हल्द्वानी में मस्जिद ढहाने के बाद हुए बवाल में 6 की मौत, उत्तराखंड के जन संगठनों ने धामी सरकार पर लगाये गंभीर आरोप

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उत्तराखण्ड के बुद्धिजीवियों ने कहा, धामी सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर आम आदमी को बेघर कर रही है, वन भूमिए नजूल भूमि व अन्य जगहों से उजाड़ रही है। अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर अपना सांप्रदायिक एजेंडा आगे बढ़ा रही है। इस पर तत्काल रोक लगाई जाए….

Haldwani news : हल्द्वानी का बनभूलपुरा क्षेत्र शायद सभी के जेहन में ताजा होगा, जहां से साल 2022 के आखिरी महीने में 50 हजार से ज्यादा लोगों को उजाड़े जाने का फरमान जारी किया गया था। अब एक बार यह फिर सुर्खियों में है और कारण है बनभूलपुरा में मुस्लिमों के धार्मिक नमाज स्थल मलिक के बगीचे और मस्जिद तोड़ने गई नगर निगम और पुलिस की टीम पर स्थानीय लोगों ने पथराव किया, जिसमें शुरू में रामनगर कोतवाल समेत 20 से अधिक पुलिसकर्मियों के घायल होने की सूचना आयी।

पुलिस की ओर से भी जवाबी कार्रवाई यानी शूट एंड फायर किया गया। इस बवाल में कई गाड़ियां जलकर स्वाहा हो गयीं। बनभूलपुरा थाने को भी आग के हवाले कर दिया गया। हिंसा में 6 लोग मारे गये और सैकड़ों लोग घायल हुए। हिंसक होते माहौल के बाद पीएसी और केंद्रीय पुलिस बल को मौके पर तैनात कर दिया गया है। डीएम की तरफ से पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया है और हल्द्वानी शहर में इंटरनेट सेवायें बंद कर दी गयीं। सीएम धामी ने अराजक तत्वों से सख्ती से निपटने यानी एक तरह से शूट एंड फायर के आदेश जारी कर दिये गये, मगर इसकी भेंट कितने मासूम चढ़ेंगे कहना मुश्किल होगा।

इस मामले में 18 लोगों के खिलाफ पुलिस ने नामजद केस दर्ज किया है और अब तक आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार करने की सूचना आ रही है। हिंसा के 48 घंटे से भी ज्यादा समय बीच जाने के बाद भी हल्द्वानी में कर्फ्यू लगा हुआ है। बनभूलपुरा एक बार फिर से सुर्खियों में तब आया है जब 8 फरवरी को नगर निगम की टीम मदरसा ढहाने पहुंची थी। कहा जा रहा है कि यह धार्मिक स्थल अवैध है। नगर निगम की टीम ने नमाज पढ़ने के लिए बनाई गई एक इमारत पर भी बुलडोजर चला दिया, जिसके बाद हिंसा तेजी से फैल गयी।

इस घटना के बाद मीडिया को दिये बयान में सीएम धामी कहते हैं, ‘अतिक्रमण कोर्ट के आदेश पर हटाया गया है। जिन लोगों ने हमला और आगजनी की है, उनकी पहचान कर सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह पुलिसकर्मियों पर योजनाबद्ध हमला था।’

नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय का दावा है, ‘मदरसा और नमाज वाली जगह पूरी तरह अवैध है। तीन एकड़ जमीन से कब्जा हटाया गया। गुरुवार 8 फरवरी को अवैध निर्माण ढहा दिया गया।

वहीं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रह्लाद मीणा कहते हैं, अराजक तत्वों द्वारा बनभूलपुरा थाने और पुलिसकर्मियों पर हमला किए जाने के दौरान पुलिस को आत्मरक्षा में बल प्रयोग करना पड़ा। पुलिस थाने और पुलिसकर्मियों पर हमला करने के संबंध में 4 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है। घटना के संबंध में 5 हजार लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है। भीड़ को उकसाने में करीब 15-20 लोग संलिप्त हो सकते हैं।

जिलाधिकारी वंदना सिंह ने कहा, ‘बृहस्पतिवार को हुई हिंसा पूरी तरह से अकारण थी और अराजक तत्वों का काम थी, जो ढांचों को बचाने की कोशिश नहीं कर रहे थे, बल्कि अधिकारियों राज्य सरकार की मशीनरी और कानून व्यवस्था को निशाना बना रहे थे।’

इस बवाल पर दुख व्यक्त करते हुए उत्तराखंड के जन संगठनों, बुद्धिजीवियों एवं नागरिकों की और से संयुक्त बयान एवं अपील की गयी है। हल्द्वानी में हुई घटना को चिंताजनकए, निंदनीय एवं दुखद बताते हुए कहा गया है, मृतकों और घायलों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं और उनके लिये उचित मुआवजे की मांग करते हैँ। हम हल्द्वानी, उत्तराखंड और देश की जनता से निवेदन करते हैं कि शांति बनाए रखें। हम हर प्रकार की हिंसा की निंदा करते हैं और चाहते हैं कि निष्पक्ष कानूनी कारवाई हो। कोई भी प्रतिरोध क़ानूनसम्मत और संविधान के दायरे में होना चाहिये, नफरत नहीं रोजगार दो!

