बिल्किस केस में गैंगरेप के दोषियों को गुजरात की भाजपा सरकार ने न सिर्फ रिहा किया था, बल्कि उनका फूलमालाओं से इस तरह भव्य स्वागत किया था, जैसे कि कोई महान काम करने के बाद उन्हें पुरस्कृत और सम्मानित किया जा रहा हो…
Bilkis Bano Case : बिल्किस बानो केस में एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने जनता के उम्मीदों को बरकरार रखने का काम किया है। गौरतलब है कि गुजरात सरकार द्वारा बिल्किस बानो के दोषियों को बरी कर दिया था, जिसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। इस पर फैसला देते हुए कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले पर कड़ा सवाल उठाते हुए उन्हें दोबारा जेल भेजने का फैसला सुनाया था। इस फैसले के खिलाफ दोषियों ने आत्मसमर्पण के लिए अजीब-अजीब कारण गिनाते हुए मोहलत मांगी थी, जिसे आज 19 जनवरी को हुई सुनवाई में कोर्ट ने खारिज कर दिया। यानी कि बिल्किस बानो के दोषियों को अब हर हाल में 21 जनवरी तक सरेंडर करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने आदेश को जारी रखते हुए बिल्किस बानो गैंगरेप और उनके परिजनों की हत्या के सभी दोषियों को बिना किसी बहाने के 21 जनवरी तक सरेंडर करने का आदेश दिया है। बिलकिस बानो केस के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में खुद के हेल्थ इश्यू से लेकर अपने बूढ़े-मां-बाप के साथ ही बच्चों की शादी तथा अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए मोहलत मांगी थी।
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वर्ष 2002 गुजरात दंगों के तौर पर जाना जाता है और इसके न सूखने वाले घाव आज भी जहां-तहां दिख जाते हैं। इसी दौरान मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने वाली बिलकिस बानो से न केवल नृशंसतापूर्वक सामूहिक दुष्कर्म किया गया था, बल्कि उनके परिवार के सात सदस्यों को उन्हीं के सामने मौत के घाट उतार दिया गया था। इन सभी दोषियों को दोष सिद्ध होने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी थी, मगर 15 अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने उनकी सजा माफ कर दी थी। 11 दोषियों में बकाभाई वोहानिया, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, गोविंद, जसवन्त नाई, मितेश भट्ट, प्रदीप मोरधिया, राधेश्याम शाह, राजूभाई सोनी, रमेश चांदना और शैलेश भट्ट शामिल रहे। इन दोषियों को गुजरात की भाजपा सरकार ने न सिर्फ रिहा किया था, बल्कि उनका फूलमालाओं से भव्य स्वागत किया था, जैसे कि किसी वीरता का काम करने के बाद उन्हें पुरस्कृत किया जा रहा हो।
गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने न केवल बिलकिस बानो के दोषियों की सजा बरकरार रखी बल्कि आत्मसमर्पण करने की समय सीमा 21 जनवरी तक तय की थी। इन दोषियों में शामिल राजूभाई नाई ने सरेंडर करने की समयसीमा बढाने को लेकर जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी, उसमें कहा था, ‘प्रतिवादी स्वयं एक बूढ़ा व्यक्ति है, जो अस्थमा से पीड़ित है और उसका स्वास्थ्य वास्तव में खराब है। प्रतिवादी का हाल ही में ऑपरेशन किया गया था और उसे एंजियोग्राफी से गुजरना पड़ा था। यह भी अवगत कराया जाता है कि प्रतिवादी को बवासीर के इलाज के लिए अभी एक और ऑपरेशन कराना है।’ याचिका में राजूभाई नाई ने राहत पाने के लिए बिस्तर पर पड़े अपने 88 वर्षीय पिता के खराब स्वास्थ्य का भी हवाला कोर्ट के सामने दिया था।
आत्मसमर्पण के लिए और अधिक मोहलत मांगते हुए दोषी रमेश चांदना ने अपनी याचिका में कोर्ट के सामने जो गुजारिश की थी, उसके लिए तो सोशल मीडिया पर तरह-तरह से चुटकियां ली जा रही हैं। रमेश चांदना ने याचिका में आत्मसमर्पण की डेट बताने के लिए गुजारिश की थी कि वह अपनी फसलों की देखभाल कर रहा है और फसलें कटाई के लिए तैयार हैं। वह परिवार में एकमात्र पुरुष सदस्य है और उसे फसलों की देखभाल करनी पड़ती है। इसके अलावा याचिकाकर्ता का छोटा बेटा विवाह योग्य उम्र का है और याचिकाकर्ता पर इस मामले पर गौर करने की जिम्मेदारी है तथा माननीय न्यायालय की कृपा से यह मामला भी पूरा हो सकता है।‘
वहीं एक अन्य दोषी प्रदीप मोरधिया ने कहा कि फेफड़े की सर्जरी के बाद उन्हें चिकित्सकों से नियमित परामर्श की आवश्यकता है तो बिल्किस बानो गैंगरेप में शामिल मितेश भट्ट ने कहा कि उसकी सर्दियों की फसल कटाई के लिए तैयार है और उसे आत्मसमर्पण करने से पहले कार्य पूरा करना होगा। वहीं बिपिन चंद्र जोशी ने सजा से राहत पाने के लिए हाल ही में पैर की सर्जरी का हवाला कोर्ट के सामने दिया था।
गौरतलब है कि अच्छे व्यवहार को आधार बनाकर गुजरात सरकार ने बिल्किस बानो गैंगरेप और उनके 7 परिजनों के 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर उनका फूलमालाओं से स्वागत किया गया था।
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