23 मार्च की तारीख इतिहास के पन्नों में शाहदत दिवस के तौर पर दर्ज है। इसी दिन देश की आजादी के लिए “इंकलाब जिंदाबाद” के नारे के साथ अंग्रेज़ी हुकुमत के खिलाफ लड़ने वाले देश के तीन वीर सपूत भगत सिंह, शिवराम राजगुरु औऱ सुखदेव को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। हर साल इस दिन तीनों महान क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए 23 मार्च को शहीद दिवस मनाया जाता है। आपने भगत सिंह, शिवराम राजगुरु औऱ सुखदेव से जुड़े कई लेख पढ़े होगें जिनमें उनकी जिवनी, देश की आज़ादी को लेकर उनके विचार और फांसी दिए जाने से पहले उनकी स्थिती सब बाखूबी बयां की गई होगी। लेकिन आज 92वें शहादत दिवस पर हम आपको बताते हैं कि भगत सिंह, बाबा साहेब अंबेडकर और महात्मा ज्योतिबा फुले के विचारों से कितने प्रभवित थे। साथ ही भारत की जड़ो में बसी हुई जाति व्यवस्था पर भगत सिंह के क्या विचार थे…।
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जाति व्यवस्था पर भगत सिंह :
जाति व्यवस्था की आलोचना करते हुए भगत सिंह ने पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत की बात की है। उनके मुताबिक समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के कारण भीषण अत्याचार के कारण उत्पन्न होने वाले आक्रोश और क्रोध को रोकने के लिए पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत काम करता है। इन दोनों के माध्यम से लोगों में यह भय बनाए रखा जाता है कि, तुम इसलिए इस जाति में जनमें हो क्योंकि ये तुम्हारे पूराने जन्म के कर्मो का फल है। और कर्म के आधार पर ही जाति निर्धारित होती है। भगत सिंह का कहना था कि सनातन धर्म के आधार पर ही समाज में अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था को वैधता और बल मिलता है। और इसलिए अस्पृश्यता से लड़ने के लिये धर्म से लड़ना पड़ेगा।
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जाति व्यवस्था की जड़ें हिंदू धार्मिक ग्रंथों में निहित हैं :
बाबा साहेब अंबेडकर और ज्योतिबा फुले की ही तरह भगत सिंह भी यह मानते हैं थे कि कि जाति व्यवस्था की जड़ें हिंदू धार्मिक ग्रंथों में निहित हैं। हिन्दू धर्म में सिद्धांत ‘शुद्धता-अशुद्धता’ के इस सिद्धांत पर कटाक्ष करते हुए भगत सिंह ने 1924 में एक लेख लिखा। लेख का नाम था ‘अछूत समस्या।’
अपने इस लेख की शूरूआत में भगत सिंह लिखते हैं.. “हमारे देश- जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए। यहाँ अजब-अजब सवाल उठते रहते हैं। एक अहम सवाल अछूत-समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो 6 करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा! उनके मन्दिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे! कुएं से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआँ अपवित्र हो जाएगा!”
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इसी लेख में वह आगे लिखते हैं, “बीसवीं सदी में भी पण्डित, मौलवी जी जैसे लोग भंगी के लड़के के हार पहनाने पर कपड़ों सहित स्नान करते हैं और अछूतों को जनेऊ तक देने से इनकार कर देते हैं …”
कुत्ते को छुआ जा सकता है लेकिन इंसान को नहीं :
अपने इस लेख में भगत सिंह ने छुआछूत पर कटाक्ष करते हुए लिखा है कि,“कुत्ता हमारी गोद में बैठ सकता है। हमारी रसोई में निःसंग फिरता है, लेकिन एक इन्सान का हमसे स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है।” सनातन धर्म में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बताते हुए उन्होंने लिखा “…लोग यह भी कहते हैं कि इन बुराइयों का सुधार किया जाये। बहुत खूब! अछूत को स्वामी दयानन्द ने जो मिटाया तो वे भी चार वर्णों से आगे नहीं जा पाये। भेदभाव तो फिर भी रहा ही।”
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भगत सिंह ने अपने लेख में पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत पर क्या कुछ लिखा :
भगत सिंह जाति व्यवस्था में पुनर्जन्म और कर्म के सिद्धांत की आलोचना करते हुए लिखते हैं कि, “हमारे पूर्वज आर्यों ने इनके साथ ऐसा अन्यायपूर्ण व्यवहार किया तथा उन्हें नीच कह कर दुत्कार दिया एवं निम्नकोटि के कार्य करवाने लगे। साथ ही यह भी चिन्ता हुई कि कहीं ये विद्रोह न कर दें, तब पुनर्जन्म के दर्शन का प्रचार कर दिया कि यह तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का फल है। अब क्या हो सकता है? चुपचाप दिन गुजारो! इस तरह उन्हें धैर्य का उपदेश देकर वे लोग उन्हें लम्बे समय तक के लिए शान्त करा गए। लेकिन उन्होंने बड़ा पाप किया…”
(लेख में प्रयुक्त भगत सिंह के कोट्स न्यूज़कल्कि की वेबसाइट से लिए गए हैं )
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