कृष्णा कुमारी ने ज़ोर जबरदस्ती से धर्म बदलवाने के जुर्म करार देने के कानून पर भी काम किया। लेकिन सीनेट में धार्मिक गुरुओं की कट्टरता के दखल देने के कारण ये कानून आगे नहीं बढ़ सका। इसके बाद भी पार्लियामेंट में कृष्णा कुमारी ने मानवाधिकारों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद की जिसके लिए “सीनेट” ने भी उनकी काफी सराहना की।
PAKISTAN, THARPARKAR : पाकिस्तान से एक ऐसी ख़बर सामने आई है जिसने महिला सशक्तिकरण की मिसाल कायम की है। ये खब़र उन पुरुषों के गाल पर भी तमाचा है जो केवल महिलाओं को घर के कामों तक सीमित देखना चाहते हैं। दरअसल पाकिस्तान में दलित समाज से आने वाली कृष्णा कुमारी वहां अपने समुदाय में ग्रेजुएट होने वाली पहली लड़की बनीं और फिर राजनीति में आकर अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कई बदलाव लाने पर काम किया।
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दलित कोहली परिवार में जन्म
BBC की रिपोर्ट के मुताबिक कृष्णा कुमारी का जन्म 45 साल पहले थरपारकर जिला के एक गांव दलित कोहली परिवार में हुआ था। इनका परिवार कर्जों में डूबा हुआ था। इनका परिवार बंधुआ मजदूरी करता था। एक बार इनका परिवार एक ज़मीदार के चंगुल में फंस गया था। इस ज़मीदार के चंगुल में कृष्णा का परिवार 3 सालों तक फंसा रहा था। पुलिस को जब इस बारे में पता लगा तो उनके परिवार को ज़मीदार के चंगुल से आज़ाद करवा दिया था। लेकिन इसके बाद भी आज़ादी कहां थी। क्योंकि यह वह समय था जब हिंदू और मुस्लिम एक बर्तन में खाना खा लेते थे लेकिन दलितों को दोनों वर्ग के लोग एक हाथ की दूरी पर रखते थे। दलितों के साथ उस समय में जातिगत भेदभाव चरम पर था। आज भेदभाव की वैसी छवि नहीं है जैसी कृष्णा कुमारी के परिवार को उस समय झेलनी पड़ी थी।
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बचपन से पढ़ने का शौक
कृष्णा कुमारी को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था। लेकिन उस समय कोहली समुदाय में लड़कियों के साथ लड़को को भी पढ़ने की आज़ादी नहीं थी। लेकिन कृष्णा स्वभाव से जिद्दी थी आसपास स्कूल न होने पर भी लड़को के प्राइमेरी स्कूल में दाखिला ले लिया। पूरे लड़को के स्कूल में एक लड़की थी वह थी “कृष्णा कुमारी “
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आठवीं कक्षा के बाद विवाह
कृष्णा कुमारी आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन आठवीं के बाद उनकी शादी हो गई। लेकिन सौभाग्य से उनके ससुराल वालों ने उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। पढ़ाई के साथ साथ कृष्णा ने घर की ज़िम्मेदारी भी बखूबी संभाली। उनके पति ने भी उनका साथ दिया। अपनी मेहनत और लगन से कृष्णा आगे बढ़ती रहीं और एक दिन वह तहसील नगरपालिका कोहली समुदाय की पहली महिला ग्रेजुएट बन गईं। आज कृष्णा कुमारी की एक लड़की डॉक्टर हैं तो दूसरी पीएचडी हैं और दो बच्चे य़ूनिवर्सिटी में पढ़ रहे हैं।
कानूनी जागरुकता के लिए NGO की स्थापना
साल 2008 में कृष्णा और उनके भाई ने मिलकर दलित समुदाय में कानूनी जागरुकता के लिए NGO की स्थापना भी की। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की मदद की। साल 2018 में कृष्णा कुमारी ने अपनी भाई से प्रेरित होकर राजनीति में कदम रखा और पीपुल्स पार्टी की टिकट पर पाकिस्तानी राज्यसभा “सीनेट” की सदस्स बन गईं।
मानवाधिकारों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद
कृष्णा कुमारी ने ज़ोर जबरदस्ती से धर्म बदलवाने के जुर्म करार देने के कानून पर भी काम किया। लेकिन सीनेट में धार्मिक गुरुओँ की कट्टरता के दखल देने के कारण ये कानून आगे नहीं बढ़ सका। इसके बाद भी पार्लियामेंट में कृष्णा कुमारी ने मानवाधिकारों के समर्थन में अपनी आवाज़ बुलंद की जिसके लिए “सीनेट” ने भी उनकी काफी सराहना की।
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पिछड़े और दलितों के लिए करेंगी काम
कृष्णा कुमारी ने इतिहास फिर से रचा जब उन्हें दो बार सीनेट प्रशासन पर काम करने का मौका मिला। एक बार महिला दिवस पर और दूसरा कश्मीर दिवस के मौके पर। 12 मार्च को सीनेट में कृष्णा कुमारी के 5 साल मुकम्मल हो गयें और अब वह फिर से थरपारकर जिला में पिछड़े लोगों के हलातों को बदलने के संघर्ष में एक आम सी महिला के रुप में फिर जुड़ गई हैं।
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