क्या बसपा के शासन में अफसरशाही की ऐसी अहंकारी तस्वीर संभव थी?

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राजा (जन प्रतिनिधि) के बजाय नौकरों का आव-भगत करने वाली जनता का सरकारीतंत्र द्वारा शोषण समान्य बात है.बहुजन आन्दोलन के कारवां को बढ़ाने का दावा करने वाले गुमराह लोग किस कदर चमचागीरी पर उतर आये है यह गौर करने लायक है.

बहुजन आन्दोलन राष्ट्र निर्माण का आन्दोलन है, देश के हर क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना इसका एक अहम उद्देश्य है, लोकतंत्रीकरण हेतु जन प्रतिनिधियों का उचित चुनाव करना आवश्यक है जिससे कि राजनीति के प्रति नकारात्मकता को दूर किया जा सके क्योंकि राजनीति ही इस देश की धुरी है.

इस देश के फिल्म हो, कहानी हो या कोई आम चर्चा नेताओं को हमेशा भ्रष्ट के तौर पर प्रचारित किया जाता है, फिल्म जगत की फिल्में तो सिर्फ नेताओं को खलनायक दिखाकर ही व्यापार कर रही है.

नेताओं को विलेन के तौर पर प्रचारित करने का सिलसिला 1995 के बाद से जोर पकड़ा है, इसकी वजह है राजनीति में अपने एजेंडे और अपनी शर्त के साथ बहुजन समाज की सक्रिय दस्तक. फिल्म जगत ने जन प्रतिनिधि को खलनायक और हवलदार को मसीहा बना दिया है.

सामान्य तौर पर देखा जाए तो 1995 के पहले विधायक, सांसद आदि का बड़ा मान-सम्मान होता था, ऐसा नहीं है कि उनमें भ्रष्ट नहीं थे बल्कि तुलनात्मक तौर पर वे ज्यादा ही भ्रष्ट रहे हैं परन्तु उनमें एक खास बात थी कि वे सब तथाकथित उच्च जाति से आते थे.

1995 के बाद जब बहुजन समाज की धमाकेदार एंट्री होती है तो राजनीति में त्रिवर्णो का एकछत्र राज डगमगाने लगता है. इसलिए मनुमीडिया के जरिये राजनीति को बदनाम किया जाने लगा, आप गौर कीजिए तो आप पायेगें कि जिन नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामले दर्ज हुए, जिनको सजा सुनाई गई, जेल जाना पड़ा, सबसे ज्यादा अपमान झेलना पड़ा, उनमें से अधिकतर बहुजन समाज के नेता है. ऐसा क्यों? क्या त्रिवर्णो के नेता भ्रष्ट नहीं है? ऐसा इसलिए किया गया ताकि बहुजन समाज राजनीति से दूर रहे और त्रिवर्णो का राज चलता रहे परन्तु बहुजन आन्दोलन कहाँ पीछे जाने वाला है.

फिलहाल बहुजन नेताओं का सम्मान तो मनुवादी वैसे भी नहीं करते हैं, दुखद है कि मनुवादियों के षड्यंत्र में फंस कर बहुजन भी अपनी पार्टी और अपने नेता को बदनाम करने में मनुवादियों का पूरा सहयोग कर रहे हैं.

मान्यवर साहेब ने कहा कि हुक्मरान बनो, अपनी पार्टी, विचारधारा के साथ आगे बढ़ो, अपने नेता को मजबूत करो, उनका सम्मान करो, लेकिन बहुजन समाज के लोग अपने नुमाइंदों का मान-सम्मान करने के बजाय अपने नौकरों का आव-भगत कर रहे हैं, अपने जन प्रतिनिधि को गाली देते हैं और अपने क्षेत्र में ट्रांसफर होकर आने वाले चपरासी, हवलदार, थानेदार, एसपी, कलेक्टर को बधाई दे कर स्वागत करते हैं. जनता को ज्ञान होना चाहिए कि उनका यह चरित्र लोकतंत्र को नहीं, लोकशाही (तानाशाही) को मजबूत करता है.

बहनजी ने अपने शासन के दौरान जनता को बताया कि चपरासी, हवलदार, एससी, डीएम, सचिव और अन्य सभी अधिकारी-कर्मचारी जनता के नौकर हैं. आपका वोट, आपके वोट की बदौलत आप द्वारा चुना गया आपका प्रतिनिधि देश का संचालक है, इसके बावजूद जब आप अपने जन प्रतिनिधि के बजाय अपने नौकरों के पैरों में दण्डवत होगें तो सरकारीतंत्र द्वारा आपका शोषण होना ही है, इसमें गलती राजनीति या राजनेता की नहीं बल्कि जनता की है. जनता की सामंतों के गुलामी वाली सोच की है.

जब तक जनता, सही जन प्रतिनिधि चुनने, जन प्रतिनिधि से जुड़ने और अपने जन प्रतिनिधि का सम्मान करने के बजाय अपने क्षेत्र में ट्रांसफर हो जाए जनता के नौकरों (अधिकारियों-कर्मचारियों) का आव-भगत करती रहेगी तब तक इनका सरकारीतंत्र द्वारा शोषण जारी रहेगा.

नोट –
संलग्न तश्वीर में होना यह चाहिए था कि आम जनता को ससम्मान कुर्सी मिलती और सरकारी नौकर उसकी समस्या पूछते और निदान करते.

लेखक – इं. इन्द्रा
(B. Tech – IT, NIT Allahabad)

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