भाजपा की सरकार में IIT का नाम हुआ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अपर कास्ट ?

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भाजपा की सरकार में जातिगत भेदभाव का मुद्दा एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गया है। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने बयानों के माध्यम से इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने सरकार पर पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया है और इसके प्रमाण के रूप में विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में प्रोफेसरों की जातिगत संरचना के आंकड़े पेश किए हैं।

 

IIT मतलब “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अपर कास्ट”

लक्ष्मण यादव ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट के जरिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर की स्थिति का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि आईआईटी खड़गपुर के 43 विभागों में कोई भी आदिवासी (ST) प्रोफेसर नहीं है। 32 विभागों में कोई दलित (SC) प्रोफेसर नहीं है। वहीं 23 विभागों में कोई पिछड़ा वर्ग से (OBC) प्रोफेसर नहीं है।

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उन्होंने आगे कहा कि आईआईटी का नाम अब “इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अपर कास्ट” हो गया है। अगर सरकार का यही रवैया जारी रहा तो “सबका भारत, विकसित भारत, समृद्ध भारत” कैसे संभव हो सकता है। उन्होंने आगे एक आंकड़ा देते हुए बताया, 92.04% प्रोफेसर सवर्ण जातियों से हैं, जबकि उनकी जनसंख्या मात्र 10-12% है। वहीं बहुजन समुदाय जिसकी आबादी 88-90% है के केवल 7.96% प्रोफेसर ही हैं। इसलिए जातिगत जनगणना जरूरी है ताकि इस असमानता को समाप्त किया जा सके।

 

IIM और आरक्षण का मुद्दा

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और अंबेडकरनगर के लोकसभा सांसद लालजी वर्मा ने भी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लगातार दो पोस्ट किए। उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद, कोलकाता, इंदौर और शिलांग की टीचिंग फैकल्टी की जातिगत संरचना पर प्रकाश डाला। वर्मा ने बताया कि इन संस्थानों में OBC, SC और ST वर्ग का प्रतिनिधित्व शून्य है जबकि सवर्ण जातियों का 100% प्रतिनिधित्व है। वर्मा ने सवाल उठाया कि यह असमानता कैसे स्वीकार्य है और उन्होंने “PDA” (पिछड़ा, दलित, आदिवासी) का प्रतिनिधित्व कहां है? वर्मा ने यह भी उल्लेख किया कि देश की 85% आबादी का प्रतिनिधित्व इन प्रमुख संस्थानों में न के बराबर है।

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आरक्षण के तहत भर्तियों में असमानता

लक्ष्मण यादव ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया कि उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) द्वारा टेक्निकल असिस्टेंट ग्रुप सीके 3446 पदों पर निकाले गए विज्ञापन में OBC और SC वर्ग के साथ भेदभाव किया गया है। संवैधानिक आरक्षण के तहत OBC को 27% और SC को 21% आरक्षण मिलना चाहिए था लेकिन उन्हें क्रमशः केवल 629 और 509 सीटें प्रदान की गईं। यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस असमानता को दूर करने और विज्ञापन को रद्द कर दोबारा संवैधानिक आरक्षण के अनुसार पदों का बंटवारा करने की मांग की।

 

 

क्या कहते हैं आंकड़े :

चुनाव से ठीक पहले बसवान इंडिया मंडल ऑडिट की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय में कैसे सवर्ण कुलपतियों का बोलबाला है इस पर उन्होंने खास रिपोर्ट जारी की जिसमें उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के पांच केंद्रीय विश्वविद्यालय में 31 राज्य विश्वविद्यालय हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालय की बात करें तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को छोड़कर अन्य सभी विश्वविद्यालय में कुलपति सवर्ण है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का तारीख मंदसौर उत्तर प्रदेश में स्थित सभी केंद्र और राज्य विश्वविद्यालय में एकमात्र कुलपति है जो मुस्लिम है।

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आपको बता दे कि उत्तर प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालय की भागीदारी में सवर्ण 87.009 प्रतिशत है, ओबीसी 6.45 प्रतिशत है और अन्य की संख्या 6.45 प्रतिशत है। वहीं उत्तर प्रदेश में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में भागीदारी की बात करें तो जारी आंकड़ों के अनुसार सवर्ण 80% , मुस्लिम अल्पसंख्यक 20% , ओबीसी 0% और अन्य की संख्या 0 % है।

 

NFS का मुद्दा :

NFS (Not Found Suitable) का उपयोग उच्च शिक्षा संस्थानों में अक्सर एक विवादास्पद मुद्दा बन जाता है क्योंकि यह प्रक्रिया आरक्षित सीटों के अंतर्गत आने वाले OBC और SC उम्मीदवारों को चयन प्रक्रिया में विफल घोषित कर सकती है। इसके परिणामस्वरूप, आरक्षित सीटें अगर दो बार NFS हो जाती हैं तो वे सीटें सामान्य वर्ग (GEN) में परिवर्तित हो जाती हैं। यह स्थिति कई बार आरक्षण की मूल भावना को बाधित करती है और इसे एक प्रकार का हथियार माना जाता है जिससे पिछड़े वर्गों और दलितों को उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश से रोका जाता है। उच्च शिक्षा के बड़े संस्थानों में बार-बार OBC और SC सीटों को NFS करने की प्रथा के चलते इन वर्गों के छात्रों के लिए शिक्षा के अवसर सीमित हो जाते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए यह आवश्यक है कि चयन प्रक्रिया में सुधार हो और NFS के उपयोग को उचित जांच-पड़ताल के साथ लागू किया जाए। आरक्षण नीति का सही तरीके से पालन हो सके और सभी उम्मीदवारों को उनके अधिकार मिल सकें।

 

 

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