प्रकाश आंबेडकर ने महाविकास अघाड़ी पर लगाया बड़े धोखे का आरोप, 4 जून को दलित दिखायेंगे कांग्रेस को आईना !

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भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव अशोक कांबले दावा करते हैं कि प्रकाश आंबेडकर इंडिया गठबंधन को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे, मगर पिछले चुनाव में जो मत प्रतिशत वंचित बहुजन अघाड़ी को मिला था, उससे बहुत कम वोट लोग उन्हें इस बार देंगे, क्योंकि महाराष्ट्र का बहुजन-पिछड़ा समाज भाजपा को हारता हुआ देखना चाहता है….

प्रकाश आंबेडकर के महाविकास आघाडी से अलग होने का कांग्रेस गठबंधन को कैसे होगा बड़ा नुकसान, बता रही हैं प्रेमा नेगी

कल 14 अप्रैल को दलितों-वंचितों के मसीहा, संविधान और राष्ट्र निर्माता बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती थी। इस मौके पर उनके पोते प्रकाश आंबेडकर जो कि वंचित बहुजन अघाड़ी के प्रमुख हैं, ने अपने एक्स एकाउंट पर लिखा है, “आज भीम जयंती पर मैं एक मुद्दा उठाना चाहता हूं। एमवीए यानी महाविकास अघाडी ने अभी तक एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है, अगर एमवीए को बीजेपी की तरह मुसलमानों को बाहर करना है, तो दोनों में क्या अंतर है? मुस्लिमों के बहिष्कार पर मुख्यधारा का मीडिया चुप क्यों है? महाविकास अघाड़ी को मुस्लिम वोट चाहिए, मुस्लिम उम्‍मीदवार नहीं।”

गौरतलब है कि प्रकाश आंबेडकर का यह बयान एकाएक नहीं आया है, इसके पीछे पिछले कई दिनों से चले आ रहे घटनाक्रम हैं। प्रकाश आंबेडकर पहले इंडिया गठबंधन को समर्थन देते हुए अपने उम्मीदवारों को उसी के बैनर तले टिकट देने की मांग कर रहे थे, मगर जब वंचित बहुजन आघाड़ी की बिल्कुल दरकिनार करके उनको मात्र 2-3 सीटों पर समेटना चाहा, तो उन्होंने इंडिया से किनारा कर लिया और महाराष्ट्र की कुल 48 लोकसभा सीटों में से 35 पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। उन्होंने यह फैसला महाविकास आघाड़ी से मिली उपेक्षा के बाद लिया है, क्योंकि महाविकास आघाड़ी ने पिछले चुनावों में तकरीबन 15 फीसदी मत पाने वाली पार्टी वंचित बहुजन आघाड़ी को मात्र 2-3 सीटों पर समेटने का काम करके एक तरह से बहुजनों का अपमान किया है। महाविकास आघाडी में इंडिया गठबंधन के सभी दल शामिल हैं।

प्रकाश आंबेडकर की नाराजगी के बाद राजनीतिक विश्लेषक कहने लगे हैं कि वंचित बहुजन आघाड़ी की उपेक्षा की बड़ी कीमत महाविकास आघाड़ी यानी इंडिया गठबंधन को चुकानी होगी। कहीं ऐसा न हो कि वंचित बहुजन अघाड़ी इंडिया को सभी सीटों से पूरी तरह वंचित कर दे। ये कयास इसलिए लगाये जा रहे हैं क्योंकि शिवसेना (ठाकरे), कांग्रेस और एनसीपी (शरद) वाली पार्टियों की महाविकास आघाडी के साथ वंचित बहुजन आघाडी का साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वंचित बहुजन आघाडी के साथ कांग्रेस-एनसीपी का गठबंधन नहीं हो सका था, जिसका बड़ी कीमत दोनों पार्टियों ने चुकायी थी।

हालांकि दलितों के बीच काम कर रहा संगठन भीम आर्मी राजनीतिक विश्लेषकों से इतर राय रखता है। भीम आर्मी के राष्ट्रीय महासचिव अशोक कांबले कहते हैं, महाविकास आघाडी से अलग होकर प्रकाश आंबेडकर ने हर जगह अपने उम्मीदवार खड़े कर एक तरह से भाजपा को मजबूती देने का काम किया है। इससे सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस को होगा।’

अशोक कांबले कहते हैं, ‘अगर प्रकाश आंबेडकर महाविकास आघाड़ी का हिस्सा बने रहते, तो कहीं न कहीं महाराष्ट्र में भाजपा कमजोर होती। भले ही उन्हें 4 ही टिकट मिल रहे थे, मगर उन्हें महाविकास आघाड़ी का हिस्सा बने रहना चाहिए था। अब उनके अलग चुनाव लड़ने से महाविकास आघाड़ी खासकर कांग्रेस बहुत कमजोर होगी। सबसे बड़ी बात यह कि वंचित बहुजन आघाड़ी से जिन प्रत्याशियों को प्रकाश आंबेडकर टिकट दे रहे हैं उनमें से एक भी आंबेडकरवादी नहीं है, ये भाजपा-आरएसएस से जुड़े वो लोग है, जिन्हें भाजपा से टिकट नहीं मिला, तो जाहिर तौर पर इनका पहला लक्ष्य कांग्रेस को हराना होगा।’

अशोक कांबले यह भी दावा करते हैं कि ‘प्रकाश आंबेडकर को पिछले चुनाव में जो मत प्रतिशत मिला था, उससे बहुत कम वोट लोग उन्हें इस बार देंगे, क्योंकि महाराष्ट्र का बहुजन-पिछड़ा समाज भाजपा को हारता हुआ देखना चाहता है।’ यानी बिना कहे अशोक कांबले अपनी बातचीत से ऐसा महसूस कराते हैं कि प्रकाश आंबेडकर भाजपा की बी टीम की तरह काम कर रहे हैं।

