राहुल गांधी हाथ में संविधान लेकर घूमते हैं और कहते फिरते हैं कि बीजेपी संविधान खत्म करने पर तुली है, आरक्षण खतरे में है। लेकिन वहीं जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण में वर्गीकरण का फैसला सुनाया तो राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इस पर चुप्पी साध ली। 21 अगस्त के भारत बंद को समर्थन देना तो दूर की बात है उन्होंने एक ट्वीट भी दलित समाज के हित में नहीं किया..
हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए अब केवल एक महीना बचा है। 5 अक्टूबर को हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव होगा। इस चुनाव में सबसे बड़ी बात ये है कि राजनीतिक पार्टियां अधिकतर गठबंधन में चुनाव लड़ रही है। वहीं दूसरी तरफ दलित और जाट वोटों के समीकरण पर हर राजनीतिक पार्टी अपना दाव चल रही। लेकिन अब दलित वोट जो हरियाणा में हार और जीत का फैसला लेगा वो कांग्रेस पार्टी के लिए गले की फांस बन सकता है और ऐसा भी हो सकता है कि दलितों को साधने की कवायद में कांग्रेस और बीजेपी दोनों के हाथों से दलित वोट छिटक जाए और सीधा बीएसपी के पाले में चला जाए।
कांग्रेस, दलितों के सहारे सत्ता में करेगी वापसी :
हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 17 सीटें एससी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। लेकिन दलित वोटर्स 90 में से 35 सीटों पर सीधे तौर पर निर्णायाक भूमिका निभाता है। हरियाणा की सियासत में 30 फीसदी जाट और 21 फीसदी दलित वोटर हैं जिनके दम पर कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में अपनी वापसी चाहती है। वहीं बीजेपी भी गैर-जाट यानी पूरी तरह से दलित वोटों को साधने की कवायद में लगी हुई है। जिसके लिए बीजेपी दलित समुदाय से सीधे संपर्क साधने के लिए “मनोहर का परिवार” नाम से विशेष कार्यक्रम आयोजित कर रही है। वही दूसरी तरफ जाट-दलित समीकरण के लिए इनेलो-बसपा गठबंधन और जेजेपी-आसपा का गठबंधन भी मैदान में हैं।
किस जाति के कितने वोट :
हरियाणा में दलित समुदाय में सबसे बड़ा वर्ग रविदास समुदाय का है जो दलित समाज में 60 फीसदी से भी ज्यादा हैं। इसलिए हरियाणा की राजनीति पर रविदासी समुदाय का दबदबा दिखाई देता है। इसके अलावा वाल्मिकी और दूसरे दलित समुदाय हैं। रविदासी दलित समाज को पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में बताया जाता है। वहीं अन्य दलित समुदाय अलग-अलग दलों के साथ बिखरे हुए हैं।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिला दलितों का एक तरफा वोट :
इसी साल देश में हुए लोकसभा चुनाव 2024 में हरियाणा के अंदर कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की। कांग्रेस ने हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं बाकी 5 सीटें बीजेपी के खाते में गयीं। यही कारण था कि बीएसपी, इनेलो और जेजेपी जैसी पार्टियों का हरियाणा में खाता भी नहीं खुला था। 10 में से दो लोकसभा सीटें जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है उन दोनों सीटों पर कांग्रेस के दलित नेता बड़े मार्जिन से जीत कर लोकसभा पहुंचे हैं। गौरतलब है कि हरियाणा में दलितों की आबादी करीब 20 से 21% है जो चुनावों में सभी सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है। लोकसभा चुनावों में बीजेपी से खफ़ा दलित वर्ग ने एक तरफा वोट कांग्रेस के खाते में डाला जिसकी वजह से हरियाणा में कांग्रेस की सूखी पड़ी राजनीतिक जमीन पर हरियाली आई। वहीं बीएसपी जिसे दलितों की पार्टी कहा जाता है वो इस चुनाव में एक सीट पर लीड तक नहीं कर पाई।
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विधानसभा में दलित सीटों पर कांग्रेस का रहा है दबदबा :