उत्तराखंड के जन संगठनों, बुद्धिजीवियों द्वारा जारी किये गये साझा बयान में उत्तराखंड लोक वाहिनी से जुड़े राजीव लोचन साह, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के महासचिव नरेश नौडियाल, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी, सद्भावना समिति उत्तराखंड से जुड़े भुवन पाठक एवं शंकर दत्त, चेतना आंदोलन से जुड़े शंकर गोपाल एवं विनोद बडोनी, सर्वोदय मंडल के इस्लाम हुसैन, समाजवादी लोक मंच के ललित उप्रेती एवं मुनीश कुमार, स्वतंत्र पत्रकार त्रिलोचन भट्ट, महिला किसान अधिकार मंच की हीरा जंगपानी समेत दर्जनों लोग शामिल हैं।

इन लोगों ने अपील की है कि इस गंभीर समय में हम प्रशासन से भी निवेदन करना चाहते हैं कि कोई भी कार्यवाही संवैधानिक मूल्यों के विपरीत न हो। इस घटना में प्रशासन की लापरवाही, जल्दबाजी और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण साफ दिखाई दे रहा है। प्रशासन के बयानों में ही सांप्रदायिक भाषा का इस्तेमाल दिखाई दिया है। जब कथित रूप से अवैध बनी मस्जिद और मदरसा सील कर प्रशासन के कब्जे में थे और इस मामले की सुनवाई 14 फरवरी को न्यायालय में होनी थी, तो जल्दबाजी में बगैर तैयारी के ध्वस्तीकरण की क्या जरूरत थी, इसलिए जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का तत्काल स्थानांतरण कर इस घटना की हाईकोर्ट के किसी जज द्वारा न्यायिक जांच करायी जाये।

. इस बात पर भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि 2017 से आज तक लगातार भीड़ की हिंसा और नफरती प्रचार पर उत्तराखंड सरकार निष्पक्ष क़ानूनी कारवाई नहीं कर रही हैण् इस पर राज्य के नागरिकए जन संगठनए विपक्षी दल और वरिष्ठ बुद्धिजीवीयों से ले कर सुप्रीम कोर्ट के वकील और सेना के पूर्व जनरल तक सवाल उठाते रहे हैं। जब सरकार के कदम निष्पक्ष नहीं दिखते तो असामाजिक तत्वों के लिए गुंजाईश बढ़ती है। इसलिए लगातार आवाज़ उठी है कि सत्ताधारी ताकतों का राजनैतिक फायदे के लिए नफरत, सांप्रदायिक और हिंसक घटनाओं को प्रश्रय देने से सामाजिक सौहार्द और कानून के राज के लिए खतरे बढ़ते हैं। इसलिए 2018 और उसके बाद भी उच्चतम न्यायालय की और से नफरती प्रचार एवं हिंसा पर दिए गए फैसलों पर सख्त अमल हो, इसके लिए युद्धस्तर पर कदम उठाया जाये।

हम लगातार कह रहे हैं कि ‘अतिक्रमण हटाओ अभियान’ में एक उतावलापन और पक्षपात दिखायी दे रहा है। बगैर नोटिस देकर तोड़ फोड़ करने की दर्जनों घटनायें पिछले एक साल में हुई हैं, जबकि हमारा मानना है कि पहले पुनर्वास किये बगैर किसी को भी बेघर न किया जाये और कोई भी ऐसी कार्रवाही सम्यक कानूनी ढंग से, पर्याप्त सुनवाई के बाद संवेदनशीलता के साथ होनी चाहिए। उत्तराखंड में लगभग 4 लाख हैक्टेयर नजूल भूमि पर लाखों लोग बसे हैं।

हल्द्वानी में भी बड़ी आबादी नजूल भूमि पर बसी हुई है, जिसमें सभी धर्मों को मानने वाले लोग शामिल हैं। जनता की मांग रही है कि नजूल भूमि पर रह रहे लोगों को मालिकाना हक दिया जाए। इसके लिए राज्य सरकार केंद्र को प्रस्ताव भी भेज चुकी है। इसके बावजूद अतिक्रमण के मामलों पर जल्दबाजी दिखाना समझ से परे है। पिछले लंबे समय से राज्य सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर आम आदमी को बेघर कर रही है, वन भूमि, नजूल भूमि व अन्य जगहों से उजाड़ रही है। सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर अपना सांप्रदायिक एजेंडा आगे बढ़ा रही है। इस पर तत्काल रोक लगाई जाए।

 

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