भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति एवं शिक्षा – सत्ता व न्यायालयों में भागीदारी ?

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धरती के इस छोर से उस छोर तक

मुट्ठी भर सवाल लिये मैं

छोड़ती-हाँफती-भागती

तलाश रही हूँ सदियों से निरंतर

अपनी ज़मीन, अपना घर

अपने होने का अर्थ!

निर्मला पुतुल द्वारा लिखीं गई ये पंक्तियाँ वर्तमान में महिला समाज की स्थिति को बखूबी बयां करती हैं और इस पितृसत्तात्मक व मनुवादी व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं?

देश भर में स्वतंत्रता आंदोलन के विकास के बाद, भारतीय समाज की महिलाएं उभरने लगीं और अपने पैरों की जंजीरों को तोड़ने लगीं। महिलाओं को अध्ययन करने और शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया जाने लगा। यदि हम बात करें वर्तमान में, तो भारत में चिकित्सा, तकनीकी, शिक्षण, कानूनी या बिजनेस या आदि लगभग हर क्षेत्र में महिलाएं अवश्य मिलेंगी यहां तक भारत में विभिन्न मंत्रालयों में उच्च पदों पर महिलाएँ मिलेंगी। लेकिन यदि हम गौर करें तो पाएगें कि यह प्रगति उनकी आबादी का एक अंशमात्र ही हैं। आज भी भारतीय समाज में महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक व्यवस्था व पितृसत्तात्मक सोच के चलते घरों की चार दीवारों में कैद हैं जो अभी तक सामाजिक (रीति-रिवाज, परम्परा नियम मनुवादी व्यवस्था) रूपी जंजीर को तोड़ नहीं पाईं हैं।

 

सामाजिक रूपी जंजीरें

राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब जी कहते हैं ” किसी समाज की प्रगति मैं उस समाज में महिलाओं की प्रगति से आँकता हूँ”

राष्ट्र निर्माता बाबासाहेब का यह कथन महिला व देश के विकास पर बिल्कुल सही बैठता है। महिलाओं की स्थिति किसी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्थिति को दर्शाती है।

वैसे आज हम कहने को तो चाँद पर पहुंच गये और बड़े गर्व के साथ बोलते हैं लेकिन यदि हम ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि आज भी महिला समाज का एक सब से बड़ा हिस्सा पीछे हैं आज भी उनकी स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। यदि कोई महिला आगे बढ़ना भी चाहतीं हैं तो उसके रास्ते में सामाजिक व्यवस्था रूपी जंजीरें रोक देतीं और वहीं पर उनके सपनें उनके हौंसले इस जंजीर में बंधकर दम तोड़ देतीं हैं।

वैसे हिन्दू धर्म के शास्त्रों में महिलाओं को आध्यात्मिकता व देवी का प्रतीक माना गया है।लेकिन फिर भी, प्राचीन भारतीय सभ्यता में महिलाओं को अधिकारों और समानता से वंचित रखा गया। साथ ही उनको धर्मिक व सामाजिक रूपी रीति-रिवाज की बेड़ियों में बांधकर रखा गया और आज भी यह बकायदा बरकरार है।

 

महिलाओं की साक्षरता दर ?

शिक्षा के लिए सरकारों द्वारा कई योजनाएं भी चलाईं गई जैसे राष्ट्रीय शिक्षा मिशन।

राष्ट्रीय शिक्षा मिशन प्रौढ़ शिक्षा निदेशलय द्वारा संचालित किया गया, इस मिशन के तहत 15-35 वर्ष के निरक्षर महिलाओं को शिक्षित बनाने का लक्ष्य है। इस योजना में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए विशेष प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध है।

ऐसे ही अन्य योजनाएं चलीं जैसे – जन शिक्षण संस्थान, राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान आदि।

लेकिन यहाँ पर आदि हम एक बार आँकड़ों पर नजर डालें तो,. विश्व बैंक भारत (World Bank India) की रिपोर्ट के अनुसार,  साल 1951 में भारत की साक्षरता दर केवल 18.3 फीसदी थी जिसमें से महिलाओं की साक्षरता दर 9 फीसदी से भी कम थी। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के डाटा के अनुसार साल 2021 में देश की औसत साक्षरता दर 77%  हो गई हैं जबकि पुरुषों की साक्षरता दर 84.7%, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 70.30 प्रतिशत थी। सरकार की राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (National Sample Survey) रिपोर्ट के अनुसार, केरल 92.2% के साथ देश का सबसे साक्षर राज्य है, इसके बाद केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप (91.85%) है. देश का तीसरा सबसे साक्षर राज्य मिजोरम (91.33%) है. जबकि बिहार में भारत में सबसे कम साक्षरता दर 61.8% है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश में 65.3% और राजस्थान में 66.1% है।

