गोरखपुर शहर विधानसभा: भाजपा का अभेद किला, जहा 55 सालो से लहरा रहा है भगवा। क्या विपक्षी दल भेद पाएंगे भाजपा के दुर्ग को ?

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तमाम राजनीतिक दल यूपी चुनाव की तैयारियों में जोर-शोर से लगे हुए है। लगभग सभी दलों ने पहले चरण की 58 सीटों के लिए अपने-अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में होंगे। योगी के इस सीट पर आने से यह सीट अब उत्तरप्रदेश चुनाव की सबसे हॉट सीट बन गयी है।

हालाँकि जनसंघ के जमाने से ही यह सीट भाजपा का अभेद किला रही है और पिछले 33 सालों से विपक्षी दल भाजपा के इस दुर्ग को हिला नहीं पाए है। शुरूआती तीन चुनावों 1952, 1957 और 1962 में इस सीट पर कांग्रेस जीती थी. इसके बाद 1967 से 77 तक जनसंघ के प्रत्‍याशी जीतते रहे. जिसके बाद 1989 से लगातार 2017 तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। 2002 में डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल हिन्दू महासभा (योगी के समर्थन से) के टिकट पर लड़कर चुनाव जीते थे जिसके बाद वे भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में भी वे भाजपा से विधायक है। इस सीट पर गोरखनाथ मंदिर का भी प्रभाव है. भाजपा की जीत की महत्‍वपूर्ण वजह यह भी है.

भाजपा के अलावा इस सीट पर सपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी देकर मुकाबले को रोचक बना दिया है। सपा ने 2018 में भाजपा से लोकसभा उपचुनाव लड़ चुके भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रह चुके दिवंगत उपेंद्र शुक्ला की पत्नी सुभावती शुक्ला को योगी के सामने टिकट दिया है। दूसरी और आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद ने भी योगी के सामने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
जबकि कांग्रेस व बसपा ने अब तक इस सीट पर अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है।

ये तो 10 मार्च को पता चलेगा की विपक्षी पार्टिया भाजपा के इस अभेद किले को भेद पाती है या नहीं। ऐसा किला जहा 55 सालों से लगातार भगवा लहरा है।

विधानसभा सीट का जातीय समीकरण –

4.29 लाख मतदाताओं वाली गोरखपुर सदर विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटर करीब 50 हजार, दलित वोटर 48 हजार, मुस्‍लिम 45 हजार, कायस्‍थ व निषाद 35-35 हजार, वैश्‍य 30 हजार, कुर्मी वोटर करीब 28 हजार हैं.

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