बीएचयू के हिन्दी विभाग में आयोजित सेमिनार के दौरान दलित छात्र के साथ जातिसूचक गालियां देकर मारपीट की गई। पीड़ित ने सीर पुलिस चौकी में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन विभाग के एक प्रोफेसर आरोपियों के पक्ष में माफी का दबाव डालने पहुंचे। पुलिस ने अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की, और पीड़ित न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है।
बीएचयू (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) के हिन्दी विभाग द्वारा कृषि विज्ञान संकाय के शताब्दी प्रेक्षागृह में 19 नवंबर 2024 को आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में दलित छात्र के साथ मारपीट और जातिसूचक गालियों की घटना ने विश्वविद्यालय में जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक उदासीनता को फिर उजागर कर दिया। पीड़ित छात्र, जो परास्नातक का पूर्व छात्र है, विद्वानों को सुनने और अनुभव प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम में शामिल हुआ था। सेमिनार के बाद भोजन की व्यवस्था थी, जहां से इस घटना की शुरुआत हुई।
दलित वॉयस के संपादक वी. टी. राजशेखर का 93 वर्ष की उम्र में निधन
भोजन लाइन में उपजे विवाद से मारपीट तक
भोजन वितरण के दौरान, जब पीड़ित छात्र अपनी बारी पर खाना लेने के लिए आगे बढ़ा और खाना बांट रहे सहपाठी राकेश कुमार सिंह से खाने की मांग की, तो राकेश ने उसे घूरते हुए गालियां दीं। पीड़ित ने शांति बनाए रखते हुए इस अपमान को नजरअंदाज कर दिया और सेमिनार हॉल में लौट गया। लेकिन घटना यहीं समाप्त नहीं हुई। कुछ समय बाद राकेश ने पीड़ित को फोन कर बाहर बुलाया। बाहर जाते ही राकेश, गौरव सिंह और एक अन्य अज्ञात लड़के ने पीड़ित पर जातिसूचक टिप्पणियां करते हुए गंदी गालियां दीं और उस पर हमला कर दिया। तीनों आरोपियों ने पीड़ित को बेरहमी से पीटा, जिससे वह किसी तरह जान बचाकर वहां से भागा।
न्याय के लिए चौकी पहुंचा पीड़ित, लेकिन लगा दबाव
पीड़ित छात्र ने सीर पुलिस चौकी पहुंचकर आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए प्रार्थना पत्र दिया। लेकिन जब यह खबर कार्यक्रम के आयोजकों को मिली, तो हिन्दी विभाग के सहायक प्रोफेसर सत्यप्रकाश पाल अपने समर्थकों के साथ चौकी पहुंच गए। उन्होंने न केवल आरोपियों का बचाव किया, बल्कि पीड़ित छात्र पर गुरु-शिष्य परंपरा और क्षेत्रवाद का भावनात्मक दबाव डालकर शिकायत वापस लेने की कोशिश की।
पुलिस चौकी की लापरवाही और न्याय की लड़ाई
पीड़ित छात्र ने अपने साथ हुए अत्याचार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का फैसला किया, लेकिन अब तक प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है। पुलिस द्वारा मामले को टालने की कोशिश और छात्र को चौकी के चक्कर कटवाने की घटनाएं प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती हैं। पीड़ित छात्र पिछले दो दिनों से न्याय के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन आरोपियों के प्रभाव और पुलिस की निष्क्रियता के कारण उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
विश्वविद्यालय की चुप्पी और जातिगत भेदभाव पर सवाल
इस घटना ने बीएचयू में जातिगत भेदभाव की गहरी समस्या को उजागर किया है। यह चौंकाने वाला है कि ऐसे प्रतिष्ठित संस्थान में एक दलित छात्र को केवल उसकी जाति के कारण अपमानित और प्रताड़ित किया गया। विश्वविद्यालय प्रशासन और आयोजन समिति की चुप्पी ने पीड़ित के संघर्ष को और कठिन बना दिया है।
क्या पीड़ित को मिलेगा न्याय?
पीड़ित छात्र ने जब हमारे संवाददाता से बात की, तो वह सीर पुलिस थाने में बैठा हुआ था और अपनी पीड़ा साझा कर रहा था। उसने कहा कि वह हर हाल में न्याय की मांग करेगा, भले ही उसे इसके लिए कितनी भी बाधाओं का सामना क्यों न करना पड़े।
इस घटना के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी
यह घटना सिर्फ एक दलित छात्र के साथ मारपीट भर नहीं है, बल्कि यह जातिवाद और भेदभाव की उस गहरी जड़ का प्रतीक है, जो आज भी समाज और शैक्षणिक संस्थानों में मौजूद है। पीड़ित छात्र की बहादुरी और न्याय के प्रति उसकी दृढ़ता प्रशंसा के योग्य है। अब यह समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि उसे न्याय दिलाएं और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कठोर कदम उठाएं।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।