क्या अब हार्वड जैसे विश्वविद्यालय में पढ़ाई नहीं कर पाएंगे महाराष्ट्र के दलित और पिछड़े वर्ग के छात्र ?

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महाराष्ट्र सरकार ने केवल SC, OBC छात्रों की पात्रता में बदलाव किया है। दूसरी तरफ सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए 60% अंक और आय सीमा 8 लाख रुपये है और उनकी छात्रवृत्ति राशि पर कोई सीमा नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि SC, OBC छात्रों की 2023-2024 वाली नियमावली अगड़ी जातियों की तुलना में अधिक कठोर हैं।

 

 महाराष्ट्र के दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग से आने वाले छात्र जो विदेश में जाकर पढ़ाई करने का सपना देख रहे हैं वह महाराष्ट्र सरकार के नए फैसले से नाराज हैं। दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने SC और OBC छात्रों को मिलने वाली विदेशी छात्रवृति में बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने इसकी सीमा को 60% से बढ़ाकर 75% कर दिया है। यानी अब महाराष्ट्र में रहने वाले दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र जो विदेश में पढ़ाई करना चाहतें हैं उन्हें 10वीं से लेकर अपनी स्नातक (BA Education) और स्नातकोत्तर (MA Education) में 75 % मार्क्स लाने होंगे। बताते चले कि केंद्र सरकार ने अपनी इस योजना में कोई बदलाव नहीं किया है। वहीं विदेशी शिक्षा छात्रवृत्ति प्रदान करने वाली केंद्र और अन्य राज्य सरकारों ने विदेश में पाठ्यक्रम करने के लिए नवीनतम डिग्री में कट-ऑफ 55% से 60% अंक निर्धारित किया है।

 

क्या है महाराष्ट्र सरकार का फैसला :

देश भर में दलित, पिछड़े और आदिवासी छात्रों की पढ़ाई के लिए योजनाएं चलाई जाती हैं। जिसमें विदेशी छात्र वृति भी एक है। केंद्र सरकार के साथ हर एक राज्य में SC, OBC और ST छात्रों के लिए ऐसी योजनाओं पर काम किया जाता है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने अपनी इस योजना में बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने SC और OBC छात्रों को मिलने वाली विदेशी छात्रवृत्ति की सीमा/ पात्रता में बदलाव करते हुए इसे 60 % से बढ़ाकर 75% कर दिया है। यानी अब उन सभी दलित और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों को विदेश में पढ़ाई करने के लिए 10वीं और 12वीं में 75 फीसदी या उससे अधिक अंक अर्जित करने होंगे। बता दें कि यह सीमा पहले 60%  थी। वहीं कई राज्यों और केंद्र की योजना में इस पात्रता के लिए 55% से 60% अंक निर्धारित किया गया है। इतना ही नही राज्य ने अनुसूचित जातियों पर 8 लाख रुपये की आय सीमा भी लगा दी है, जबकि केंद्रीय कानून में ऐसा कुछ नहीं है।

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केवल SC, OBC की नियमावली में बदलाव :

करियर 360 की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार हर साल हाशिए के समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए 75 एससी(SC) , 40 एसटी(ST) और 75 ओबीसी (OBC) छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है। इसी के साथ तकनीकी शिक्षा निदेशालय (DOTI) विदेश में उच्च शिक्षा के लिए 40 सामान्य श्रेणी के छात्रों को भी छात्रवृत्ति प्रदान करता है। फिलहाल, राजर्षी शाहू महाराज छात्रवृत्ति योजना के तहत Sc, OBC छात्रों के लिए नयी नियमावली के साथ आवेदन मांगे गए हैं जो छात्रों को 30 जून तक देते हैं।

लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार ने केवल SC, OBC छात्रों की पात्रता में बदलाव किया है। दूसरी तरफ सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए 60% अंक और आय सीमा 8 लाख रुपये है और उनकी छात्रवृत्ति राशि पर कोई सीमा नहीं है। रिपोर्ट कहती है कि Sc, OBC छात्रों की 2023-2024 वाली नियमावली अगड़ी जातियों की तुलना में अधिक कठोर हैं।

image credit the college pod

 

 

महाराष्ट्र सरकार का फैसला SC, OBC छात्रों की पढ़ाई में बन रहा बाधा :

महाराष्ट्र सरकार के इस नए फैसले ने विदेश में आगे की पढ़ाई करने के लिए नवीनतम डिग्री और कक्षा 10वीं और 12वीं में 75% अंकों के साथ-साथ एससी और ओबीसी छात्रों के लिए वार्षिक पारिवारिक आय सीमा 8 लाख रुपये तय की है। इसने मास्टर्स के लिए छात्रवृत्ति राशि को 30 लाख रुपये और पीएचडी के लिए 40 लाख रुपये तक सीमित कर दिया है। सरकार के इस फैसले ने हाशिए पर पड़े समुदायों के कई छात्रों की विदेश में अध्ययन की योजना को खतरे में डाल दिया है। समुदाय के नेताओं और अंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह नीति परिवर्तन पहली पीढ़ी के शिक्षार्थियों की उच्च शिक्षा योजनाओं को बाधित करने वाला है। वहीं दूसरी तरफ इस फैसले को लेकर छात्रों में भी खासी नाराज़गी है। छात्रों का कहना है कि अनुसूचित जातियों के बीच क्रीमी लेयरको परिभाषित करना “असंवैधानिक” है। छात्रों और शैक्षणिक नेताओं ने  इसके खिलाफ महाराष्ट्र हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की है।

