‘ट्रांसजेंडर होने के कारण मुझे UP और गुजरात के स्कूलों ने बर्खास्त किया’, सुप्रीम कोर्ट में छलका ट्रांस शिक्षिका का दर्द

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दो-दो राज्यों के स्कूलों द्वारा केवल ट्रांस होने के कारण जिस तरह मुझे नौकरी से बर्खास्त किया गया, इसे मैने इसलिए कोर्ट में चुनौती दी है ताकि मेरी कम्युनिटी के अन्य लोगों को उस भेदभाव और उत्पीड़न का सामना न करना पड़े जिससे मैं जूझ रही हूं….

Transgender wonen teacher Jane Kaushik Case : सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां नाकाबिल होने के कारण नहीं बल्कि एक योग्य शिक्षक को ट्रांस होने के कारण एक राज्य के स्कूल नहीं बल्कि दो-दो राज्यों के स्कूलों ने नियुक्ति देने के बाद बर्खास्त कर दिया था। इस मामले में ट्रांस महिला शिक्षक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर कल सुनवाई के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ सिंह की बेंच ने न सिर्फ अफसोस जताया बल्कि कहा कि पीड़ित शिक्षिका के लिए जरूर कुछ किया जाना चाहिए, क्योंकि जैसे ही वह नौकरी ज्वाइन करती हैं, उन्हें लिंग उजागर होने पर यह कहकर नौकरी से निकाल दिया जाता है कि वह ट्रांसजेंडर है। इस दुर्व्यवहार का सामना ट्रांस महिला को यूपी और गुजरात दो-दो राज्यों में करना पड़ा।

ट्रांस महिला शिक्षक जेन कौशिक ने याचिका में अपना दर्द बयां किया है कि कैसे उन्हें उत्तर प्रदेश में अपॉइंटमेंट लेटर दिया गया और वहां उन्होंने 6 दिनों तक पढ़ाया और फिर गुजरात में उन्हें नियुक्ति पत्र दिया गया और उनकी लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद स्कूल में आने से रोक दिया गया। याचिकाकर्ता जेन कौशिक का कहना है कि इस तरह दो-दो राज्यों के स्कूलों द्वारा केवल ट्रांस होने के कारण जिस तरह मुझे नौकरी से बर्खास्त किया गया, इसे मैने इसलिए कोर्ट में चुनौती दी है ताकि मेरी कम्युनिटी के अन्य लोगों को उस भेदभाव और उत्पीड़न का सामना न करना पड़े जिससे मैं जूझ रही हूं। सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों में उचित दिशा-निर्देश दे।

गौरतलब है कि पिछले महीने 2 जनवरी को लिंग उजागर होने के बाद यूपी और गुजरात के स्कूलों से निकाली गयी ट्रांस महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई की थी। तब
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस मामले में यूपी और गुजरात की राज्य सरकारों को ट्रांसजेंडर के साथ काबिलियत नहीं बल्कि सेक्स उजागर होने पर बर्खास्त किये जाने के मसले पर 4 हफ्ते में जवाब देने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के जामनगर स्थित स्कूल के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के खीरी जनपद स्थित प्राइवेट स्कूल के अध्यक्ष से भी जवाब मांगा था कि आखिर ट्रांसजेंडर टीचर को क्यों बर्खास्त किया गया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परदीवला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने ट्रांसजेंडर महिला की याचिका पर केंद्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी किया था।

पहली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ट्रांस महिला शिक्षिका के वकील ने कहा कि उत्तर प्रदेश के एक स्कूल की ओर से उनकी मुवक्किल को नियुक्ति पत्र दिया गया था और हटाए जाने से पहले उन्होंने 6 दिन तक उन्होंने स्कूल में अपनी सेवायें भी दी थीं। इसी तरह गुजरात के स्कूल की ओर से भी उन्हें एपॉइंटमेंट लेटर जारी किया गया था, लेकिन मुवक्किल की लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उन्हें ज्वाइन ही नहीं करने दिया गया।

