राजनीतिक खेल का शिकार दलित: बिहार में 100 दबंगों ने दलित बस्ती में लगाई आग, 80 घर जलकर राख! 50 राउंड फायरिंग, जानें पूरा मामला

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बिहार के नवादा जिले में 100 दबंगों ने दलित बस्ती पर हमला किया, जिसमें 80 घर जलकर राख हो गए और 50 राउंड फायरिंग की गई। यह घटना दलित और महादलित समुदायों के बीच भूमि विवाद से जुड़ी है और राजनीतिक तनाव को उजागर करती है।

Bihar : बिहार के नवादा जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के देदौर पंचायत के कृष्णा नगर गांव में हाल ही में एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई, जिसने राज्य की कानून व्यवस्था और सामाजिक असमानता की खाई को फिर से उजागर कर दिया। इस घटना में, जमीन विवाद को लेकर दबंगों ने दलित बस्ती को निशाना बनाया। करीब सौ की संख्या में आए हमलावरों ने दलित बस्ती में घुसकर पहले फायरिंग की, जिससे गांव में दहशत का माहौल बन गया। ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर छिपने पर मजबूर हो गए। इस दौरान हमलावरों ने करीब 80 घरों में आग लगा दी, जिससे कई परिवारों का सब कुछ जलकर खाक हो गया।

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मांझी और पासवान जातियों के बीच भूमि विवाद

यह घटना सिर्फ दलित समुदाय पर अत्याचार का मामला नहीं है, बल्कि दलित और महादलित के बीच की आपसी खाई को भी सामने लाती है। मांझी और पासवान जातियों के बीच भूमि विवाद के कारण हुए इस संघर्ष ने गांव को हिंसा की आग में झोंक दिया। इस घटना में पासवान समुदाय के लोगों पर आरोप है कि उन्होंने मांझी समुदाय की बस्ती पर हमला किया, गोलियां चलाईं, और करीब 80 घरों को आग के हवाले कर दिया।

50 से ज्यादा राउंड फायरिंग और 80 घर जलाए गए

यह विवाद जमीन से जुड़ा हुआ है। कई वर्षों से मांझी समुदाय के लोग बिहार सरकार की जमीन पर बसे हुए थे, जिसे पासवान समुदाय भी अपना दावा करता आ रहा था। यह मामला अदालत में लंबित था, और दोनों पक्ष जमीन पर अधिकार जताते हुए संघर्ष में उलझे हुए थे। मगर बुधवार रात को पासवान जाति के करीब सौ लोग मांझी बस्ती में घुस आए और अचानक हमला कर दिया। इस हमले में 50 से ज्यादा राउंड फायरिंग की गई, जिससे गांव में अफरा-तफरी मच गई। ग्रामीण अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, और हमलावरों ने मौका पाकर बस्ती को आग के हवाले कर दिया। प्रशासन के मुताबिक, करीब 30 से 80 घर इस हमले में जलकर खाक हो गए।

दलित और महादलित समुदाय

यह घटना केवल भूमि विवाद का परिणाम नहीं थी, बल्कि सामाजिक और जातिगत असमानताओं की गहरी जड़ें भी इस संघर्ष के पीछे थीं। बिहार में जातिगत तनाव का इतिहास पुराना है, जहां दलित और महादलित समुदाय अक्सर संसाधनों, अधिकारों और पहचान के लिए संघर्ष करते रहे हैं। मांझी समुदाय को महादलित के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जबकि पासवान समुदाय राजनीतिक और सामाजिक रूप से अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में है। इस संघर्ष में दोनों समुदायों के बीच असमानताओं का भी अहम योगदान रहा है।

जीतन राम मांझी और चिराग पासवान का संबंध?

इस घटना ने बिहार की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। चूंकि मांझी समुदाय के नेता जीतन राम मांझी और पासवान समुदाय के नेता चिराग पासवान, दोनों ही एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं, ऐसे में इस हिंसा के बाद दोनों नेताओं के बीच बयानबाजी और राजनीतिक तनाव बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। मांझी और पासवान, दोनों जातियां बिहार की राजनीति में मजबूत प्रभाव रखती हैं, और इस घटना ने उनके बीच आपसी खींचतान को और बढ़ा दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना एनडीए गठबंधन के भीतर भी तनाव पैदा कर सकती है, क्योंकि दोनों समुदायों के नेता अपने-अपने वर्गों के समर्थन से जुड़े हुए हैं।

10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है

घटना के बाद स्थानीय प्रशासन और पुलिस ने तुरंत कार्रवाई की। 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और इलाके में सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। नवादा के एसपी अभिनव धीमान और डीएम आशुतोष कुमार ने घटनास्थल का दौरा किया और स्थिति की गंभीरता का जायजा लिया। पुलिस ने बताया कि मामला केवल जमीन विवाद का नहीं, बल्कि जातीय संघर्ष का भी है। प्रशासन ने इलाके में शांति बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिया है, और स्थिति पर नजर रखी जा रही है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया तेज हो गई है

राजनीतिक प्रतिक्रिया भी इस घटना पर तेजी से आई। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे एनडीए सरकार के जंगलराज का एक और उदाहरण बताया और दलितों के प्रति सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाए। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस घटना की निंदा की और बिहार सरकार से पीड़ितों को हरसंभव सहायता देने की मांग की। अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण मंत्री जनक राम ने भी घटना की आलोचना करते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आश्वासन दिया।

इस घटना ने न केवल सामाजिक ताने-बाने को झकझोर दिया है, बल्कि राज्य की राजनीति में भी एक नया मोड़ ला दिया है। दलित और महादलित समुदायों के बीच की खाई गहराती जा रही है, और यह घटना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बिहार में जातिगत असमानताओं को पाटने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

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दलितों की समस्याओं राजनीतिक खेलों का हिस्सा बनाया जा रहा हैं

बिहार के नवादा जिले में हुई हालिया हिंसा ने एक गंभीर सवाल खड़ा किया है कि क्या राजनीतिक हितों और जातीय आधार पर समाज में असमानता और हिंसा को बढ़ावा देना उचित है? दलितों और महादलितों को जातीय और राजनीतिक खेलों का शिकार बनाना, यह एक चिंताजनक स्थिति है, जो यह दर्शाती है कि समाज में अभी भी गहरी असमानताएँ और भेदभाव मौजूद हैं।

राजनीतिक नेताओं और दलों द्वारा जातीय और सामाजिक मुद्दों को अपने लाभ के लिए भुनाने की प्रवृत्ति इस स्थिति को और बिगाड़ देती है। जब राजनीतिक पार्टियाँ और नेता अपनी सत्ता और चुनावी लाभ के लिए जातीय और सामाजिक असमानताओं का उपयोग करते हैं, तो इससे समाज में तनाव और संघर्ष बढ़ता है। इस तरह की स्थिति में, दलित और महादलित समुदाय अक्सर हिंसा, भेदभाव और अन्याय का शिकार होते हैं।

दलितों की समस्याओं को नजरअंदाज करना और उन्हें राजनीतिक खेलों का हिस्सा बनाना न केवल अमानवीय है, बल्कि यह लोकतंत्र और मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। जब समाज के कमजोर वर्गों की आवाज को दबाया जाता है और उनके अधिकारों की अनदेखी की जाती है, तो यह सामाजिक न्याय और समानता की मूल अवधारणाओं के खिलाफ है।

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