वहीं बात अगर हम विधानसभा चुनावों की करें तो 90 में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 17 में से 7 सीटें जीती। 5 बीजेपी ने, 4 जेजेपी ने और 1 सीट अन्य के खाते में गयी थी। 2014 में 9 दलित सीटों पर बीजेपी ने बाज़ी मारी और कांग्रेस 4 सीटों पर रही। वहीं अन्य के खाते में सिर्फ एक सीट गयी। 2009 की बात करें तो इनेलो ने 9 सीट, कांग्रेस ने 7 और अन्य ने 1 सीट अपने नाम की थी।
कांग्रेस से खफ़ा हुआ दलित वर्ग :
कांग्रेस के पाले में जाने वाले दलित वोट अब कांग्रेस से नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। पूरा दलित समाज कांग्रेस से ठगा हुआ महसूस कर रहा है। कारण है आरक्षण को लेकर कांग्रेस का डबल सटेंड। एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी हाथ में संविधान लेकर घूमते हैं और कहते फिरते हैं कि बीजेपी संविधान खत्म करने पर तुली है, आरक्षण खतरे में है। लेकिन वहीं जब सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण में वर्गीकरण का फैसला सुनाया तो राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इस पर चुप्पी साध ली। 21 अगस्त के भारत बंद को समर्थन देना तो दूर की बात है उन्होंने एक ट्वीट भी दलित समाज के हित में नहीं किया। वहीं कांग्रेस ने हरियाणा में लोकसभा चुनाव दलित नेत्री कुमारी शैलजा के फेस पर जीता। लेकिन बात जब दलित नेतृत्व वाली विधानसभा की आई तो कांग्रेस ने सांसदों के विधानसभा चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा दी। बता दें कि चुनावों की तारीखों का ऐलान होने से पहले ही कुमारी शैलजा का एक बयान सामने आया था कि इस बार कांग्रेस को हरियाणा में दलित नेतृत्व देना चाहिए।
गठबंधन के सहारे कांग्रेस :
अब यही कारण है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी जो अभी तक हरियाणा चुनावों को लेकर आश्वस्त थे, वो अब डरने लगे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो राहुल गांधी को हरियाणा में ज़मीनी स्तर पर वो माहौल देखने को नहीं मिल रहा है जो वो लोकसभा चुनावों के बाद सोचकर बैठे थे। अब राहुल गांधी भी गठबंधन के सहारे चुनाव लड़ना चाहते हैं। और गठबंधन की उम्मीद वो फिर एक बार आप यानी Aam Aadmi Party से कर रहें हैं। 2019 में आप से मिलकर कांग्रेस ने हरियाणा का विधानसभा चुनाव लड़ा था। 46 सीटों पर चुनाव लड़ा गया जिसमें 30 सीटें कांग्रेस ने जीती थी वहीं आम आदमी पार्टी किसी भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई थी।
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बीएसपी करेगी कमबैक :
राजनीतिक रूप से कमजोर दिख रही बहुजन समाज पार्टी के लिए नई उम्मीद दिखाई दे रही है। हरियाणा इलेक्शन में बीएसपी दमखम के साथ लड़ती दिखाई दे रही है। नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद हरियाणा की सभाओं में कांग्रेस पर जमकर हल्ला बोल रहे हैं। नेहरू से लेकर गांधी तक सबकी बखिया उधेड़ रहे हैं। दलितों को लेकर और आरक्षण को लेकर किस तरह से कांग्रेस ने हमेशा बेरुखी अपनाई थी इस बात को अपनी सभाओं में मंच से कहते दिख रहे हैं। बता दें कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने एक भी सीट नहीं जीती थी लेकिन उसका वोट परसेंटेज 4.21 फीसदी रहा था
वहीं बीएसपी को 5,18,812 वोट मिले थे। बीएसपी से छिटक कर दूसरों दलों की तरफ गई दलित आबादी अब बीएसपी की तरफ लौटती हुई दिखाई दे रही है। इसका सबसा बड़ा कारण है सुप्रीम कोर्ट का SC/ST आरक्षण में वर्गीकरण वाला फैसला। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले का मुखरता से विरोध किया और SC/ST आरक्षण में वर्गीकरण के फैसले के विरोध में 21 अगस्त को हुए भारत बंद को समर्थन देकर मायावती ने फिर एक बार यह दिख दिया है कि दलितों के हित के लिए वही दल खड़ा हो सकता है जहाँ दलितों का प्रतिनिधित्व हो। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि बीएसपी इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी।
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