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सरकार के फैसले से नाराज छात्र :

महाराष्ट्र के बुलढाणा के रहने वाले 28 वर्षीय एकनाथ वाघ ने 2021 में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से अपना MA पूरा किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय, अमेरिका की प्रवेश परीक्षा पास कर ली है। वाघ ने 2017 में पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में बीए इकोनॉमिक्स में 71% अंक हासिल किए। लेकिन अब उनका कहना है कि हार्वर्ड में पढ़ाई करना उनके लिए सपना ही रह जाएगा। क्योंकि सरकार का यह फैसला इसमें सबसे बड़ी बाधा है। मार्च 2024 में हार्वर्ड से उन्हें प्रवेश का प्रस्ताव पत्र मिला था और उन्होंने 15 अप्रैल को 250 अमेरिकी डॉलर (20,890 रुपये) का भुगतान करके प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा,

मेरा कोर्स जून में शुरू हुआ और मैं ऑनलाइन कक्षाओं में भाग ले रहा हूँ। अगस्त 2024 में शारीरिक कक्षाएं शुरू होंगी और मुझे फीस जमा करनी होगी। जब तक मेरे पास कोई प्रयोजक नहीं होगा जो विश्वविद्यालय को मेरी फीस जमा करेगा, मैं शारीरिक कक्षाओं में भाग नहीं ले सकता। हार्वर्ड में अपनी कक्षाएं जारी रखने के लिए मुझे महाराष्ट्र सरकार से छात्रवृत्ति पुरस्कार पत्र की आवश्यकता है।”

अगर ग्रेजुएशन में 75% अंक का नियम लागू रहा तो मैं आगे नहीं पढ़ पाऊँगा। मैं इस दौड़ से बाहर हो जाऊँगा। मुझे नहीं पता कि हार्वर्ड मेरा प्रस्ताव टालेगा या नहीं।” यह कहानी केलव वाघ की नहीं है। जमीनी स्तर से आने वाले छात्र जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। हाशिए पर हैं लेकिन पढ़ाई में होनहार है अब सरकार द्वारा जो उन्हें शिक्षा मिलती थी उस पर भी सवालिया निशान लग चुका है।

एक अन्य छात्र सुमित झाम्बुलकर ने आरोप लगाया कि सरकार चाहती है कि हाशिए पर पड़े समुदायों के बच्चे पढ़ाई न करें, 

“पहले न्यूनतम पात्रता प्रतिशत 55% था, कोई वित्तीय आय मानदंड नहीं था। लेकिन अब मास्टर्स के लिए 30 लाख रुपये और पीएचडी के लिए 40 लाख रुपये की सीमा है। एक छात्र अन्य खर्चों को कैसे वहन करेगा? विदेशी विश्वविद्यालयों में मास्टर्स और पीएचडी की सामान्य लागत प्रति वर्ष 40-50 लाख रुपये है सुमित ब्रिस्टल विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए चुने गए हैं।

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महाराष्ट्र सरकार के इस फैसले का अंबेडकरवादी नेताओं, छात्रों समेत विदेशों में रहने वाले लोग भी विरोध कर रहे हैं। अमेरिका में रहने वाले विविधता अधिवक्ता अनिल वागड़े ने इस पूरे मामले पर कहा है कि,

इन दिनों 30 लाख रुपये की सीमा कुछ भी कवर नहीं करती है। या तो सरकार को इस योजना को बंद कर देना चाहिए या सीमा हटा देनी चाहिए। पहले फीस के लिए कोई सीमा नहीं थी क्योंकि यह विश्वविद्यालय दर विश्वविद्यालय अलग-अलग होती है… कुछ हद तक, जीवन-यापन के खर्च की सीमा समझ में आती है क्योंकि यह मुद्रास्फीति से जुड़ी है। कई सरकारी अधिकारियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि अमेरिका जैसे देशों में छात्रों को कितना खर्च उठाना पड़ता है। अगर राज्य सरकार के पास पैसे नहीं हैं और वह मानदंडों में संशोधन नहीं करती है, तो उन्हें इस योजना को बंद कर देना चाहिए

वहीं छात्र प्रतिनिधि और एनजीओ द प्लेटफ़ॉर्म के सदस्य राजीव खोबरागड़े ने कहा,

विदेशी शिक्षा छात्रों के करियर को आगे बढ़ाती है। पहले भी झुग्गी-झोपड़ियों के कई छात्र इन विदेशी विश्वविद्यालयों और छात्रवृत्तियों के ज़रिए खुद को और अपने परिवार को आगे बढ़ाने में सफल हुए हैं।

 

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