2019 में कांग्रेस-एनसीपी ने वंचित बहुजन आघाडी की नाराजगी की चुकायी थी भारी कीमत
वंचित बहुजन आघाडी एक राजनीतिक पार्टी है, जिसका गठन डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर द्वारा किया गया था। इस पार्टी में पिछड़े वर्ग के लोग जुड़े हैं और यह पार्टी आंबेडकर-फुले के विचारों पर चलने का दावा करती है। 2018 में पार्टी का गठन किया गया था, जिसके बाद पार्टी ने 2019 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था। चुनाव से पहले प्रकाश आंबेडकर ने औवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ गठबंधन किया था और इस गठबंधन ने महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि तब असदुद्दीन ओवैसी ने एआईएमआईएम का एक ही उम्मीदवार औरंगाबाद से उतारा था, मगर महाराष्ट्र के कई इलाकों में प्रकाश आंबेडकर की पार्टी के लिए प्रचार किया। तब दलित और मुस्लिमों की राजनीति करने वाली इन दो पार्टियों के साथ आने से कांग्रेस और एनसीपी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था।

दलित और मुस्लिम वोटों के बंटने के कारण कई सीटों पर कांग्रेस और एनसीपी की करारी हार हुई थी, जबकि बीजेपी-शिव सेना गठबंधन को 41 सीटें मिली थीं। वहं वंचित बहुजन आघाड़ी और एआईएमआईएम के कारण एनसीपी मात्र 5 तो कांग्रेस सिर्फ एक सीट जीतने में सफल हो पायी थी। इस बार भी इंडिया गठबंधन ने वंचित बहुजन आघाड़ी को किनारे करके हालात 2019 वाले बना दिये हैं, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। 2019 में एआईएमआईएम ने जिस एक सीट औरंगाबाद पर अपना उम्मीदवार उतारा था, वहां उसकी जीत हुई, मगर वंचित बहुजन आघाडी एक भी सीट नहीं जीत पायी थी, पर कई सीटों पर उसके उम्मीदवारों की वजह से कांग्रेस और एनसीपी को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा था। वंचित बहुजन आघाडी के उम्मीदवार कई सीटों पर दूसरे या तीसरे नंबर पर रहे। 17 ऐसी सीटें थीं जहां वंचित के उम्मीदवारों ने 80 हजार से ज्यादा वोट हासिल पाये और कुल वोटों का 14 फीसदी मत हासिल करके वंचित बहुजन आघाडी राज्य में पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी बनने में कामयाब हुई।

कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भी नजर आया था। राज्य में 2019 में ही विधानसभा चुनाव भी हुए थे और इन चुनावों में भी कांग्रेस-एनसीपी ने वंचित बहुजन आघाड़ी को किनारे करने की बड़ी कीमत चुकायी। तब वंचित ने 288 कुल सीटों में से 234 पर अपने उम्मीदवार उतारे, मगर एक सीट पर भी नहीं जीती। तब कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं ने वंचित पर बीजेपी की बी टीम होने और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को हराने की खातिर बीजेपी से सुपारी लेने का आरोप लगाया था और कुछ ऐसा ही इस बार भी हो रहा है। इस बार प्रकाश आंबेडकर ने इंडिया गठबंधन पर ही भाजपा की बी टीम होने का आरोप जड़ा है।

पिछले दिनों प्रकाश आंबेडकर ने विपक्षी गठबंधन पर लगभग 20 लोकसभा सीटों पर सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ ‘मैच फिक्सिंग’ करने का आरोप जड़ा था। सीट बंटवारे को लेकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन टूटने और एमवीए (महाविकास अघाड़ी) के साथ वीबीए (वंचित बहुजन अघाड़ी) की बातचीत के बाद आंबेडकर ने महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले पर निशाना साधते हुए उन पर ‘गुप्त गठबंधन’ बनाने का आरोप लगाया था। प्रकाश आंबेडकर ने अप्रत्यक्ष तौर पर धमकी भी दी थी कि मराठा कोटा कार्यकर्ता मनोज जारंगे-पाटिल के आंदोलन का राज्य में लोकसभा चुनाव पर और महाराष्ट्र के ओबीसी मतदाताओं पर बड़ा असर  पड़ेगा।

हालांकि पिछले चुनावों में मिले सबक के बाद उद्धव ठाकरे की तरफ से वंचित बहुजन आघाड़ी को गठबंधन में लेने की कोशिश की गयी थी और प्रकाश आंबेडकर ने भी इसके लिए हरी झंडी दिखाते हुए महाविकास आघाडी के साथ आने का मन बना लिया था। कुछ दिन पहले सीट बंटवारे के लिए हुई बैठकों में प्रकाश आंबेडकर और उनके प्रतिनिधियों ने हिस्सा भी लिया, मगर बात बन नहीं पाई, क्योंकि गठबंधन उन्हें सिर्फ 2 से 3 सीटों पर समेट रहा था और प्रकाश आंबेडकर ज्यादा सीटें मांग रहे थे, क्योंकि ये एक तरह से बहुजनों में इतना ज्यादा दखल रखने वाली पार्टी का अपमान ही था। इसी के बाद इसे अपना अपमान बताते हुए प्रकाश आंबेडकर ने गठबंधन से अलग होने का फैसला कर लिया और अपने उम्मीदवारों का ऐलान भी।

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