राजस्थान की रहने वाली आदिवासी महिला टीपू देवी ने अपनी कला से 45 आदिवासी महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

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राजस्थान में एक आदिवासी महिला की लगन और मेहनत से आज यहां की 45 आदिवासी महिलाओं की कला देश दुनियां में अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं। आपको बता दें कि अपनी कला से इस महिला ने आदिवासी महिलाओं के जीवन को एक नई दिशा दी है। इस महिला को इस उपलब्धि के लिए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सम्मानित किया था। दरअसल राजस्थान के सिरोह जिले में आबूरोड क्षेत्र के आदिवासी बहुल सियावा गांव में करीब 24 वर्ष पहले एक आदिवासी महिला की पहल से आज यहां की 45 आदिवासी महिलाओं की कला देश-दुनियां में अपनी पहचान बना चुकी हैं।

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महिलाएं अपने घर का खर्चा खुद चला रही हैं :

आपको बता दें कि यह आदिवासी महिला राजस्थान के सियावा गांव की रहने वाली हैं और इनका नाम टीपू देवी गरासिया है। टीपू देवी जी ने गांव की 10 महिलाओं के साथ महिला समूह बनाकर मिट्टी से मूर्ति बनाने का काम शुरु किया था। जानकारी के मुताबिक इन मूर्तियों को गांव की मिट्टी से तैयार किया गया था और इन कलाकृतियों ने प्रदेश में ही नहीं पूरे देश व विदेशों तक पहचान बनाई है। इन मूर्तियों की कई देशों में अच्छी डिमांड है। अभी वर्तमान में गांव में तकरीबन 45 महिलाएं वर्क फॉर्म होम के ज़रिये अपने घर का खर्चा खुद चला रहीं हैं।

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साल का टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपए हैं :

टीपू देवी ने मार्च साल 2000 में 7,000 रुपये निवेश करके 10 महिलाओं के साथ राजस्थान आदिवासी मिट्टी शिल्प फेडरेशन की स्थापना की थी। फिर इस महिला समूह ने मिट्टी से मूर्तियां बनाने का काम शुरू किया था। टीपू देवी गरासिया के संस्था को 2006 में उत्कृष्ट काम के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी सम्मानित किया था। इनकी तैयार मूर्तियों की कई देशों में प्रदर्शनी भी लगी है। इनकी मूर्तियों की चीन के शंघाई, इटली के मिलान, स्विट्जरलैंड, पेरिस और सिंगापुर में प्रदर्शनी लगाई जा चुकी है। मूर्तियों का व्यापार ऑस्ट्रेलिया, कनाडा व फ्रांस आदि देशों तक फैला हुआ है। मूर्तिकला के इस काम साल का टर्नओवर 30 से 35 लाख रुपए हैं।

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महिलाएं घर बैठे 7-8 हजार रुपए  कमा रहीं हैं :

टीपू देवी ने बताया कि आदिवासी महिलाएं केंद्र से कच्चा माल ले जाकर घर पर मूर्तियां तैयार कर केंद्र पर लेकर आती है। जिसे प्रशिक्षित आदिवासी महिला पेंटर ही पेंट कर तैयार करती है। कोरोना के बाद से वर्क फ्रॉम होम से ही कार्य करवाया जा रहा है। इससे महिलाएं घर बैठे ही महीने की 7-8 हजार रुपए की आय कमा रहीं हैं।

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जयपुर की कम्पनी के जरिए माल की बिक्री :

वर्तमान में संस्था जयपुर की कम्पनी के जरिए माल बेच रही है। रिटेल आउटलेट नहीं होने के कारण मूर्तियों का पूरा दाम नहीं मिल पाता है। टीपू देवी ने बताया कि करीब 13 वर्ष पूर्व प्रशासन से शिल्प ग्राम के लिए भूमि आबंटन कर रिटेल आउटलेट तैयार करने का प्रोजेक्ट दिया था, लेकिन आज दिन तक इसे स्वीकृति नहीं मिली है। यूआईटी से भी पत्रावली उच्चाधिकारियों को भेजी जा चुकी है। प्रोजेक्ट को अनुमति मिलने पर मूर्तियों का पूरा दाम मिलने से आदिवासी महिलाओं की आय में भी बढ़ोत्तरी होगी व बड़े स्तर पर यह कार्य किया जा सकेगा।

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