नौ साल की मासूम दलित बच्ची के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। आरोपी ने न केवल उस मासूम के साथ बलात्कार किया, बल्कि उसकी निर्मम हत्या भी कर दी। इस मामले में POCSO फास्ट ट्रैक कोर्ट और SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) ने तेजी से कार्रवाई करते हुए मात्र 61 दिनों में न्याय दिलाया।
पश्चिम बंगाल के जयनगर में नौ साल की मासूम दलित बच्ची के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। आरोपी मोहम्मद मुस्तकिन सरदार ने न केवल उस मासूम के साथ बलात्कार किया, बल्कि उसकी निर्मम हत्या भी कर दी। इस हृदयविदारक घटना ने समाज के हर वर्ग को गम और गुस्से से भर दिया। हालांकि, इस मामले में POCSO फास्ट ट्रैक कोर्ट और SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) ने तेजी से कार्रवाई करते हुए मात्र 61 दिनों में न्याय दिलाया। अदालत ने दोषी को मौत की सजा सुनाकर यह संदेश दिया कि ऐसे घिनौने अपराधों के लिए समाज में कोई जगह नहीं है।
घटना का विवरणः
आरोपी मोहम्मद मुस्तकिन सरदार ने बच्ची को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाने की योजना बनाई। बच्ची के परिवार वालों ने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की, लेकिन अगले दिन उसका शव खेतों में मिला। शव की हालत देखकर किसी का भी दिल दहल जाए। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और बर्बर हत्या की पुष्टि हुई, जिसने पूरे इलाके में आक्रोश फैलाया।
तेज जांच और कार्रवाई: SIT ने निभाई अहम भूमिका
जयनगर पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत SIT का गठन किया। जांच टीम ने तेजी से सबूत जुटाए और 48 घंटों के भीतर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। जांच में आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत मिले, जिसमें डीएनए रिपोर्ट और गवाहों के बयान शामिल थे। SIT ने चार्जशीट दाखिल करने में कोई देरी नहीं की और केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा।
फास्ट ट्रैक कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
POCSO एक्ट के तहत मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार दिया। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के जघन्य अपराध समाज के ताने-बाने को कमजोर करते हैं और इन पर कठोरतम सजा जरूरी है। मात्र 61 दिनों में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने आरोपी को फांसी की सजा सुनाई। यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक नया इतिहास बन गया, जहां इतनी तेजी से न्याय मिला।
समाज और परिवार की प्रतिक्रिया
पीड़ित परिवार ने इस फैसले को अपनी बेटी के लिए न्याय करार दिया और SIT व न्यायपालिका का आभार व्यक्त किया। स्थानीय लोगों ने भी इस फैसले का स्वागत किया और इसे न्याय का विजय पर्व बताया। कई सामाजिक संगठनों ने इस मामले में तेज कार्रवाई की सराहना करते हुए इसे अन्य मामलों के लिए मिसाल बताया।
फांसी की सजाः समाज के लिए संदेश
यह फैसला केवल पीड़ित के लिए न्याय नहीं, बल्कि समाज के लिए एक सख्त संदेश है। ऐसे अपराधी जो बच्चों के साथ दरिंदगी करते हैं, उन्हें किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। इस सजा ने यह साबित कर दिया कि भारतीय न्याय व्यवस्था कमजोर नहीं है, बस उसे सही दिशा में तेज़ी से काम करने की जरूरत है।
न्याय की जीत
पश्चिम बंगाल के इस मामले ने दिखा दिया कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो न्याय प्रणाली तेजी से काम कर सकती है। यह फैसला उन तमाम पीड़ित परिवारों के लिए एक उम्मीद की किरण है, जो न्याय के लिए लंबा इंतजार कर रहे हैं। अब समाज की एकमात्र मांग है कि दोषी को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाया जाए, ताकि पीड़िता की आत्मा को शांति मिले और समाज में अपराधियों के लिए खौफ पैदा हो।
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