हालाँकि, भारत में लगभग 12.6% छात्र स्कूल छोड़ देते हैं, और 19.8% ने माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई छोड़ दी हैं। जहाँ देखने को मिलता है कि लड़कियों की संख्या काफी अधिक है क्योंकि यहाँ लड़कियों को घर के काम-काज में मदद करने या फिर उनकी जल्दी शादी कर दिया जाता है और कई समुदायों में लड़कियों को शिक्षित करना प्राथमिकता भी नहीं है और इसे एक अनावश्यक लागत के रूप में देखा जाता हैं। इसमें भी यदि गौर करेंगे तो आप पायेंगे इसका कारण पितृसत्तात्मक सोच सामाजिक परम्पराएँ आदि हैं जो सदियों से महिलाओं को वस्तु या घर की देखभाल तक ही समझा हैं। वैश्विक स्तर पर 1.8 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाती है। भारत में, महिला साक्षरता दर सहित साक्षरता दर, ग्रामीण क्षेत्रों में और शहरी क्षेत्रों के कुछ इलाकों में बहुत कम है, शहरी भारत में 84.11% की तुलना में ग्रामीण भारत में साक्षरता दर 67.77% है।

 

इसलिए यहाँ यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि आजादी के बाद से अब तक महिलाओं की साक्षरता दर में वृद्धि जरूर हुई लेकिन अभी भी यह स्थिति संतोषजनक नहीं है।

हां आज भारतीय समाज में महिलाएं लडकियां हर क्षेत्र में पढ़ रही हैं लेकिन हमारे देश में आज भी एक बड़ा हिस्सा खासकर (दलित आदिवासी अतिपिछड़े एवं अल्पसंख्यक जातीय के लोग) ऐसा हैं, जो शिक्षा के अधिकार से वंचित रह जाते हैं।

 

सत्ता व न्यायालयों में महिलाओं की भागीदारी

स्वतंत्रता के बाद भी और आज के समय में महिला हर क्षेत्र में  आगे आई है फिर चाहे सत्ता की बात हो न्यायालय की महिलाओं ने सत्ता की बागडोर बहुत ही बेहतरीन तरीके से संभाल था और संभला रहीं हैं और न केवल संभाल रहीं हैं बल्कि कुशल संचालन कर रही है और इसके फिलहाल तमाम उदाहरण है जैसे इक सबसे बड़ा उदाहरण सुश्री कुमारी मायावती हैं जिन्हें लोग प्यार से बहनजी के नाम से पुकारते हैं।

मायावती जी ने उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की चार बार मुख्यमंत्री बनकर  उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल कर रखा दिया और उन्होंने अपने शासन-प्रशासन और कुशल नेतृत्व करके इक ऐसा इतिहास रचा जो अमिट हैं और उन्होंने उन पितृसत्तात्मक मनुवादी जातिवादी मानसिकता वाले लोगों के मुख पर जोरदार तमाचा मारा है। जो महिलाओं को घर के चार दीवारों तक रखने जैसी वाली छोटी सोच रखते हैं। बाकी उदाहरण के तौर पर  प्रतिभा पाटिल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, आदि। लेकिन यदि हम देखें तो देश में महिलाओं की आबादी के अनुसार तो राजनीति में महिलाओं की संख्या अभी भी काफी कम है। भारतीय संसद में केवल14 फीसदी महिलाएँ हैं, जबकि संसद में महिलाओं की वैश्विक औसत भागीदारी 25 फीसदी से ज़्यादा है। इस तरह यदि हम न्यायालय की बात करें तो यहाँ भी महिलाओं की संख्या संतोषजनक नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालयों में मौजूद न्यायाधीशों में केवल 11 प्रतिशत ही महिलाएँ हैं। जो की दुखद:हैं।

भलेही आज की महिलाएं सशक्त हैं। साथ ही महिलाएं हर क्षेत्र में उन्नति और सफलता हासिल कर रही हैं। सच्ची महिला स्वतंत्रता तभी प्राप्त की जा सकती है जब लोग महिलाओं के संबंध में अपने प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण और मानसिकता को बदल दें और अब समय की मांग है कि महिलाएं खुद आगे आकर अपने हको अधिकारों के लिए आवाज उठाएं तभी परिवर्तन होगा फिर चाहे बात सामाजिक व्यवस्था रूपी जंजीरों को तोड़ने की हो या सत्ता व न्यायालयों में भागीदारी की बात हो तभी सामाजिक व्यवस्था रूपी जंजीरें टूटेगीं और हक अधिकार मान सम्मान व भागीदारी भी मिलेगी।

 

यह लेख बहुजन मुद्दों की जानकार दीपशिखा इन्द्रा द्वारा लिखा गया है 

 

Reference – राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO)  (data related), govt website, world bank report

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