जेएनयू के दलित प्रोफ़ेसर विवेक कुमार जिन्होंने विश्व स्तर पर बनाई अपनी अलग पहचान

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देश के श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली का जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय जिसे जेएनयू के नाम से भी जाना जाता है। वहां के प्रोफ़ेसर डॉक्टर विवेक कुमार इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनकी उपलब्धि ने शिक्षा जगत को एक नया आयाम दिया है। प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने ना केवल व्यक्तिगत उपलब्धि हासिल की है बल्कि उनकी वजह से आज दुनिया भर में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय का नाम अकादमिक जगत में चर्चा का विषय बना हुआ है।

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विद्यार्थी  जीवन :

जेएनयू के प्रोफ़ेसर विवेक कुमार के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। अपने विद्यार्थी जीवन में उन्होंने कई मुश्किलों का सामना करते हुए आज शिक्षा जगत में अपना नाम रोशन किया है। “दैनिक दस्तक” में इन्द्रा साहेब जी विवेक कुमार के बारे में लिखते हैं कि “ टूटी-फूटी अंग्रेज़ी के साथ एक बच्चा लखनऊ से निकल कर जेएनयू से एमए, एमफिल, पीएचडी करते हुए जेएनयू में ही प्रोफ़ेसर बनकर विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाता है”।

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खुद कुआं खोदकर पानी पीना पड़ता है :

इन्द्रा साहेब लिखते हैं कि लखनऊ जैसे शहर से निकलकर जब विवेक कुमार जी दिल्ली के जेएनयू में एडमिशन के लिए आए तो उन्हें उस दौरान हॉस्टल नहीं मिला जिस वजह से उन्होंने गाजियाबाद में कमरा लिया कॉलेज दूर होने की वजह से वह सुबह 6 बजे निकलते थे ताकि वह सुबह 9 बजे की क्लास ले सकें। खाने की समुचित व्यवस्था न होने के कारण भी विवेक कुमार जी ने अपने विद्यार्थी जीवन में दिक्कतों का सामना किया था। हालांकि कभी कभी दोस्तों के साथ टिफिन शेयर हो जाता था। इस जानकारी के आधार पर इन्द्रा साहेब लिखते हैं कि “हाशिये के समाज की कहानी ऐसी ही होती है खुद कुआं खोदकर पानी पीना पड़ता है।“

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विवेक से आज प्रोफेसर विवेक कुमार :

आगे इन्द्रा साहेब लिखते हैं कि “अभिजात्य वर्ग के लिए यह सब आसान लग सकता है लेकिन हाशिये के समाज के बच्चों को घर से दूर राष्ट्रीय राजधानी, जेएनयू, में आना, रहना, पढ़ना आसान नहीं था। यह बच्चा बहुजन आन्दोलन, अपनी मेहनत और मेधा की बदौलत विवेक से आज प्रोफेसर विवेक कुमार बन चुका है। विश्व फलक पर अपनी पहचान बना चुके हैं।“

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अकादमिक जगत को 85 पीएचडी और एमफिल :

आपकों बता दें कि प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने अकादमिक जगत को तकरीबन 85 पीएचडी और एमफिल प्रदान की है। इसके अलावा प्रोफ़ेसर विवेक कुमार ने जेएनयू के सहित अमेरिका, इग्लैंड आदि देशों की नामचीन यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे हैं। प्रोफ़ेसर विवेक कुमार के छात्र भारत के ही नहीं बल्कि यूरोप अमेरिका के तमाम देशों में आज बतौर प्रोफ़ेसर पढ़ा रहे हैं। विवेक कुमार जी ने समाजशास्त्र की दुनिया में ” समाजशास्त्र कितना समतावादी है?” का प्रश्न पूछकर एक नया विमर्श शुरू कर समाजशास्त्र की दुनियां में एक नया आयाम जोड़ा है। विवेक कुमार जी ने अपनी रचित कविता ‘समाजशास्त्र की दिशा एवं दशा‘ में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्गों संग नारी विमर्श को रेखांकित किया है।

