दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: 12 आरक्षित सीटों पर दलित नेताओं की सूची, जानें पार्टियों की रणनीति

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 सीटें सत्ता की कुंजी मानी जा रही हैं। आम आदमी पार्टी ने विकास और भरोसे के दम पर मौजूदा विधायकों और नए चेहरों को उतारा है। भाजपा ने सामाजिक समीकरणों और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को भुनाने के लिए नए उम्मीदवार चुने हैं। कांग्रेस अपने पुराने जनाधार को वापस पाने के लिए अनुभवी और युवा नेताओं का मिश्रण लेकर आई है। इन सीटों पर दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए विकास, पहचान और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों को केंद्र में रखा गया है। चुनावी नतीजे दिल्ली की राजनीति की दिशा तय करेंगे।

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित 12 सीटें—मंगोलपुरी, मादीपुर, सीमापुरी, त्रिलोकपुरी, सुल्तानपुर माजरा, गोकुलपुर, बवाना, पटेल नगर, कोंडली, अंबेडकर नगर, देवली और करोल बाग—राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की कुंजी बन गई हैं। इन सीटों पर जीत दर्ज करना हर पार्टी की प्राथमिकता है, क्योंकि इतिहास में देखा गया है कि जिसने इन सीटों पर बढ़त बनाई, उसने दिल्ली में सरकार बनाई। इस बार भी आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), और कांग्रेस ने इन सीटों पर अपने-अपने दलित उम्मीदवार उतारकर सारा जोर लगा दिया है। सभी दलों ने अपनी-अपनी रणनीतियां तैयार की हैं और अपने उम्मीदवारों को उन मतदाताओं के सामने पेश किया है, जिनके वोट निर्णायक साबित होंगे।

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आप की रणनीति: विकास और भरोसे का संदेश

आप ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को चुनने में संतुलन साधा है। पार्टी ने अपने मौजूदा विधायकों और नई प्रतिभाओं को उम्मीदवार बनाया है। मंगोलपुरी से राकेश जाटव, मादीपुर से राखी बिडलान, सीमापुरी से वीर सिंह धींगान, त्रिलोकपुरी से अंजना परचा, सुल्तानपुर माजरा से मुकेश कुमार अहलावत, गोकुलपुर से सुरेंद्र कुमार, बवाना से जय भगवान, पटेल नगर से प्रवेश रतन, कोंडली से कुलदीप कुमार, अंबेडकर नगर से अजय दत्त, देवली से प्रेम कुमार चौहान और करोल बाग से विशेष रवि को उम्मीदवार बनाया गया है। आप ने अपने पिछले दो कार्यकालों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली और महिलाओं के लिए किए गए कामों को मुख्य मुद्दा बनाया है। पार्टी का मकसद इन सीटों पर 2020 के प्रदर्शन को दोहराना है, जब उसने इन 12 में से 9 सीटें जीती थीं। आप के उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर लोगों से मिलकर उनके मुद्दे सुन रहे हैं और “दिल्ली मॉडल” को आगे बढ़ा रहे हैं।

भाजपा का दांव: नए चेहरे और मोदी की लोकप्रियता

भाजपा ने इन 12 सीटों पर नए चेहरे उतारे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को प्रमुखता से प्रचारित कर रही है। पार्टी ने हर सीट पर उम्मीदवार चुनने में सामाजिक समीकरणों का खास ध्यान रखा है। भाजपा ने मंगोलपुरी से धर्मरक्षक राजकुमार चौहान, मादीपुर से उर्मिला कैलाश गंगवाल, सीमापुरी से कुमारी रिंकू, त्रिलोकपुरी से रविकांत उज्जैन, सुल्तानपुर माजरा से कर्म सिंह कर्मा, गोकुलपुर से प्रवीण नीमेश, बवाना से रविंद्र कुमार, पटेल नगर से राज कुमार आनंद, कोंडली से प्रियांका गौतम, अंबेडकर नगर से कुशीराम चुनार, देवली से लक्ष्मण चौधरी और करोल बाग से दुष्यंत गौतम को मैदान में उतारा है। भाजपा अपने उम्मीदवारों के जरिए प्रधानमंत्री की योजनाओं, जैसे उज्ज्वला योजना, हर घर नल से जल और आयुष्मान भारत, को जनता के बीच ले जा रही है। इसके अलावा, पार्टी सामाजिक समरसता पर विशेष जोर दे रही है और दलित समुदाय के लिए विशेष सम्मेलन आयोजित कर रही है।

कांग्रेस: पुराने चेहरों और अनुभव पर भरोसा

कांग्रेस ने इन सीटों पर अपने जनाधार को वापस पाने के लिए अनुभवी और युवा नेताओं का मिश्रण उतारा है। पार्टी ने मंगोलपुरी से हनुमान चौहान, मादीपुर से जे.पी. पंवार, सीमापुरी से राजेश लिलोठिया, त्रिलोकपुरी से अमरदीप, सुल्तानपुर माजरा से जय किशन, गोकुलपुर से ईश्वर बागरी, बवाना से सुरेंद्र कुमार, पटेल नगर से कृष्णा तीरथ, कोंडली से अक्षय कुमार, अंबेडकर नगर से जय प्रकाश, देवली से राजेश चौहान और करोल बाग से राहुल धांक को अपना प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस का अभियान सामाजिक न्याय और समानता पर केंद्रित है। पार्टी ने इन सीटों पर विशेष रूप से दलित समुदाय को लुभाने के लिए अपने पुराने वादों और नीतियों को प्रमुखता दी है।

सियासी समीकरण: विकास, पहचान और भावनाओं की राजनीति

इन आरक्षित सीटों पर राजनीतिक दलों की लड़ाई मुख्य रूप से तीन चीजों पर टिकी है—विकास का रिकॉर्ड, जातिगत समीकरण और भावनात्मक अपील। आप जहां अपने विकास कार्यों के दम पर जनता का समर्थन चाहती है, वहीं भाजपा प्रधानमंत्री की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस अपनी पुरानी विरासत को याद दिलाते हुए मतदाताओं को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रही है कि वह दलित समुदाय के लिए सबसे बेहतर विकल्प है।

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कौन हासिल करेगा सत्ता की कुंजी?

दिल्ली की राजनीति में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 12 सीटें हमेशा निर्णायक साबित होती हैं। आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस तीनों ने अपनी-अपनी रणनीतियों के जरिए मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की है। हर दल ने अपने उम्मीदवारों के जरिए दलित समुदाय के मतदाताओं तक पहुंचने की रणनीति अपनाई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस पर भरोसा करती है और दिल्ली की सत्ता का अगला अध्याय किस दिशा में जाता है।

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