि हम अंधविश्वास और पाखंड में पड़कर संस्कारों के नाम पर न अपना ख़याल रख पाते हैं और ना अपनों का। ये पूजा पाठ, देवी देवता, धर्म सब इंसानो की सहूलियत के लिए बनाए गए हैं, इंसानो को उलझाने के लिए नहीं। हम इन संस्कारों का प्रयोग करते करते कब खुद इनका प्रयोग हो जाते हैं हम खुद भी नहीं जान पाते। और हाँ माँ मैने कोई वृत नहीं रखा, ठीक है। और वो देखो मैं बिश्किट खा चुकी हूँ, मैं इन अंधविश्वासों में नहीं पड़ती, लाओ अब ये दूध भी पी ही लेती हूँ नहीं तो आप ग़ुस्सा हो जाओगी।
नहीं बेटा ये दूध तुझे नहीं मुझे पीने की ज़रूरत है। माँ अपनी जवान बेटी के तर्कों के सामने हार चुकी थी, उसे समझ आ गया था की अंधविश्वास ने उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी थी। उसने गिलास का दूध पिया, लवी को गले से लगाया और स्माइल के साथ उसे कॉलेज के लिए विदा किया।
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