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बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के विचारों  से प्रेरित :

विवेक कुमार जी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जरनल के सदस्य व संपादक भी हैं। इनके नेतृत्व में Centre for the Study of Social System, JNU को विश्व रैंकिंग में 68वां स्थान मिला है। इससे पहले भी इनके नेतृत्व में इस संस्थान को दो बार विश्व रैंकिंग में शामिल किया जा चुका है। अकादमिक जगत सहित अंबेडकर आंदोलन के संदर्भ में भी विवेक कुमार जी बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के विचारों को अपने शोधपत्रों, पुस्तकों, लेक्चर आदि के जरिये लोगों तक पहुंचाया है। भारत के साथ प्रोफेसर विवेक के लेख को यूएसए, यूके, जर्मनी, फ्रांस, आयरलैंड, ताइवान, सिंगापुर, फिलीपींस, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनीशिया आदि देशो में भी पढ़ा गया है।

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अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति निष्ठा :

आपकों बता दें कि विवेक कुमार जी वंचित तबके से आते हैं और इन्होंने समतावादी आन्दोलन में अपनी सृजनात्मक छाप छोड़ी है। इसके अलावा विवेक कुमार जी ने सीमित संसाधन वाले बहुजन समाज के युवाओं का मार्गदर्शन किया और उनको भारत राष्ट्र निर्माण से अवगत कराया है। विवेक कुमार के अकादमिक जगत सहित अम्बेडकर विचारधारा के प्रति समर्पण का ही नतीजा है कि देश के किसी कोने से निकलकर यदि हाशिये पर धकेले गये समाज का कोई बच्चा जेएनयू आता है तो वो यह गर्व से कहता है कि ‘चलो देखा जायेगा, विवेक सर तो हैं ही।’ ऐसा भी कहा जाता है कि यदि किसी छात्र को अपने डाक्यूमेंट्स प्रमाणित करवाना हो तो बेहिचक उनके चैंबर में चला जाता है। जब इस पर विवेक कुमार कहते हैं कि ‘हम आपको तो जानते नहीं है, कैसे प्रमाणित करें।’ तो इस पर छात्र बुलंद हौसले के साथ कहते हैं कि ‘तो क्या हुआ हम तो आपको जानते हैं।’ यह हैं जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय में उनकी मौजूदगी का मतलब। इससे स्पष्ट है कि जेएनयू में प्रोफ़ेसर विवेक कुमार की मौजूदगी वहाँ जाने वाले लोगों (हाशिये के समाज) को निश्चिन्त करता है। ये केवल उनकी अम्बेडकरी विचारधारा के प्रति निष्ठा, प्रतिबद्धता और सकारात्मक व सरल व्यवहार का परिणाम है।

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धम्म आधारित जीवन शैली :

विवेक कुमार जी बाबासाहेब, मान्यवर साहेब के समतामूलक समाज का निर्माण कर रहे हैं। विवेक कुमार जी नकारात्मकता की चपेट में आए बहुजन समाज के अधिकांश लोगों का मान्यवर साहेब के सकारात्मक एजेण्डे को केन्द्र में रखकर लगातार बहुजन समाज को बहुजन आन्दोलन की पटरी पर लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। दैनिक दस्तक के मुताबिक विवेक कुमार जी, बहुजन आन्दोलन के आदर्शों, खासकर धम्म आधारित जीवन शैली, को निजी जीवन में उतारने के संदर्भ में स्पष्ट कहना है कि “बहुजनो का मनोरंजन और उनके जीवन के संस्कार (जैसे विवाह, नामकरण, जन्मदिवस आदि संस्कार) भी विचारधारा और धम्म के आधार पर होने लगे हैं। इसी प्रकार अगर सभी बहुजन इसका पालन करें तो बहुजन समाज का आत्मविश्वास बढ़ेगा और इस समाज की सांस्कृतिक पूँजी और भी समृद्ध होगी।“

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