NCRB report 2022: यूपी में दलितों के साथ बढ़ रहे हैं आपराधिक मामलें, राजस्थान और मध्यप्रदेश के आंकड़ों में भी आया उछाल

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दिन प्रतिदिन दलित प्रताड़ना की ऐसी घटनाएं सामने आती है जिन्हे सुन कर दिल दहल जाता है। हर वर्ष जाति के आधार पर प्रताड़ना के कई ऐसे मामले सामने आते हैं जो मानवता को छिन्न भिन्न कर देता है। हालांकि स्थिति पहले के अपेक्षा स्थिति सुधरी है। जैसे जैसे शिक्षा  का प्रचलन हमारे समाज में बढ़ा है लोग इस तरह की कुरीतियों से दूर हुए है। आज के इस आर्टिकल में हम NCRB 2022 (मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश) के रिपोर्ट का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे की आखिर आज के इस 21वीं सदी में गरीब दलित व दबे कुचले लोगों की सामाजिक स्थिति कैसी है ?

अगस्त 2022 को रिलीज हुई NCRB रिपोर्ट की माने तो साल 2020 में मध्यप्रदेश में दलित प्रताड़ना के खिलाफ दर्ज हुए मामलों की संख्या लगभग 6,899 देखी गई थी वही अगर साल 2021 में देखें तो यह संख्या बढ़ कर 7214  हो गई। यह साफ तौर पर दर्शाता है की दिन प्रति दिन कैसे दलितों के साथ दुर्व्यवहार बढ़ते चले जा रहे हैं। यह  तस्वीर तो सिर्फ मध्यप्रदेश की है। देश के बहुत से राज्यों में दलितों की स्थिति इससे भी ज्यादा बदत्तर है। यदि हम राजस्थान और देश की सबसे घनी आबादी वाले राज्य उत्तरप्रदेश की बात करें तो वहाँ की स्थिति भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है।

NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में राजस्थान में दलितों के साथ प्रताड़ना के कुल 7,017 मामले दर्ज किए गए और यह संख्या 2021 में बढ़ कर 7,524 हो गयी। वहीं उत्तरप्रदेश में यह मामला 12, 714 से बढ़ कर 13,146 तक पहुँच गया।

यह रिपोर्ट तो सिर्फ शिकायत दर्ज किए गए डाटा के आधार पर है, जमीनी हकिकत कुछ और ही है। आज भी कई ऐसे लोग है जो खुद के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते या खुद को उतना सक्षम नहीं महसूस करते उनकी आवाज नीचे ही रह जाती है और वह मामला संज्ञान में आता ही नहीं। NCRB की इस रिपोर्ट को देख कर हम अंदाजा लगा सकते है की आज भी दलितों के प्रति लोगों का क्या नजरिया है।

आज भी दलितों को सामाजिक समृद्धि के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है। नीचे तबके के लोग आज भी उस जंजीर से मुक्त नहीं हो पाए हैं। आज भी समाज में वो जागरूकता लाने की जरूरत है जिससे यह संदेश जाए की दलित समुदाय मे पैदा हुए इंसान को भी इस समाज में जीने का उतना ही अधिकार है जितना की दूसरे समुदाय के लोगों को। भारत के संविधान में सभी समुदाय के लिए समान मौलिक अधिकार दिए गए है जिससे यह साबित होता है की जाति के आधार पर भेदभाव निंदनीय है।

 

 

 

 

 

 

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