हाथी-मानव संघर्ष में जान गंवाते छत्तीसगढ़ के आदिवासी, सरकारें नहीं देती ध्यान-सिर्फ चुनाव के लिए विशेष व्यवस्था !

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लोकसभा चुनाव 2024 में वोटिंग प्रतिशत को 100 फीसदी करने वाले चुनाव आयोग के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए, लेकिन यह बात भी याद रखनी चाहिए कि वोट मांगने वाले नेताओं के पास कभी इतना समय नहीं रहा कि वह छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में हाथी मानव संघर्ष का मुद्दा उठाएं…

Chhattisgarh Tribal live matter : चुनाव आयोग ने ठाना है कि इस लोकसभा चुनावों (Loksabha Election 2024) में देश का कोई भी हिस्सा मतदान से छूटना नहीं चाहिए। इसलिए चुनावो में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए संघर्ष वाले क्षेत्रो में चुनाव आयोग (Election Commission) विशेष व्यवस्था करवा रहा है। जनसत्ता की एक रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के जशपुर में मतदाताओं को वोटिंग करने के लिए कोई परेशानी का सामना न करना पड़े, इसलिए जशपुर (jashpur)प्रशासन पोलिंग पार्टी और मतदाताओं दोनों के लिए वोटिंग बूथ पर विशेष व्यवस्था कर रहा है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का जशपुर इलाका वन यानी जंगलों के बेहद करीब है। वहीं जशपुर जिले के वन क्षेत्र में मानव – हाथी संघर्ष एक बड़ी समस्या है।

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आदिवासी इलाकों में हाथियों का आतंक :

जानकारी के मुताबिक जशपुर जिले के वन क्षेत्र के पास रहने वाले आदिवासियों को रोजना हाथियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। खाने की तलाश में हाथी रिहायशी इलाकों में आ जाते हैं और आदिवासियों का काफी नुकसान कर देते है। यह नुकसान सिर्फ खाने की चीज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इस संघर्ष में कई मानवों और हाथियों की जान भी चली जाती है। जशपुर का वन क्षेत्र और यहाँ रहने वाले आदिवासी हमेशा से हाथियों से प्रभावित रहे हैं। वोटिंग वाले दिन ऐसे किसी भी संघर्ष से बचने के लिए अधिकारियों ने अपने लेवल पर इसकी व्यवस्था की है।

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चुनाव में मुद्दा गायब :

लोकसभा चुनाव 2024 में वोटिंग प्रतिशत को 100 फीसदी करने वाले चुनाव आयोग के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए, लेकिन यह बात भी याद रखनी चाहिए कि वोट मांगने वाले नेताओं के पास कभी इतना समय नहीं रहा कि वह छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में हाथी मानव संघर्ष का मुद्दा उठाएं। बीते साल यानी 2023 में छत्तीसगढ़ मवन विधानसभा चुनाव हुए थे। लेकिन उस दौरान भी यह मुद्दा बीजेपी और कॉंग्रेस दोनों ही पार्टियों के भाषणों से गायब था। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश भर के हाथियों की संख्या का केवल एक प्रतिशत छत्तीसगढ़ में है लेकिन फिर भी हाथी-मानव संघर्ष की 15 प्रतिशत से अधिक घटनाएं छत्तीसगढ़ में होती है।

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एक साल में 74 मौत :

दैनिक भास्कर की ही एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2022-23 में छत्तीसगढ़ में मानव- हाथी संघर्ष में 74 जान गई थी। वहीं औसतन 18 से 20 हज़ार मकान और फसल क्षतिग्रस्त करने के मामले हर साल छत्तीसगढ़ से सामने आते हैं। यानी हर दिन करीब 50 हाथी-मानव संघर्ष छत्तीसगढ़ में होता है। वहीं भारत सरकार के हवाले से दैनिक भास्कर लिखता है कि हर पांचवे दिन हाथी के हमले से यहाँ एक व्यक्ति की जान जाती है, लेकिन सवाल फिर वहीं खड़ा होता है कि ये मुद्दे चुनावों से गायब क्यों रहता है। सिर्फ वोट लेने के लिए व्यवस्था करना और चुनाव खत्म होने के बाद दलित आदिवासियों को उसी दलदल में धकेलने का ये सिलसिला कब तक चलता रहेगा। ये महत्वपूर्ण मुद्दे चुनावों में कब उठाए जाएंगे। बता दें कि  राज्य की लगभग एक तिहाई आबादी इन्हीं जंगलो पर निर्भर है, लेकिन वन जीवों के साथ मानवों का लगातार बड़ रहा संघर्ष चिंता का विषय है, लेकिन  ये मुद्दा सरकार के सामने हाशिए पर भी नहीं हैं।

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