कांग्रेस और भाजपा, दोनों दलों ने दलितों के उत्थान की बात की, लेकिन उनके शासनकाल में दलितों पर अत्याचार रुके नहीं। कांग्रेस ने योजनाएं बनाईं लेकिन जमीनी काम न के बराबर हुआ, जबकि भाजपा शासन में भी हाथरस जैसी घटनाओं ने उनकी नीयत पर सवाल खड़े किए। दोनों पार्टियां दलितों को केवल वोट बैंक समझती हैं। दलित समाज को अब खुद सशक्त होकर अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना होगा।
दलित समाज, जो भारत की सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, दशकों से राजनीतिक पार्टियों के लिए केवल वोट बैंक बना रहा है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों ही दलों ने समय-समय पर दलितों के अधिकारों और उत्थान की बात की है, लेकिन हकीकत यह है कि दोनों के शासनकाल में दलितों पर अत्याचार के मामले थमे नहीं हैं।
कांग्रेस राज: दलितों पर अत्याचारों का इतिहास
कांग्रेस के शासनकाल में दलित समाज पर अत्याचारों की लंबी फेहरिस्त है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस शासित राज्यों में दलितों पर हिंसा के मामले लगातार बढ़ते रहे। 2013 में राजस्थान के दौसा जिले में एक दलित महिला के साथ सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आया, जिसे दबाने की कोशिश की गई। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दलित किसानों की जमीनें छीनी गईं और उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ा। कांग्रेस ने दलितों को केवल चुनावी मुद्दा बनाया और उनके कल्याण की योजनाओं को कागज़ों तक सीमित रखा।
भाजपा का शासनकाल: नीयत पर सवाल
भाजपा ने कांग्रेस पर दलितों के खिलाफ अत्याचारों के आरोप तो लगाए, लेकिन खुद के शासनकाल में भी स्थिति कुछ बेहतर नहीं हुई। 2019 से 2023 के बीच दलितों पर अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े। उत्तर प्रदेश, जो भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है, वहां हाथरस जैसी घटनाएं यह साबित करती हैं कि दलित समाज भाजपा शासन में भी सुरक्षित नहीं है। दलित महिलाओं पर अत्याचार और उनकी आवाज़ को दबाने के मामले भाजपा की नीयत पर सवाल खड़े करते हैं।
दलितों के साथ दोनों दलों का छलाव
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने दलित समाज के विकास के लिए बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान किया। कांग्रेस ने “पंचायती राज अधिनियम” और “दलित आरक्षण” जैसी नीतियां लाई, वहीं भाजपा ने “स्टैंड अप इंडिया” और “अंबेडकर स्कॉलरशिप योजना” की शुरुआत की। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन योजनाओं का प्रभाव दलितों के जीवन में बहुत कम पड़ा। दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामले दोनों दलों की असफलता को उजागर करते हैं।
दलित समाज को चाहिए वास्तविक न्याय
दलित समाज को अब यह समझना होगा कि कांग्रेस और भाजपा दोनों केवल उनके वोट पाने के लिए उनके अधिकारों की बात करते हैं। असली न्याय तभी मिलेगा जब दलित समाज खुद को सशक्त बनाएगा और उन नेताओं को चुनेगा जो उनकी समस्याओं को ईमानदारी से हल कर सकें।
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निष्कर्ष
दलित समाज पर अत्याचार कांग्रेस और भाजपा दोनों के शासनकाल में रुके नहीं हैं। यह समय है कि दलित समाज अपनी आवाज़ बुलंद करे और उन राजनीतिक दलों को जवाब दे, जिन्होंने केवल उन्हें वोट बैंक समझा है। दलित समाज को अपनी शिक्षा, आर्थिक स्थिति और सामाजिक अधिकारों के लिए खुद खड़ा होना होगा, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा की राजनीति ने उन्हें केवल असहाय बना रखा है।
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