वी. टी. राजशेखर, ‘दलित वॉयस’ के संस्थापक और संपादक, का 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उच्चवर्णीय परिवार में जन्मे राजशेखर ने आजीवन जातिवाद, ब्राह्मणवादी वर्चस्व और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया। उनकी पत्रिका दलितों, आदिवासियों और हाशिए पर पड़े समुदायों की आवाज बनी।
वर्ण और वर्ग वर्चस्व के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने वाले प्रख्यात लेखक और ‘दलित वॉयस’ के संस्थापक-संपादक वी. टी. राजशेखर का कल 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन के साथ भारत में दलित, उत्पीड़ित और शोषित समुदायों के लिए आवाज बुलंद करने वाले एक युग का अंत हो गया। वी. टी. राजशेखर का जन्म एक उच्चवर्णीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने जातिवादी समाज व्यवस्था को जड़ से खारिज कर दिया। वे अपनी पूरी जिंदगी ब्राह्मणवादी वर्चस्व और सामाजिक अन्याय के खिलाफ लेखनी और वाणी के माध्यम से लड़ते रहे। उनके इस साहसिक और विचारोत्तेजक कार्य के लिए उन्हें न केवल दलितों और हाशिए के समुदायों से समर्थन मिला, बल्कि कई बार राजनीतिक और सामाजिक प्रतिरोध का भी सामना करना पड़ा।
‘दलित वॉयस’: दमितों की आवाज को मंच देने का प्रयास
1979 में शुरू किया गया ‘दलित वॉयस’ उनके जीवन का सबसे बड़ा योगदान था। यह पत्रिका भारतीय समाज के उन मुद्दों को सामने लाने के लिए समर्पित थी, जिन्हें मुख्यधारा के मीडिया में शायद ही कभी जगह मिलती थी। राजशेखर ने अपने लेखों और संपादकीयों के माध्यम से दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, और मुस्लिम समुदायों के अधिकारों और उनके संघर्षों को सामने रखा। उन्होंने न केवल भारत के जातिवादी ढांचे की आलोचना की, बल्कि वैश्विक स्तर पर हाशिए पर पड़े समुदायों के संघर्षों को भी जोड़ा। उनकी लेखनी ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ एक नई चेतना को जन्म दिया और अनेक युवा लेखकों, कार्यकर्ताओं और विचारकों को प्रेरित किया।
ब्राह्मणवादी व्यवस्था पर तीखा प्रहार
राजशेखर का जीवन और कार्य इस बात का प्रमाण है कि उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जन्म से प्राप्त पहचान को त्यागा जा सकता है। अपने लेखों में उन्होंने ब्राह्मणवादी व्यवस्था और हिंदू धर्म के भीतर मौजूद जातिगत भेदभाव पर तीखे प्रहार किए। उनका कहना था कि भारतीय समाज में जाति और धर्म के नाम पर जो वर्चस्व कायम है, वह केवल दलितों और पिछड़ों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को खोखला कर रहा है। उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर, पेरियार और ज्योतिराव फुले जैसे समाज सुधारकों के विचारों को अपने लेखन का आधार बनाया और उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाया।
विवाद और चुनौतियां
राजशेखर का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उनके विचार और लेखन कई बार विवादों में रहे। उन्हें ब्राह्मणवादी और हिंदुत्ववादी संगठनों की आलोचना का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ कई बार मुकदमे भी दर्ज हुए और उनकी पत्रिका को प्रतिबंधित करने की मांग उठी। लेकिन राजशेखर ने कभी अपने विचारों से समझौता नहीं किया। उनका कहना था, “अगर आपके विचारों से लोग असहज होते हैं, तो समझिए कि आप सही रास्ते पर हैं।”
संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक
राजशेखर का जीवन उन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो समाज में समानता और न्याय के लिए लड़ रहे हैं। उनका यह विश्वास कि किसी भी अन्यायपूर्ण व्यवस्था को केवल सवाल पूछकर और संघर्ष करके बदला जा सकता है, उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाता है। उनके निधन के साथ न केवल दलित समुदाय ने, बल्कि समतावादी समाज के निर्माण की लड़ाई में हर व्यक्ति ने एक मार्गदर्शक खो दिया है।
श्रद्धांजलि: उनकी विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी
वी. टी. राजशेखर के निधन के बाद देशभर से उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है। उनके विचार और उनकी लेखनी ने लाखों लोगों को प्रेरित किया। अब यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाएं और उस समाज की कल्पना करें, जो उन्होंने अपने लेखन और विचारों में किया था—एक ऐसा समाज जहां जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
वी. टी. राजशेखर को हमारा सलाम और श्रद्धांजलि। उनकी सोच और संघर्ष हमेशा हमारी राह को रोशन करेंगे।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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