बाबा साहब सतगुरु रविदास से क्यों प्रभावित थे?

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मध्यकाल में जब सवर्ण और बहुजनों में सत्ता संघर्ष चल रहा था और दमन शुरु हो गया था ऐसे दौर में गुरु रविदास जी वह योद्धा थे जो बहुजनों को अपने दर्शन के माध्यम से एकत्रित और सशक्त कर रहे थे। जल-जंगल-ज़मीन-सम्मान आदि को संरक्षित करने के लिए गुरु रविदास श्रमण समाज में सामाजिक परिवर्तन के ज्ञान जा संचार करते हुये यह समझा रहे थे कि:-

ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,

पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण

करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस

कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच

नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच

जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,

रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात

बहुजनों व सवर्णों के मध्य सत्ता संघर्ष को बाबा साहब “क्रांति और प्रतिक्रांति” में विस्तृत वर्णन किये हैं। अध्याय ‘बौद्ध धम्म की अवनति और पतन के कारण’ में यह स्पष्ट लिखते हैं कि बौद्ध धम्म की अवनति व पतन के लिए हिन्दू व मुस्लिम शासकों के द्वारा बौद्धों पर बार-बार किया गया दमन है।

उल्लेखनीय है कि गुरु रविदास का आगमन ऐसे भयावह दौर में हुआ था जब बहुजनों के लगभग सारे अस्त्र सत्ता हथियाने में नाकामयाब नज़र आने लगे थे। और जैसे-जैसे ज़ुल्म बढ़ रहा था पूरी बहुजन आबादी के लिए अपना इतिहास व अस्तित्व बचा पाना लगभग असंभव होता नजर आ रहा था। उदाहरण के तौर पर यह यह देख सकते हैं कि जब अलाउद्दीन ख़िलजी ‘देव गिरी’ पर हमला किया तो “अहीर साम्राज्य” का पतन हो गया। इससे पहले कन्नौज का साम्राज्य तख़्त विहीन हो गया।

सतगुरु रविदास सवर्ण वर्चस्व को ख़ारिज करते हुये काशी (बनारस) के राजा के दरबार में ब्राह्मणों को दर्शन में हरा दिये और ब्राह्मणों को अपने कंधे पर गुरु रविदास की पालकी पूरे बनारस शहर में घुमानी पड़ी थी। बहुजन इतिहास में यह भीमा कोरेगांव से भी बड़ी लड़ाई थी जिसके पीछे न तो किसी राजवंश के हाथ था और न ही किसी अंग्रेज़ी हुकूमत का।और मध्यकाल में जब परिस्थियां इतनी निर्मम थीं उस वक़्त अपने ज्ञान के दम पर ब्राह्मणों के विद्वता को उन्होंने खारिज किया। बुद्ध के बाद इतिहास में ब्राह्मणों को राजदरबार में हारने का सेहरा गुरुरविदास के सर जाता है।

इसलिए बाबा साहब अपनी किताब “The untouchables who were they and why they became untouchables” सतगुरु रविदास जी को समर्पित किये थे। यह किताब 1948 में प्रकाशित हुई थी।

गुरु चोखामेला और गुरु नन्दनार को भी यही किताब समर्पित किये हैं।

बाबा साहब बहुजन गुरुओं के ऐतिहासिक कार्य को अपनी लेखनी व व भाषणों में उद्धरित किये हैं। बहुजन समाज में उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक और विश्व के अनेकों देशों में आज सतगुरु रविदास जी के अनुयायी हैं। जो उनके दर्शन का दिन-रात प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

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