UP: 80 पुलिस निरीक्षकों के प्रमोशन में दलित, पिछड़े और आदिवासी अधिकारियों को किया गया नजरअंदाज

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यूपी में 80 पुलिस निरीक्षकों को डिप्टी पुलिस अधीक्षक के रूप में पदोन्नत करने की हालिया सूची ने पिछड़े, दलित, और आदिवासी (PDA) समुदायों के अधिकारों की अनदेखी के आरोपों को जन्म दिया है। इससे इन समुदायों में आक्रोश और निराशा फैल गई है। 

उत्तर प्रदेश में हाल ही में 80 पुलिस निरीक्षकों को प्रमोशन देकर डिप्टी पुलिस अधीक्षक बनाया गया है, लेकिन इस प्रमोशन सूची में पिछड़े, दलित, और आदिवासी (PDA) समुदाय के अधिकारों की अनदेखी का गंभीर आरोप लगाया जा रहा है। यह प्रमोशन लिस्ट सामने आते ही उन समुदायों के बीच आक्रोश और निराशा फैल गई, जिन्हें सामाजिक न्याय की सबसे अधिक आवश्यकता है। यह घटना प्रशासनिक व्यवस्था में गहरे पूर्वाग्रह और भेदभाव को उजागर करती है, जहां सामंती सोच आज भी कार्यरत है और जो योग्यता तथा निष्पक्षता के सिद्धांतों के खिलाफ खड़ी है। इस प्रमोशन लिस्ट में बहुसंख्यक पद उच्च वर्ग के अधिकारियों को ही दिए गए हैं, जबकि PDA समुदाय के अधिकारियों की संख्या बहुत कम है।

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PDA समुदाय को मौका देने में प्रशासन की कोताही

इस प्रमोशन प्रक्रिया में PDA समुदाय के अधिकारियों को उनकी योग्यता, कड़ी मेहनत, और निष्ठा के बावजूद उचित स्थान नहीं दिया गया है। यह एक चिंताजनक संकेत है, क्योंकि पुलिस जैसी संस्था में जहाँ समानता, निष्पक्षता, और सेवा के सिद्धांतों का पालन होना चाहिए, वहीं आज भी विशेष वर्गों का दबदबा बना हुआ है। इन समुदायों के अधिकारियों को प्रमोशन न देना उस सामंती मानसिकता का प्रतीक है, जो यह मानती है कि प्रशासनिक पद केवल कुछ ही खास वर्गों के लिए आरक्षित होने चाहिए। परिणामस्वरूप, उन योग्य उम्मीदवारों को भी नजरअंदाज कर दिया गया है जो समर्पण और निष्ठा के साथ अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

प्रशासन में प्रतिनिधित्व के अभाव से कमजोर होता समाजिक संतुलन

इस प्रमोशन लिस्ट को देखकर यह स्पष्ट होता है कि प्रशासन की शक्तियाँ किन्हीं एक खास वर्ग के हाथों में सौंपी जा रही हैं। इससे सामाजिक संतुलन और समावेशिता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। PDA समुदाय के अधिकारियों को नेतृत्व और निर्णय लेने का मौका देकर ही सही मायने में एक संतुलित और निष्पक्ष प्रशासनिक व्यवस्था बनाई जा सकती है। प्रशासनिक पदों पर उनकी हिस्सेदारी के अभाव में उनकी समस्याओं को सुना और समझा नहीं जा सकता, और इस भेदभाव का सीधा प्रभाव समाज के उन वंचित वर्गों पर पड़ता है जो समानता और न्याय के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।

समानता और न्याय के सिद्धांतों के विपरीत यह फैसला

प्रमोशन में भेदभाव न केवल PDA समुदाय के अधिकारियों के साथ अन्याय है, बल्कि यह योग्यता के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या समाज के प्रत्येक वर्ग को समान अवसर देना हमारे देश की प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए? ऐसे फैसलों से समाज में विभाजन और असंतोष बढ़ता है, जो हमारे लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। योग्यता और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ जाते हुए, सरकार ने प्रशासन में समाज के सभी वर्गों की भागीदारी और प्रतिनिधित्व के विचार को पीछे छोड़ दिया है। इसका सीधा असर पुलिस जैसे महत्वपूर्ण संस्थान की कार्यप्रणाली और उसके प्रति जनता के विश्वास पर पड़ता है।

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समाज में विश्वास बहाल करने के लिए आवश्यक कदम

अगर प्रशासनिक व्यवस्था में सामंती सोच और पूर्वाग्रह को समाप्त नहीं किया गया तो यह समाज के कमजोर वर्गों के साथ असमानता और भेदभाव को और बढ़ावा देगा। ऐसे में जरूरी है कि इस फैसले की समीक्षा की जाए और PDA समुदाय के अधिकारियों को भी उनके हक और काबिलियत के अनुसार पदोन्नति दी जाए। समाज के प्रत्येक वर्ग का प्रशासन में समान प्रतिनिधित्व ही सामाजिक न्याय और समावेशिता को सशक्त कर सकता है।

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