बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने अपने शुरुआती जीवन में अनेक बाधाओं को पार करते हुए समाज के कल्याण के लिए अनेक काम किए थें। कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल किया था। बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। आज कर्पूरी ठाकुर की पुण्यतिथि पर हम उनके जीवन के संघर्ष और बिहार की राजनीति में उनके योगदान के बारे में जानेंगे।
गरीबी में बचपन बीता :
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 1924 में 24 जनवरी को समस्तीपुर जिला के पितौंझिया गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम गोकुल ठाकुर और माता जी का नाम रामदुलारी देवी था। कर्पूरी ठाकुर का बचपन गरीबी में बीता था उन्होंने दूसरे गरीब परिवार के बच्चों की तरह खेलकूद गाय,भैंस पशुओं को चराया करते थे।
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शिक्षा के बारे में :
कर्पूरी ठाकुर की शुरुआती शिक्षा गांव की ही पाठशाला से हुई थीं। ऐसा कहा जाता है कि बचपन से ही कर्पूरी ठाकुर में नेतृत्व गुण विकसित होने लगा था। अपने विद्यार्थी जीवन में भी वह युवाओं के बीच लोकप्रिय थे। 1940 में द्वितीय श्रेणी से कर्पूरी ठाकुर ने मैट्रिक पास किया। फिर दरभंगा के चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालय में स्नातक में दाखिला ले लिया लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था तब उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और आंदोलन में हिस्सा लिया। कर्पूरी ठाकुर जयप्रकाश नारायण के द्वारा गठित “आजाद दस्ता” के सक्रिय सदस्य भी बने। कर्पूरी ठाकुर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी तो उन्होंने अपने गांव के ही विद्यालय में 30 रुपये प्रति महीने पर प्रधानाध्यापक के पद पर काम किया था।
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प्रशासनिक क्षमता का लोहा:
बिहार की राजनीति में भी कर्पूरी ठाकुर ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कर्पूरी ठाकुर उन नेताओं में रहे जिन्होंने भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया था। बिहार में गरीब, शोषित और पिछड़े वर्ग की दशा सुधारने में उनका मुख्य योगदान रहा है। 70 के दशक में वो बिहार के उपमुख्यमंत्री भी बने। 1977 में जब बिहार में सत्ता बदली तो उन्हें उस दौरान जनता पार्टी सरकार का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। कर्पूरी ठाकुर ने सामाजिक आर्थिक और भाषा की बराबरी के लिए लड़ाई लड़ी। ऐसा कहा जाता है कि कर्पूरी ठाकुर की ईमानदारी पर कभी भी सवाल नहीं उठे। आज भी उनकी प्रशासनिक क्षमता का लोहा सब मानते हैं।
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पहली जेल यात्रा :
समाज के कल्याण के लिए आंदोलनों में भाग लेने और अंग्रेजी सरकार को हिलाने वाले कर्पूरी ठाकुर ने 2 साल से ज़्यादा समय जेल में बिताया। 23 अक्टूबर 1943 में उन्हें दरभंगा जेल में डाल दिया गया था और यह उनकी पहली जेल यात्रा थी। आज़ादी के बाद 1952 के प्रथम चुनाव में समस्तीपुर के ताजपुर विधानसभा क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर भारी बहुमत से विजयी हुए। पहले विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद उन्हें बिहार विधानसभा के चुनाव में कभी हार नहीं मिली। बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने बिहार की राजनीति में अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
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पहले ‘गैर- कांग्रेसी’ मुख्यमंत्री :
कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले ‘गैर- कांग्रेसी’ मुख्यमंत्री थे। 1967 में जब वह पहली बार उपमुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया था। कर्पूरी ठाकुर ने शिक्षा मंत्री के पद पर भी काम किया है। कर्पूरी ठाकुर देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक की मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया था। कर्पूरी ठाकुर ने पिछड़े वर्ग के लोगों के कल्याण के लिए काम किए जिसके कारण उन्हें जननायक की उपाधि दी गई।
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किसानों के कल्याण के लिए काम :
कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व काफी साधारण था वह सादगीपूर्ण जीवन जीना पसंद करते थे। विधायक होने के बाद भी वह साधारण से मकान में रहते थे। कर्पूरी ठाकुर ने किसानों को तमाम तरह की सुविधा प्रदान की थीं। उन्होंने किसानों को राहत देने के लिए मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया। सचिवालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के लिए वर्जित लिफ्ट को उनके लिए खोल दिया । गरीबों को नौकरियों में आरक्षण देने के लिए मुंगेरीलाल कमीशन लागू करने पर कर्पूरी ठाकुर को सवर्णों का विरोध झेलना पड़ा। उन्होंने राज्य कर्मचारियों के बीच कम ज्यादा वेतन और हीन भावना को खत्म करने के लिए समान वेतन आयोग लागू कर दिया।
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‘जननायक’ कर्पूरी ठाकुर के बारे में मुख्य बातें :
• सामाजिक न्याय के हिमायती कर्पूरी ठाकुर ने अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के अलावा आज से चार दशक पहले ही सवर्ण गरीबों और हरेक वर्ग की महिलाओं को तीन-तीन फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया था। कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्री रहते हुए ही बिहार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने वाला देश का पहला सूबा बना था. उन्होंने नौकरियों में तब कुल 26% कोटा लागू किया था।
• कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे. दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक.
• दलित और पिछड़ों के लिए कर्पूरी ठाकुर ने जीवन भर काम किया. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं ने उन्हीं की राह पर चलते हुए अपनी राजनीति चमकाई।
• मुख्यमंत्री के रूप में अपने संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि दलितों ने इसका विरोध किया, जिनका रोजगार ताड़ी के व्यापार पर निर्भर था।
• वह जननायक के रूप में जाने जाते थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन बिहार में सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए समर्पित कर दिया।
• 1977 में लोकसभा का चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे, तब उन्होंने अपने संबोधन में कहा था, ‘संसद के विशेषाधिकार कायम रहें लेकिन जनता के अधिकार भी. यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो एक न एक दिन जनता संसद के विशेषाधिकारों को चुनौती देगी.’
• मुख्यमंत्री रहते उन्होंने बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किए। उन्होंने देशी और मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए तब की शिक्षा नीति में बदलाव किया था वो भाषा को रोजी-रोटी से जोड़कर देखते थे।
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भारत रत्न से सम्मानित :
पिछड़ो वर्गों दलितों, किसानों के हित के लिए काम करने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर जी का निधन आज ही के दिन17 फरवरी 1988 में हुआ था। बिहार की राजनीति में उनके योगदान को आज भी भुलाया नहीं जा सकता है। कर्पूरी ठाकुर जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत् शत् नमन है। उनके योगदान को याद करते हुए भारत सरकार ने भी 26 जनवरी, 2024 को उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया था। और अपने फैसले के अनुसार भारत सरकार ने जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित किया।
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