Dalit Leaders: इन दलित नेताओं ने भारतीय राजनीति पर छोड़ी छाप, दलित राजनीति के नए दौर में मायावती और चंद्रशेखर आजाद बने प्रमुख चेहरे

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भारत में दलित नेताओं का भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। बीआर आंबेडकर, बाबू जगजीवन राम, मीरा कुमार, राम विलास पासवान और मायावती जैसे नेताओं ने दलित समुदाय के अधिकारों और समानता की दिशा में प्रभावी योगदान दिया है। इस समय की बात करें तो चंद्रशेखर आजाद और मायावती दोनों ही प्रमुख दलित नेताओं के रूप में जाने जाते हैं। 

भारत में दलित नेताओं ने न केवल दलित समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, बल्कि भारतीय राजनीति और समाज पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इन नेताओं ने सामाजिक समानता, न्याय और अधिकारों की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाई है।

बीआर आंबेडकर :

डॉ. भीम राव आंबेडकर, भारतीय संविधान के निर्माता और समाज सुधारक, ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई। सामाजिक और कानूनी विषयों पर उनकी गहरी समझ के कारण पंडित नेहरू ने उन्हें अपने पहले मंत्रिमंडल में कानून और न्याय मंत्रालय का जिम्मा सौंपा। आंबेडकर ने जाति व्यवस्था के खिलाफ जोरदार संघर्ष किया और समाज के पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए लगातार काम किया। उनकी विचारधारा और प्रयासों ने भारतीय समाज में समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। उनके द्वारा किए गए प्रयासों से दलित और पिछड़े वर्गों को कानूनी और सामाजिक अधिकार मिले, जिनकी वजह से वे आज भी भारतीय राजनीति और समाज में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में सम्मानित हैं।

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बाबू जगजीवन राम

बाबू जगजीवन राम, जिन्हें आदरपूर्वक “बाबूजी” कहा जाता है, ने स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार से सक्रिय भाग लिया और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। पंडित नेहरू के कैबिनेट में उन्होंने श्रम, परिवहन, रेलवे जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का संचालन किया। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री रहे, जिसने बांग्लादेश के जन्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1977 में, उन्होंने भारत के चौथे उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला और भारतीय राजनीति में एक प्रमुख दलित नेता के रूप में स्थापित हुए।

कांशीराम

कांशीराम, जिन्हें “बहुजन नायक” के रूप में जाना जाता है, ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी (BSP) की स्थापना की। वे बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाते हुए दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए काम करते रहे। कांशीराम ने सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1991-1996 तक उत्तर प्रदेश के इटावा से सांसद रहे, और उन्होंने 2001 में मायावती को अपनी उत्तराधिकारी के रूप में चुना, जिससे बहुजन समाज पार्टी को नई दिशा मिली और दलित राजनीति को मजबूती मिली। कांशीराम का कार्य दलित और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण के लिए उनके योगदान के रूप में याद किया जाता है।

राम विलास पासवान :

राम विलास पासवान 1980 के दशक में बिहार में दलित नेता के रूप में उभरे और भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। उन्होंने नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा का सदस्य बने। 2000 में जनता दल के टूटने के बाद उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की स्थापना की। उनके पास छः प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड है, और उन्होंने कई केंद्रीय मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिससे उन्होंने दलित राजनीति और सामाजिक न्याय के मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर उठाया।

सुशील कुमार शिंदे

सुशील कुमार शिंदे महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रमुख नाम हैं। उन्होंने पांच बार महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया और राज्यमंत्री, वित्तमंत्री, और मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे। 2006 में वे राज्यसभा पहुंचे और यूपीए की केंद्र सरकार में ऊर्जा मंत्री बने। 2009 में उन्हें दूसरी बार ऊर्जा मंत्री नियुक्त किया गया और 31 जुलाई 2012 को वे भारत के गृहमंत्री बने। उनकी प्रशासनिक क्षमताओं और नेतृत्व ने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

मायावती

मायावती भारतीय राजनीति में एक प्रमुख दलित नेता हैं जिन्होंने चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे भारत की अनुसूचित जाति की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं और बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 1989 में बिजनौर लोकसभा सीट से पहली बार जीत हासिल करने के बाद, मायावती ने दलित समाज की आवाज को मजबूती दी और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित किया।

प्रकाश आंबेडकर

प्रकाश आंबेडकर, बाबासाहेब आंबेडकर के पोते और भारिप बहुजन महासंघ के नेता हैं। वे महाराष्ट्र के प्रमुख दलित नेताओं में गिने जाते हैं। उनकी राजनीति एक अलग दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसमें वे लेफ्ट, सोशलिस्ट, और दलितों की विभिन्न पार्टियों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। उनके नेतृत्व में, विभिन्न दलित और सामाजिक न्याय समर्थक समूह एकजुट होकर सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए काम कर रहे हैं।

