भारतीय राजनीतिज्ञ एवं बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की राष्ट्रीय अध्यक्षा मायावती बुधवार को अपने जीवन के 67 वर्ष पूर्ण कर रही है, मायावती भारतीय समाज के सबसे कमजोर वर्गों बहुजनों, अन्य पिछड़ा वर्ग और धार्मिक अल्पसंख्यकों के जीवन में सुधार के लिए सामाजिक परिवर्तन के एक मंच पर केंद्रित बहुजनो की सबसे ताकतवर महिला है ! बहुजन राजनीति की पुरोधा भारतीय राजनीति में अपना दखल रखने वाली इस दलित महिला ने चार बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की बागडोर संभाली है !
व्यक्तिगत जीवन
मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को श्रीमती सुचेता कृपलानी अस्पताल, नई दिल्ली में एक हिंदू चमार (दलित) परिवार में हुआ था। उनके पिता, प्रभु दास, बादलपुर, गौतम बुद्ध नगर में एक डाकघर कर्मचारी थे। परिवार के पुत्रों को निजी स्कूलों में भेजा गया था, जबकि बेटियां “कम-प्रदर्शन वाली सरकारी विद्यालयों” में गई थीं। मायावती के 6 भाई एवं 2 बहनें हैं। लोग सम्मान में इन्हें बहन जी कह कर पुकारते हैं। उनके परिवार का सम्बन्ध चमार जाति के जाटव उपजाति से है।
मायावती कालिंदी कॉलेज, दिल्ली, से कला में स्नातक है। इसके बाद इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से एल.एल.बी और बी. एड भी किया।
मायावती पढ़ने में बचपन से ही तेज थी। वो हमेशा से आईएएस बनना चाहती थी। ये बात बहुत कम ही लोग जानते है कि मायावती ने एक साथ 9वी, 10वी, और 11वीं की परिक्षा दी है। मात्र 16 साल की उम्र में उन्होने 12 वीं परिक्षा दी जिसमें उन्होने अच्छे नंबर से स्कोर किया।
अंबेडकरवादी समूहों में जब आज भी बहुत कम महिलाएं नेतृत्वकारी भूमिका में हैं तो चार दशक पहले 21 साल की, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला, जो अपनी दलित पहचान के प्रति राजनीतिक रूप से जागरुक और आक्रमक है, किसी ने शायद ही कल्पना की होगी की ये महिला आगे चलकर देश के सबसे बड़े सूबे की चार-चार बार बागडोर संभालेगी और पहली दलित मुख्यमंत्री होने का श्रेय प्राप्त करेगी !
राजनीति में आगमन
कुछ वर्षों तक मायावती दिल्ली के एक स्कूल में शिक्षण कार्य भी करती रहीं, लेकिन वर्ष 1977 में दलित नेता कांशीराम से मिलने के बाद उन्होंने पूर्णकालिक राजनीति में आने का निश्चय कर लिया। कांशीराम के नेतृत्व के अंतर्गत वह उनकी कोर टीम का हिस्सा रहीं, जब 1984 में उन्होंने अपनी पार्टी ‘बसपा’ की स्थापना की थी।
उस समय मुज़फ़्फ़रनगर जिले की कैराना लोकसभा सीट से मायावती जी को चुनाव लड़ाया गया। इसके बाद हरिद्वार और बिजनौर सीट के लिए भी मायावती को ही प्रतिनिधि बनाया गया। पहली बार बिजनौर सीट से जीतने के बाद ही मायावती लोकसभा पहुँच गयी थीं। वर्ष 1995 में वे राज्यसभा की सदस्य भी रहीं। 1995 में मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। इसके पश्चात् वे दोबारा 1997 और तीसरी बार 2002 में मुख्यमंत्री बनीं। वर्ष 2001 में कांशीराम ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। 2007 में मायावती पूर्ण बहुमत के साथ यूपी की चौथी बार मुख्यमंत्री बनी।
कुशल प्रशासक
प्रशासक के रूप में ‘बहन जी’ का तेवर हमेशा उग्र रहा है और उन्होंने समझौता नहीं किया. उत्तर प्रदेश के एक बड़े किसान नेता महेन्द्रसिंह टिकैत द्वारा एक जन सभा में जिसमें, अजीत सिह भी मौजूद थे, मायावती को गालियां दी गई. बहन जी ने टिकैत की गिरफ्तारी का आदेश दिया. टिकैत बिजनौर से मजबूत आधार वाले अपने गांव सिसौली (मुजफ्फर नगर) लौट आया. गांव की घेराबन्दी कर दी गई. पानी बिजली काट दी गई. अंत में बड़बोला टिकैत अपनी औकात में आ गया. उसने गिड़गिडा़ते हुए मुख्यमंत्री मायावती से माफी मांगी और उसको गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं मुलायम राज को पटखनी देकर तब सत्ता में पहुंची मायावती ने यूपी के बड़े-बड़े गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कई अंडरग्राउंड हो गए . सख्त प्रशासन के लिए विपक्षी भी उनका लोहा मानते हैं. चाहे किसी जाति या धर्म का व्यक्ति हो, प्रदेश की आम जनता ने बसपा शासन में हमेशा सुरक्षित महसूस किया. खासकर महिलाओं ने एक महिला मुख्यमंत्री के प्रसाशन को काफी पसंद किया.
