‘हम बिजली-पानी खरीद लेंगे, पक्की नौकरी दो’: केजरीवाल सरकार ने बेचे सपने, हकीकत में मिला संघर्ष

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दिल्ली के किराएदारों का कहना है कि केजरीवाल सरकार ने सस्ते घर, पक्की नौकरी और बेहतर जीवन के सपने दिखाए, लेकिन हकीकत में उन्हें सिर्फ महंगे किराए, अस्थायी रोजगार और बढ़ती महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। आधी सैलरी किराए में चली जाती है, जिससे घर खरीदने का सपना अधूरा रह गया है। सरकार की रेंटल पॉलिसी और सस्ते आवास योजनाएं अब तक जमीन पर नहीं उतरीं, जिससे मिडिल क्लास और गरीब वर्ग संघर्षपूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

पुष्पेंद्र कुमार जैसे हजारों लोग दिल्ली की चकाचौंध में बेहतर जिंदगी की उम्मीद लेकर आते हैं। 10 साल पहले उत्तर प्रदेश के इटावा से दिल्ली आए पुष्पेंद्र ने सोचा था कि नौकरी करेंगे, पैसे बचाएंगे और अपना एक छोटा सा घर खरीद लेंगे। लेकिन आज भी वह उसी किराए के मकान में रह रहे हैं, जहां आधी से ज्यादा सैलरी घर के किराए में चली जाती है। वह बताते हैं, “10 साल पहले सोचा था, लाइफ सेट कर लेंगे। लेकिन यहां तो सिर्फ जीने के लिए ही संघर्ष करना पड़ रहा है। किराया इतना ज्यादा है कि बचत करना असंभव है। अपने घर का सपना अब सपना ही रह गया है।”

‘केजरीवाल सरकार ने सपने बेचे, हकीकत दी दर्द’

दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने से पहले बड़े-बड़े वादे किए थे। अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि उनकी सरकार दिल्ली के हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधाएं, सस्ती बिजली-पानी, और बेहतर परिवहन देगी। लेकिन किरायेदारों की हालत देखकर यह साफ है कि वादे सिर्फ जुमले बनकर रह गए। पुष्पेंद्र कहते हैं, “बिजली-पानी सस्ता है, लेकिन इससे क्या फायदा जब आधी सैलरी मकान मालिक को देनी पड़े। सरकार का वादा था कि रोजगार और सस्ता आवास मिलेगा, लेकिन न नौकरी में स्थायित्व है और न ही किराए के घर से मुक्ति।”

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‘रेंटल हाउसिंग पॉलिसी कहां है?’

केजरीवाल सरकार ने बार-बार वादा किया था कि दिल्ली में किरायेदारों के लिए रेंटल हाउसिंग पॉलिसी लाई जाएगी, जिससे कम आय वाले परिवारों को सस्ते घर मिल सकें। लेकिन आज तक न तो ऐसी कोई योजना जमीन पर दिखाई दी और न ही कोई ठोस कदम उठाया गया। दिल्ली में घरों का किराया आसमान छू रहा है। मेट्रो और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास ने किराए में और इजाफा कर दिया है। पुष्पेंद्र जैसे लाखों लोग, जिनकी आय 25-30 हजार रुपये महीने है, 12-15 हजार रुपये किराए में खर्च करने पर मजबूर हैं।

‘स्थायी नौकरी नहीं, तो बचत कैसे होगी?’

दिल्ली में रहने वाले अधिकतर किरायेदार अस्थायी या कॉन्ट्रैक्ट बेस्ड नौकरियों में काम करते हैं। पुष्पेंद्र भी एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं, जहां उन्हें महीने के 28 हजार रुपये मिलते हैं। वह बताते हैं, “इस सैलरी में न तो बच्चों की पढ़ाई का खर्च निकल पाता है, न घर का राशन और न ही कोई बचत। हम तो बस महीने की तनख्वाह से महीने के आखिरी दिन तक किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि स्थायी रोजगार उपलब्ध कराए, ताकि लोग बचत कर सकें और अपना घर खरीदने का सपना पूरा कर सकें।”

‘महंगाई पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं’

दिल्ली के किरायेदारों का कहना है कि महंगाई पर काबू पाने में सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। किराए के घर में रहना दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है। सब्जियों से लेकर राशन तक हर चीज के दाम बढ़ गए हैं, लेकिन सैलरी वहीं की वहीं है। पुष्पेंद्र कहते हैं, “अगर सरकार महंगाई नहीं रोक सकती और हमें स्थायी नौकरी नहीं दे सकती, तो कम से कम सस्ते किराए के मकान ही उपलब्ध करा दे। बिना अपने घर के ही मर जाएंगे। ऐसी सरकार से क्या उम्मीद करें, जो गरीब और मध्यम वर्ग को नजरअंदाज कर रही है।”

‘दिल्ली में घर खरीदना मिडिल क्लास के बस का नहीं’

दिल्ली जैसे शहर में प्रॉपर्टी की कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि मध्यम वर्ग के लोगों के लिए घर खरीदना असंभव है। पुष्पेंद्र ने कई बार कोशिश की, लेकिन एक छोटा फ्लैट भी उनकी पहुंच से बाहर है। वह कहते हैं, “बैंकों से लोन लेने की सोची थी, लेकिन इतनी सैलरी नहीं कि ईएमआई भर सकूं। किराया देना और ईएमआई दोनों संभालना संभव नहीं। सरकार को सस्ते आवासीय प्रोजेक्ट लाने चाहिए थे, लेकिन उनकी प्राथमिकता सिर्फ वोटबैंक है। चुनाव के समय वादे करना और बाद में भूल जाना ही उनकी राजनीति है।”

‘किराएदारों के लिए कोई आवाज नहीं’

दिल्ली में लाखों किरायेदार हैं, लेकिन उनकी समस्याओं पर सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। बिजली-पानी सस्ता कर देना काफी नहीं है, जब तक रोटी और छत का इंतजाम न हो। पुष्पेंद्र जैसे किरायेदार पूछते हैं, “आखिर हमारा कसूर क्या है? हम तो मेहनत कर रहे हैं, लेकिन हमारे लिए कोई योजना नहीं है। सरकार सिर्फ अपने एजेंडे में व्यस्त है। अगर यही हाल रहा, तो हमें दिल्ली छोड़कर वापस गांव जाना पड़ेगा।”

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‘केजरीवाल सरकार की नीतियां सिर्फ दिखावा’

दिल्ली के किरायेदारों की हालत देखकर साफ है कि केजरीवाल सरकार सिर्फ वादे करती है, लेकिन उन पर अमल करने में नाकाम है। रेंटल पॉलिसी, सस्ते आवास और रोजगार के वादे अब तक अधूरे हैं। किरायेदारों का कहना है कि अगर सरकार वाकई गरीब और मध्यम वर्ग के हित में है, तो उन्हें किराए के मकानों से निजात दिलाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अन्यथा, दिल्ली में किरायेदारों की जिंदगी बस संघर्ष बनकर रह जाएगी।

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