आखिर मायावती ने क्यों कहा की “कांग्रेस को बुरे दिनों में ही दलितों की याद आती है” ?

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देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस वर्तमान समय में अपनी लगातार गिरती साख और खत्म होते जा रहे आस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रही है. गाँधी परिवार का नेतृत्व भी बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीती एवं आक्रामक रूप से चलाये जा रहे कांग्रेस मुक्त अभियान की काट नहीं ढूंढ पा रहा है. जिसकी वजह से कांग्रेस के सम्मुख आस्तित्व को बचाने का संकट खड़ा हो गया है। एक तरफ जहाँ देश की सबसे अमीर राजनितिक पार्टी है जिसपे आये दिन विरोधी पार्टियों के खिलाप प्रशासनिक, सरकारी तंत्र के दुरूपयोग का आरोप लगते रहते है और आरएसएस की जमीनी स्तर पर कैडर की स्वसंचालित व्यवस्था है जो भारतीय राजनीति के परिपेक्ष्य में बीजेपी के लिए वोट बटोरने का काम करती है।

वही कांग्रेस में अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों का काफी लम्बे समय से रिक्त होना बताता है की कांग्रेस अपनी सिमटती हुई राजनीति को लेकर कितनी संजीदा है। फलस्वरूप वो समय भी आ गया जब कांग्रेस के अंदर से ही गाँधी परिवार नेतृत्व के विरुद्ध विरोध के स्वर फूटने लगे। तब गाँधी परिवार से इतर किसी ऐसे शख्स को पार्टी की कमान देने की कवायद शुरू की गयी जो ना सिर्फ गाँधी परिवार के लिए वफ़ादारी साबित करता हो अपितु ऐसे वर्ग से भी आता हो जिस से होने वाले चुनावो में वोटो को भी साधा जा सके।

यही कारण है कि 24 साल बाद पहली बार कांग्रेस में गैर गाँधी परिवार के मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनने का मौका मिला है। मल्लिकार्जुन खड़गे जो दलित समाज से आते है। खड़गे का अध्यक्ष बनाया जाना कांग्रेस पार्टी के लिए अनगिनत फायदे का कारण बन सकता है। जिनमें सबसे पहला फायदा ये है कि कांग्रेस पार्टी को परिवारवाद टैग से मुक्ति, चुनावो में दलित फैक्टर, गाँधी परिवार का पहले की तरह पार्टी पर पकड़ और दलित समाज के नेताओ को दलित वोट बैंक पर टक्कर।

अब कांग्रेस खड़गे के सहारे राजस्थान में 13 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में दलित वोटो को अपने पक्ष में करने की योजना बना रही है गौरतलब है कि राजस्थान में 17.8 प्रतिशत आबादी दलितों की है। दलित राजनीति के बड़े चेहरों की बात करे तो गत 74 वर्षो में बाबू जगजीवन राम को छोड़ कर राष्ट्रिय पटल पर कोई बड़ा चेहरा नहीं उभरा। बिहार में रामविलास पासवान और उत्तर प्रदेश में मायावती को भी आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई है। कांग्रेस अपनी डूबती नैय्या को बचाने के लिए दलित राजनीति को बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति की काट के रूप में देख रही है। मायावती का हालिया ट्वीट भी कांग्रेस के दलित वोट बैंक को अपनी तरफ मोड़ने के लिए खड़गे को अध्यक्ष बनाने के सन्दर्भ में था।

मायावती का यह कथन राजनितिक दृष्टिकोण के साथ साथ तथ्यात्मक रूप से भी काफी हद तक सच साबित होती है। कांग्रेस सिर्फ हिंदुत्व की राजनीति के विरोध में दलित राजनीति को अवसर बनाना चाहती है जबकि दलित चिंतन राजनीति, हिंदुत्व और ब्राह्मणवादी शोषण के विरोध से कही ज्यादा है। यह न केवल समावेशी सामाजिक व्यवस्था का दर्पण है अपितु बाबा साहेब के एक ऐसे देश के परिकल्पना को सच करने के अम्बेडकरवादी प्रयास भी है जिसका अभिप्राय सब के समान अधिकार और भेदभाव रहित सामाजिक तानेबाने से है। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व हमेशा से यह समझने में असफल रहा है और यही कारण है कि जब कई अवसरों पर कांग्रेस का दलित विरोधी मानसिकता उजागर हुई है। स्वतंत्र भारत की राजनीति और समाज को अगर सबसे अधिक किन्ही दो व्यक्तियों ने प्रभावित किया किया है तो वो है गाँधी और बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर।   शुरूआत से ही कांग्रेस दलित चिंतन, दलित समाज और बाबा साहेब की उपेक्षा करती आयी है।

संविधान सभा में कांग्रेस कि तरफ से भेजे गए प्रारंभिक 296 सदस्यों में कांग्रेस ने अपमानजनक रवैय्या अपनाते हुए बाबा साहेब को जगह नहीं दी थी। तब जोगेंद्र मंडल ने बाबा साहेब को संविधान सभा में सम्मिलित करने की भूमिका निभाई थी वर्तमान समय में भी कांग्रेस दलित समाज को लेकर कितना चिंचित है यह कांग्रेस शाषित राज्यों में दलितों के प्रति बढ़ रहे अपराधों के ग्राफ से पता चलता है।  NCRB / राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताज़ा आँकड़े बताते है की देश में सबसे अधिक दलितों के खिलाफ हो रहे अपराध जिन राज्यों में सर्वाधिक है।

उसमें कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान भी शामिल है। जालौर जिले के एक निजी स्कूल में पानी के मटके को छूने को लेकर नौ वर्षीय बच्चे की पीट-पीट कर हत्या करना हो या दलित महिला शिक्षक पर पेट्रोल डाल कर उसे जिन्दा जलाना, ऐसे मामले दिन प्रतिदिन राजस्थान में अखबारों की सुर्खिया बनते रहते है। दलितों के विरुद्ध अपराध कम नहीं हो रहे है और ना ही कांग्रेस सरकार की इसे रोकने या कम करने की नियत दिख रही है। यह स्याह सच है की कांग्रेस शासित राज्यों में ऐसे अपराध थमने का नाम नहीं ले रहे है।  यह कांग्रेस का दलितों के प्रति बनावटी प्रेम को दिखाता है जो सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की तरह दलित समाज का उपयोग अपने राजनितिक लाभ के लिए करना चाहती है।

जय भीम

(लेखक: नवीन गुप्ता)  

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