राम रतन राम

राम रतन राम एक प्रमुख दलित नेता थे जिन्होंने 1952 में बिहार विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद लगातार हर चुनाव में विजय प्राप्त की। कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख सदस्य के रूप में, उन्होंने एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राम रतन राम झारखंड राज्य के गठन के अग्रदूतों में से एक माने जाते हैं और बिहार सरकार में पशु और मछली संसाधन विभाग के मंत्री के रूप में भी कार्य किया। उनकी राजनीतिक सक्रियता और योगदान ने दलित समाज और झारखंड राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

केआर नारायणन

केआर नारायणन भारतीय राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे। उन्हें 1992 में भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया और 1997 में भारत के दसवें राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया। केरल के पहले दलित राष्ट्रपति के रूप में, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संवैधानिक मर्यादाओं और संविधान की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका कार्यकाल एक नए युग की शुरुआत और दलित समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।

रामनाथ कोविंद :

रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश से भाजपा के दलित नेता थे जिन्होंने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें भारत के 14वें राष्ट्रपति के रूप में चुना गया, और 1994 में उन्होंने यूपी से राज्यसभा के लिए चुनाव जीते। वे 12 वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य रहे और इस दौरान कई संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे। उनके नेतृत्व में, एक राष्ट्र-एक चुनाव को लेकर बनाई गई समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। रामनाथ कोविंद की राजनीति और राष्ट्रपति पद पर उनका कार्यकाल भारतीय लोकतंत्र में दलित समाज के योगदान को महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित करता है।

जीएमसी बालयोगी

जीएमसी बालयोगी 90 के दशक के अंत में भारतीय राजनीति के एक प्रमुख दलित नेता बने। 1998 में मध्यावधि चुनावों के बाद 12वीं लोकसभा का गठन हुआ, जिसमें भाजपा की अगुआई वाली एनडीए सरकार बनी। वाजपेयी सरकार ने स्पीकर का पद तेलुगू देशम पार्टी को सौंपा और जीएमसी बालयोगी को देश का पहला दलित स्पीकर चुना गया। उनकी नियुक्ति ने भारतीय राजनीति में दलितों की भागीदारी को नई दिशा दी और उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त हुआ।

मीरा कुमार :

मीरा कुमार एक प्रभावशाली दलित नेता हैं जिन्होंने 2017 में राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए की उम्मीदवार के रूप में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने 1985 में यूपी के बिजनौर से चुनावी राजनीति में कदम रखा और पांच बार लोकसभा सांसद चुनी गईं। वे राम विलास पासवान और मायावती को भारी मतों से हराकर चर्चित हुईं। इसके अतिरिक्त, वे 15वीं लोकसभा की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। मीरा कुमार, पूर्व उप-प्रधानमंत्री जगजीवन राम की बेटी होने के साथ-साथ दलित समाज के लिए एक महत्वपूर्ण आवाज बनीं।

मुख्यमंत्री

दामोदरम संजीवय्या (आंध्र प्रदेश) – 1960 के दशक में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वे भारतीय राजनीति में दलित समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में उभरे और उनके कार्यकाल में कई सामाजिक और आर्थिक सुधार हुए।

रामसुंदर दास (बिहार) – 1990-1991 के दौरान बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उनकी सरकार ने बिहार के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और दलित समुदाय के हितों की रक्षा की।

भोला पासवान (बिहार) – 1980 के दशक में बिहार के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने राज्य की राजनीति में दलित समुदाय की भूमिका को मजबूत किया और कई समाजिक सुधारों की शुरुआत की।

जगन्नाथ पहाड़िया (राजस्थान) – 1980 के दशक के अंत में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। उनके कार्यकाल में दलितों और पिछड़ों के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं लागू की गईं।

मायावती (उत्तर प्रदेश) – उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती, दलित समाज की एक प्रमुख नेता हैं। उनकी नीतियों ने उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के लिए कई अवसर प्रदान किए और सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

सुशील कुमार शिंदे (महाराष्ट्र) – महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका कार्यकाल दलित समुदाय के उत्थान के लिए कई नीतियों के कार्यान्वयन के लिए जाना जाता है।

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चरणजीत सिंह चन्नी (पंजाब) – 2021 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। वे पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं और उनके कार्यकाल में राज्य में सामाजिक न्याय और विकास के लिए कई पहल की गईं।

इस समय की बात करें तो चंद्रशेखर आजाद और मायावती दोनों ही प्रमुख दलित नेताओं के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण और राजनीतिक करियर अलग हैं:

चंद्रशेखर आजाद: वह आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष हैं और उन्होंने विशेष रूप से दलित समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। उनकी पार्टी का उद्देश्य समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देना है।

मायावती: वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख हैं और उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश और हरियाणा में दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए जानी जाती हैं। उनकी पार्टी का मूल उद्देश्य समाज में समानता और सामाजिक न्याय स्थापित करना है।

इन नेताओं ने अपने-अपने राज्यों में दलित समाज के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और भारतीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ी। ये नेता अपने-अपने क्षेत्रों में दलित समुदाय की आवाज़ उठाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक रणनीतियाँ और विचारधाराएं अलग-अलग हैं।

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