‘चढ़ गुंडो की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर’ जैसे नारे एक वक्त उत्तर प्रदेश की फिजाओं में खूब गूंजे थे. मायावती ने हमेशा से अपनी कड़क छवि के अनुरूप ही काम किया. बहुजन नायकों के सम्मान को लेकर भी मायावती हमेशा सचेत रहीं. यह तब देखने को मिला जब 2007 में उन्होंने लखनऊ के अंबेडकर स्मारक के रख रखाव में कोताही बरतने के कारण कुछ अधिकारियों को निलंबित कर दिया ! मायावती एक कठोर प्रशासक के रूप में जानी जाती है उन्हें ‘आयरन लेडी’ भी कहा जाता है !
“मायावती-कांशीराम संबंध की कहानी गुरु-शिष्य संबंधों के साथ ही उन संबंधों की बेड़ियों को तोड़कर शिष्या का अपने गुरु से सफल राजनीतिज्ञ बनने की कथा भी है. मायावती जो कर सकीं उसके लिए उन्हें असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा”.
आयरन लेडी
जहां कांशीराम लोगो से घुलना मिलना, राजनैतिक संघर्ष और गपशप में यकीन रखते थे वही मायावती अंतर्मुखी रहते हुए राजनैतिक बहसों को समय की बर्बादी मानती थीं. मायावती का ये अंदाज़ अब भी बरकरार है. वे आज भी चुपचाप अपना काम करती हैं. राजनैतिक अटकलबाजियों में ना तो वो खुद शामिल होती हैं ना ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को शामिल होने देती हैं.
अस्सी के दशक में जब वे आम अध्यापिका थीं तब भी वे अपनी शख्सियत के मुताबिक़ पूछा करती थी “अगर हम हरिजन की औलाद है तो क्या गांधी शैतान की औलाद थे.” अपने इसी तेज तर्रारी व खरी तेजाबी जुबान से ,जब उन्होंने वर्णवादी व्यवस्था को मनुवादी कह कह कर हिंदी क्षेत्रों में लताड़ना शुरू किया तो वर्षो से दबे हुए दलित समाज ने उन्हें अपनी आवाज़ और अपने लिए युद्धरत एक सिपाही को मायावती के रूप में पाया. कांग्रेस में वोटबैंक की मानिंद सिमटे रहने वाले दलित अधिकारी नेता अब आज़ाद महसूस करने लगे और अस्सी के दशक का ‘हरिजन’ कब राजनैतिक व्यक्तित्व को प्राप्त कर ‘दलित’ बन गया ये पता ही नहीं चला.
मायावती के विरोधी भले ही उनको लेकर मनगढ़ंत कहानियां गढ़ते फिरें और उन पर तानाशाही का आरोप लगाते रहें, मायावती का राजनीतिक जीवन इतना आसान नहीं रहा है. मायावती पहले बामसेफ और फिर डीएस फोर में सक्रिय हुईं. दोनों संगठनों की स्थापना क्रमश: 1978 और 1981 में हुई थी. उस समय इन संगठनों से मायावती का जुड़ाव यह साबित करता है कि सत्ता उनका साध्य नहीं थी. वह खुद तय किए उद्देश्य के लिए लड़ रही थीं. यह वह समय था जब दलित आंदोलन का कोई भविष्य नहीं दिखता था, कोई मानने को तैयार नहीं था कि बहुजन आंदोलन कभी सफल भी होगा. मायावती जी आज जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया है. निजी जिंदगी में परिवार के स्तर पर भी उन्होंने बहुत तकलीफें सही.
पुस्तकें
मायावती के ऊपर कई पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं। इनमें पहला नाम ‘आयरन लेडी कुमारी मायावती’ का है। मायावती ने स्वयं हिन्दी में ‘मेरा संघर्षमयी जीवन’ और ‘बहुजन मूवमेंट का सफ़रनामा’ तीन भागों में लिखा है। ये दोनों ही पुस्तकें काफ़ी चर्चित रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस द्वारा लिखी गयी ‘बहनजी: अ पॉलिटिकल बायोग्राफ़ी ऑफ़ मायावती’, मायावती से संबंधित अब तक की सर्वाधिक प्रशंसनीय पुस्तक है।
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