Reservation : क्या सुप्रीम कोर्ट के “कोटा विद इन कोटा” वाले फैसले से संविधान के अनुच्छेद 341 का होगा उल्लंघन ?

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कौन सी जाति अनुसूचित जाति में शामिल की जाएगी और किस आधार पर यह बताना और देश के राष्ट्रपति को यह जिम्मेदारी सौंपने का काम संविधान का अनुच्छेद 341 करता है।

 

गुरुवार 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्टने एक बड़ा फैसला सुनाया जिसके तहत अब राज्य की विधानसभाएं एससी/एसटी लिस्ट में सब-कैटेगरी करके एससी/एसटी की उन जातियों को आरक्षण में प्राथमिकता दे सकती है जो आर्थिक रूप से कमजोर है या जिसे इसक ज्यादा जरूरत है। इसे आप आसान भाषा में कोटा विद इन कोटा भी कह सकते हैं।सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में 2004 के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करने के बाद सुनाया है।

 

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JNU के प्रोफेसर और समाज शास्त्री डॉ. विवेक कुमार के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने केवल राज्यों को ये सुझाव दिया है कि वह अपने राज्यों में कोटा विद इन कोटा लागू कर सकते हैं लेकिन इसका लागू होना मुश्किल है। यह जानकारी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा दिए गए 55 पेज के फैसले को पढ़ने के बाद अपने सोशल मीडिया पर साझा की। सोशल मीडिया से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया तक में कोटा विद इन कोटा का यह मामला गर्माया हुआ है। सांसद से लेकर नेता, विधायक इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर इस फैसले के खिलाफ पोस्ट भी किए जा रहे है।

इस बीच चर्चा का मुद्दा बना है संविधान का अनुच्छेद 341 जिसे लेकर कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस के इस अनुच्छेद का उल्लंघन है। गुरुवार को 7-1 से दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में एक जज बेला एम. त्रिवेदी ने इसी अनुच्छेद का उल्लंघन की बात करते हुए कहा था कि, ““राज्य अनुसूचित जाति सूची में केवल अनुसूचित जाति के भीतर कुछ समूहों की पहचान करके और उन्हें वरीयता कोटा देकर “छेड़छाड़” नहीं कर सकते। कोटा पूरा अनुसूचित जाति समुदाय के लिए है। राज्य इस आधार पर राष्ट्रपति सूची में फेरबदल नहीं कर सकता कि वह अनुसूचित जाति समुदाय के कुछ समूहों को ऊपर उठाने की कोशिश कर रहा था जो बाकी लोगों से बदतर स्थिति में हैं।“

आइए जानते हैं कि क्या है अनुच्छेद 341 जिसके उल्लंघन की सुप्रीम कोर्ट ने इजाजत दे दी है। दरअसल, “संविधानका अनुच्छेद 341 राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से अस्पृश्यता और अन्याय से पीड़ित जातियों, नस्लों या जनजातियों को एससी के रूप में सूचीबद्ध करें।“ कौन सी जाति अनुसूचित जाति में शामिल की जाएगी और किस आधार पर यह बताना और देश के राष्ट्रपति को यह जिम्मेदारी सौंपने का काम संविधान का अनुच्छेद 341 करता है। जिसके बाद अनुसूचित जाति समूहों को शिक्षा और रोजगार में 15% आरक्षण दिया जाता है।  

 

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की हर तरफ से आलोचना की जा रही है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण और कॉलेजियम व्यवस्था वाले सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आरक्षण को खत्म करने की दिशा में पहला कदम है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि, “ “राज्य भेदभाव या पिछड़ेपन की विभिन्न डिग्री की पहचान कर सकते हैं और अनुसूचित जातियों के उप-वर्गों को अधिक लाभ पहुंचाने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। इससे राष्ट्रपति के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों की पहचान करने के विशेषाधिकार का उल्लंघन नहीं होगा। राज्यों की उप-वर्गीकरण करने की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है।“ 

वहीं वंचित बहुजन आघाडी के नेता प्रकाश अंबेडकर ने इस संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन बताया है..।

 

 

 

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