सीधे हाईकोर्ट क्यों पहुंची पीड़ित ट्रांस शिक्षिका
लिंग पहचान उजागर होने के बाद यूपी और गुजरात के स्कूलों से बर्खास्त की गयी ट्रांस शिक्षिका का कहना है कि इस दुर्व्यवहार के खिलाफ वह सीधे सुप्रीम कोर्ट इसलिए पहुंची, क्योंकि सेक्स जानने के बाद मुझे एक राज्य से नहीं बल्कि दो—दो राज्यों के स्कूलों ने बर्खास्त कर दिया था। मैं अपने उत्पीड़न के खिलाफ दो—दो हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकती थी इसलिए सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की।

याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान अपने मुवक्किल का पक्ष रखते हुए कहा, महिला छात्रावास में भी पीड़िता के साथ एक सामाजिक कलंक की तरह व्यवहार किया गया। मेरी मुवक्किल महिला छात्रावास में रह रही थी, लेकिन जैसे ही पता चला कि वह एक ट्रांसवुमन है, स्कूल मैनेजमेंट ने उसे नौकरी से निकाल दिया। वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकते कि वह एक ट्रांसवुमन है।’

याचिकाकर्ता ट्रांस महिला की ओर से पेश वकील कहते हैं, ‘लिंग उजागर होने के बाद पीड़िता को नौकरी से बर्खास्त करने वाला स्कूल अब यह बहाना बना रहा है कि वह समय की पाबंद नहीं थी और नौकरी से निकाले जाने का कारण उसका गुस्सैल स्वभाव था। इसीलिए गुजरात राज्य की ओर से पेश वकील ने अदालत को सूचित किया है कि स्कूल ने उसे नौकरी की पेशकश की थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने कभी भी इस प्रस्ताव का जवाब नहीं दिया। राज्य अधिकारियों द्वारा इसकी रिपोर्ट भी मांगी गई थी।

गुजरात राज्य की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में प्राइवेट स्कूल की पैरवी कर रहे वकील ने यह भी कहा कि ‘जो आफर लेटर ट्रांस महिला शिक्षि​का को दिया गया था, जिसके अनुसार उसे दस्तावेजों के सत्यापन के लिए आना था, केवल यह बताने के बाद उसकी ज्वाइनिंग शुरू होनी थी, मगर फिर सत्यापन हुआ और उसकी पहचान उजागर हुई, और उन्होंने ज्वाइन नहीं किया।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करने वाली पीठ के सामने यह जानकारी भी रखी गयी कि याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के सामने भी इसी तरह की याचिका दायर की थी, जो 2022 से लंबित पड़ी है। इसमें पीड़िता ने दिल्ली के एक प्राइवेट स्कूल द्वारा नियुक्ति से इनकार करने को चुनौती दी है।

याचिकाकर्ता जेन कौशिक के वकील ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा कि आफर लेटर बिना शर्त था और जब याचिकाकर्ता को दस्तावेजों के सत्यापन के लिए जामनगर बुलाया गया तो वह अपने खर्च पर एक होटल में रुकी थीं। याचिका जेन कौशिक के मुताबिक, “मुझे अपने खर्च पर होटल में रहना पड़ा, क्योंकि जब स्कूल मैनेजमेंट को पता चला कि मैं ट्रांसजेंडर हूं तो उन्होंने मुझे स्कूल में प्रवेश तक नहीं करने दिया। इसके प्रमाण के तौर पर मेरे पास फोन पर हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग है।’ अब इस मामले में अगली सुनवाई सोमवार 5 जनवरी को होनी है।

2014 में, राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) बनाम भारत संघ और अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ट्रांसजेंडर्स को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी थी। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की पीठ ने कहा था कि ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता देने वाले कानून की गैर-मौजूदगी को शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों का लाभ उठाने में उनके खिलाफ भेदभाव करने के आधार के रूप में जारी नहीं रखा जा सकता है।

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