भारतीय जनता पार्टी के कई बड़े नेता कौशांबी और आजमगढ़ में दलित सम्मेलन में भी शामिल हुए जिनमें अमित शाह, योगी आदित्यनाथ समेत कई लोग के नाम शामिल थे।।
यूपी में साल 2024 के में होने वाले ‘लोकसभा चुनावों’ को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों में किसी न किसी मुद्दे को लेकर कार्यक्रमों किए जा रहें हैं, जहां बसपा ‘गांव चलो आंदोलन’ की मुहिम चला रही है, तो वहीं भाजपा भी अपनी चुनावी रणनीति को बखूबी लेकर चल रही है।

भाजपा के नेताओं द्वारा यूपी के गांवों में ऐसे दौरा करना और ‘दलित सम्मेलन’ में शामिल होने का सीधा संबंध यूपी में साल 2024 के में होने वाले ‘लोकसभा चुनावों’ के लिए बोट बैंक हासिल करना है। आपको बता दें कि हाल ही में भाजपा ने उत्तर प्रदेश के 6 विधान परिषद सदस्यों के नामों की अधिसूचना राज्यपाल द्वारा जारी कर दी गई है। भारतीय राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है की 100 में से 80 सीटों पर किसी एक पार्टी के सदस्यों को मनोनीत किया गया हो।
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जिसको लेकर विपक्षी पार्टियों भाजपा पर तंज कस रही हैं, अन्य पार्टियों का कहना है कि भाजपा द्वारा जिन 6 विधान परिषद सदस्यों के नामों का ऐलान किया गया है उनका उद्देश्य है, पसमांदा समाज के मुसलमान, दलित और पूर्वांचल के राजभर समाज के वोट बैंक को साधने पर जोर देना है।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने एक बार फिर पूर्वांचल से मिशन 2024 के लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया है जिसके चलते पार्टी ने कौशांबी और आजमगढ़ में दलित सम्मेलन के जरिये आम चुनाव से पहले सियासी दांव खेल दिया है, इससे पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गाजीपुर से जनवरी में चुनावी शंखनाद किया था और पिछड़ा वोट बैंक को साधा था।
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वहीं मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो भारतीय जनता पार्टी के नेता अमित शाह, योगी आदित्यनाथ और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कल कौशांबी और आजमगढ़ का दौरा किया जहां करोड़ों की योजनाओं का ऐलान भी किया, जहां भाजपा नेता ‘दलित सम्मेलन’ में भी शामिल हो कर अपनी सहभागिता भी दर्ज की।

भाजपा के नेताओं द्वारा जारी इस रणनीति पर विपक्षी पार्टियों बिदक गई हैं कि आख़िर बीजेपी ने कौशांबी और आजमगढ़ से ही क्यों दलित कार्ड खेला है। साथ ही राजनीतिक अन्य पार्टियों में यह भी चर्चा हो रही है कि आख़िर क्या है अमित शाह के दलित सम्मेलन में शामिल होने के पीछे का महादांव ?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यूपी में लगभग 21 फीसदी वोट दलितों के ही हैं। दलितों की संख्या इतनी अधिक है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी केवल दलितों के वोट के आधार पर चुनावी मैदान में अपनी जीत हासिल कर सकती है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है ‘बहुजन समाजवादी पार्टी’

दलितों के वोट के आधर पर ही बसपा सुप्रीमो मायावती का मजबूत वोट बैंक रहा है। इसी वोट बैंक की बुनियाद पर मायावती ने चार बार सत्ता में भारी बहुमतों से जीत हासिल की।
आपको बता दें कि राजनितिक मुठभेड़ के चलते सभी पार्टियां भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा दलित बहुसंख्यकों आधार बना कर 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी सत्ता कायम करना चाहती है। वहीं बीजेपी दलतों के मसीहा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती बड़े पैमाने पर मना रही है, जिससे वह दलितों के दिल में जगह बना सके। भाजपा ने 6 अप्रैल से 14 अप्रैल तक ‘सामाजिक न्याय सप्ताह’ मनाने की घोषणा की है।

इसी चुनावी राजनीति के चलते सपा नेता अखिलेश यादव भी रायबरेली में ‘कांशीराम की मूर्ति का अनावरण’ में शामिल हुए थे। दूसरी अन्य पार्टियों की बात करें तो, कांग्रेस ने चुनावी जीत हासिल करने के लिए हरियाणा में दलित बहुसंख्यकों को आधार बनाया है।

आपको बता दें कि जाटव समुदाय लंबे समय तक मायावती और बसपा का वोट बैंक रहा है, वहीं अगर कौशांबी की बात करें तो, वहां जिले की आबादी में 35 फीसदी आबादी दलित है, जबकि 14 फीसदी मुस्लिम हैं। आजमगढ़ और रायबरेली में दलितों और मुसलमानों की बड़ी संख्या मौजूद है, लेकिन इन जिलों में मजबूत मुस्लिम यादव दलित समीकरण के कारण बीजेपी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है ।
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