शोध में पता चला है कि देश की संपत्ति का 85% से अधिक हिस्सा ऊंची जाति या सामान्य वर्ग के पास है। वहीं दलितों या अनुसूचित जाति के पास केवल 2.6 प्रतिशत हिस्सा है।
जाति व्यवस्था से पीड़ित भारत इस पृथ्वी पर एकलौता देश है। जाति का दंश झेल रहे लोगो की व्यथा जहां हजारों साल पुरानी है वहीं आज़ादी के 75 सालों बाद भी सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने की बातें भारत में कही जा रही है। ये सच्चाई है कि हमने आजादी पा ली लेकिन अपनी कमजोरियों और अपनी खामिय़ों पर हमनें आज तक गौर नहीं किया। जिसका जीता जागता सबूत है भारत पर की गयी एक शोध। जिसमें पता चला है कि भारत में 85 फीसदी संपत्ति पर केवल ऊंची जातियों का कब्जा है।
यह भी पढ़ें : क्या अब हार्वड जैसे विश्वविद्यालय में पढ़ाई नहीं कर पाएंगे महाराष्ट्र के दलित और पिछड़े वर्ग के छात्र ?
रिपोर्ट में क्या है :
वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब द्वारा की गयी एक शोध में पता चला है कि देश की संपत्ति का 85% से अधिक हिस्सा ऊंची जाति या सामान्य वर्ग के पास है। वहीं दलितों या अनुसूचित जाति के पास केवल 2.6 प्रतिशत हिस्सा है। हालांकि यह आंकड़ा केवल 2022 तक का है। जिसे वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की ओर से बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ साझा किया गया है।
लिस्ट से बाहर हैं आदिवासी :
वर्ल्ड इनइक्वेलिटी लैब द्वारा जारी लिस्ट जिसमें बताया गया है कि भारत में किस वर्ग के पास कितनी संपत्ति हैं उस लिस्ट में आदिवासी वर्ग से एक भी नाम शामिल नहीं है। मई, 2024 में जारी की गई इस रिसर्च को ‘टुवर्ड्सटैक्स जस्टिस एंड वेल्थ री-डिस्ट्रीब्यूशन इन इंडिया’ शीर्षक के साथ प्रकाशित किया गया है। एनएसएसओ की मानें तो देश में ओबीसी वर्ग की आबादी 40.94%, एससी वर्ग की आबादी 19.59%,एसटी वर्ग की आबादी 8.63% और अन्य वर्गों की आबादी 30.80% है। लेकिन यह बात सोचने वाली है कि देश की 85 फीसदी संपत्ति पर केवल एक ही वर्ग का एकाधिकार है।
यह भी पढ़ें : Delhi Result 2024 :दिल्ली की सातों सीटों पर किसका चला जादू , कितना रहा जीत का अंतर.. जानिए
हिस्सेदारी का सवाल :
भारत में लगातार हिस्सेदारी और भागीदारी का सवाल उठ रहा है। चुनावों में भी यह अहम मुद्दा रहता है। हाल के चुनावों में विपक्ष ने अपना पूरा चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ा। कहा गया कि अगर सत्ता में आए तो जाति आधारित सर्वे कराया जाएगा। जिससे यह पता चलेगा कि देश के कितने संसाधनों पर किस जाति का कितना हक बनता है। “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी” की यह बात सबसे पहले बसपा सूत्रधार मान्यवर कांशीराम ने कही थी। लेकिन दुखद बात है कि बातें, चुनावी वादे धरे के धरे रह जाते हैं। और हर साल ऐसी रिपोर्ट सामने आती है जिससे पता चलता है कि भारत में अमीर और अमीर बनता जा रहा रहा है। और गरीब और गरीब होता जा रहा है। उस पर भी जाति आधारित भेदभाव इसमें मुख्य भूमिका निभा रहा है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।