भारतीय संविधान कब बनकर तैयार हुआ, लागू कब हुआ औऱ इसे बनने में कितना समय लगा ये बात आप सब जानते हैं लेकिन जो बात आप नहीं जानते हैं वो बात संविधान दिवस के मौके पर इस लेख के माध्यम से हम आपकों बताएंगे। हम बात करेंगे कि कैसे पिछले कुछ समय से संविधान और बाबा साहेब को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है.. जिसमें पहला झूठ है ये है कि..
1. संविधान निर्माता नहीं हैं बाबा साहेब:
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर संविधान को लेकर सबसे ज़्यादा झूठ ये फैलाया गया है कि बाबा साहेब अंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता नहीं है क्योंकि उन्होंने संविधान को लिखा ही नहीं है ।
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जबकि सच ये है कि संविधान समिति के अध्यक्ष बाबा साहेब अंबेडकर ने 60 देशों के संविधानों को पढ़कर भारतीय संविधान का खाका तैयार किया था और उस खाके को लिखित रूप प्रेम बिहारी नारायण रायजादा और कृष्ण वैद्य ने दिया था।
प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने कैलीग्राफी में हाथ से संविधान को इंग्लिश में लिखा था वहीं वसंत कृष्ण वैद्य ने अंग्रेज़ी में लिखे गए संविधान का हिंदी अनुवाद किया था।
2. संविधान सभा के लोग संविधान स्वीकारने के बाद भी थे नाराज़
26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अडॉप्ट किया था लेकिन इसे लागू करने के लिए 2 महीने का समय लिया गया था। कहा ये जाता है कि संविधान को अंगीकार करने के बाद भी संविधान सभा के कई सदस्यों ने संविधान के हिस्सों पर नाराज़गी जताई थी।
जबकि सच ये है कि 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार करने के बाद दो महीने तक संविधान का पाठ किया गया था और संविधान का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया गया था।
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इसके बाद 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के सेंट्रल हॉल में संविधान सभा के 284 सदस्यों ने संविधान की हिंदी और अंग्रेजी में लिखी गयी कॉपियों पर दस्तखत किए और 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान को लागू कर दिया गया।
3. भारतीय संविधान धर्मग्रंथ है?
कुछ लोग समझते हैं कि भारतीय संविधान का मतलब है विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का धर्मग्रंथ। जहाँ धर्म शब्द आ जाता है वहाँ पूजा पाठ आपने आप जुड़ जाता है। यहीं कारण है कि लोगो ने अब बाबा साहेब और संविधान को पूजना शुरू कर दिया है। लेकिन सच ये है कि बाबा साहेब मूर्ति पूजा, कर्मकांड और पाखंड के विरोधी रहे हैं। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने अपनी 22 प्रतिज्ञाओं में इसी बात का ज़िक्र किया है।
भारतीय संविधान लोकतंत्र का धर्मग्रंथ नहीं बल्कि लोकतांत्रिक पुस्तक है जिसमें नियम और कानून, समानता और स्वतंत्रता की बात की बात की गई है। संविधान का निर्माण करने के बाद लोग बाबा साहेब को देवता या मसीहा समझ कर पूजने न लगे इसलिए बाबा साहेब अंबेडकर ने मार्च 1953 में राज्य सभा में एक भाषण देते हुए कहा था कि, मुझे संविधान निर्माता कहना गलत होगा।
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खुद को भाड़े का लेखक बताते हुए उन्होंने कहा कि मैंने वह लिखा जो मुझे लिखने के लिए कहा गया।
4. संविधान जलाना चाहते थे बाबा साहेब ?
ये बात कुछ हद तक सच है कि बाबा साहेब ने संविधान को खुद जलाने की बात कही थी लेकिन इसके पिछे का करण ये था कि 2 सितंबर 1953 को राज्यसभा में देश के गवर्नर की शक्तियाँ बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन पर चर्चा हो रही थी। जिसका बाबा साहेब ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि, “मेरे दोस्त मुझसे कहते हैं कि मैंने संविधान बनाया है पर मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ कि इसे जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होउंगा। बाबा साहेब ने संविधान जलाने वाली बात क्यों कही थी इसका जवाब उन्होंने 19 मार्च 1955 को राज्यसभा में दिया।
उन्होंने कहा कि, हमने भगवान के रहने के लिए एक मंदिर बनाया पर इससे पहले कि भगवान उसमें आकर रहते, एक राक्षस आकर उसमें रहने लगा. अब उस मंदिर को तोड़ देने के अलावा चारा ही क्या है? हमने इसे असुरों के रहने के लिए तो नहीं बनाया था. हमने इसे देवताओं के लिए बनाया था. इसीलिए मैंने कहा था कि मैं इसे जला देना चाहता हूं।
यहाँ हमें बाबा साहेब की वो बात याद करनी चाहिए जिसमें वह कहते हैं कि, एक संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो, वो बुरा साबित होगा यदि उसे अमल में लाने वालें लोग बुरे होंगे… और एक संविधान कितना भी बुरा हो वह अतत: अच्छा साबित होगा यदि उसे अमल में लाने वाले लोग अच्छे होंगे।
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