अजमेर में गुर्जरों के अत्याचार से तंग आकर दलित युवक ने कि आत्महत्या, पुलिस ने भी नहीं की थी सुनवाई

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बीते चार सालों में राजस्थान में दलितों के साथ होने वाले अत्याचारों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। हालिया मामला अजमेर के नोसल गांव का है जहाँ एक दलित युवक ओम प्रकाश रेगर ने जातिवादियों के अत्याचार से तंग आकर आत्महत्या कर ली। इस कदम को उठाने से पहले उसने एक खत लिखा जिसमें उसने बताया कि कैसे सिर्फ दलित होने की वजह से उसके परिवार और समाज को जातिवादियों की प्रताड़ना को झेलना पड़ता है। और इन सवंय घोषित उच्च जाति वालों की ऐब के सामने ना तो सिस्टम इनकी मदद करता है और ना ही पुलिस इनकी कोई मदद करती है।

क्या थी पूरी घटना:

मृत युवक के खत के अनुसार, मामला दिवाली पर शुरू हुआ जब युवक के पिता अपने खेत में बाजरे की फसल इकट्ठा कर रहें थे और  उसी वक्त किसनराम गुर्जर औऱ उसके भतीजों ने मिलकर पीड़ित के खेत में भेड़ बकरियों को फसल नष्ट करने के लिए छोड़ दिया। जब इसका विरोध किया गया तो तीनों ने मिलकर मृतक के पिता को लाठियों से पीटा।

घटना का पता चलने के बाद परिवार खेत पर पहुंचा तो सभी को जातिसूचक गालियाँ देकर अपमानित किया गया और कहा कि तुम  हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। हुआ भी कुछ यही जब दलित परिवार पुलिस स्टेशन गया तो पहले तो पुलिस वालों ने उन्हें पुलिस स्टेशन के चक्कर लगवाए। लेकिन जब पीड़ित ने कोर्ट में जाने की बात कही तो एफआईआर तो दर्ज की गई लेकिन कार्यवाही नहीं हुई। इसके बाद पीड़ित ओम प्रकाश, उसके छोटे भाई राहुल और उसके चाचा युगल किशोर पर झूठी एफआईआर लगा दी गई।

गांव के पूर्व सरपंच पर लगाया आरोप:

ओम प्रकाश ने अपनी चिट्ठी में आरोप लगाते हुए लिखा है कि इस पूरे मामले में गांव का सरपंच रह चुका रणजीत सिंह राठौर भी शामिल हैं। वहीं किसनराम गुर्जर हर साल उनकी फसल को बर्बाद करने के लिए उनके खेतो में भेड़ बकरियाँ छोड़ देता है। इन्होंने दलित समाज को अपना गुलाम बना रखा है।

ओम प्रकाश अपने पिता का मान सम्मान वापस चाहते थे। अपने समाज को जातिवादियों की इस  गलामी से बाहर निकालना चाहते थे जो दलितो को जी हूजूरी करने के लिए मजबूर करता है। जहाँ उन्हें खुद के लिए आवाज़ उठाने तक का अधिकार नहीं है।

भीम आर्मी चीफ़ से लगाई न्याय की गुहार:

अपने खत में उन्होंने दलित समाज पर जातिवादियों द्वारा हो रही प्रताड़ना से मुक्ति के लिए भीम आर्मी के संस्थापक चंद्र शेखर आज़ाद से न्याय की गुहार लगाई है। जिस पर चंद्र शेखर ने ट्वीट कर कहा, छोटे भाई तुम्हारे अंतिम पत्र ने जितना भावुक किया उतना ही गुस्से से भर दिया। हार मानने की जगह तुम्हें लड़ना चाहिए था। तुम्हारा भाई अभी जिंदा है जो अपने परिवार के आत्म सम्मान और इंसाफ के लिए अजमेर जरूर आएगा। मेरे भाई अगर जाने से पहले याद किया होता तो

सामंतवादियों से हम मिलकर लड़ते। ओम प्रकाश ने अपने आखिरी खत में ये भी लिखा है कि उन्हें संविधान में विश्वास है लेकिन इस सिस्टम ने, इन सामंतवादियों ने उन्हें न्याय नहीं मिलने दिया।अजमेर के नोसल की ये घटना बताती है कि दलितों के लिए न्याय सिर्फ कागज़ों पर है और ओम प्रकाश को न्याय मिल भी जाता है तो ये न्याय ओम प्रकाश की जिंदगी की कीमत पर होगा।

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