लाश आइडेंटिफाई नहीं हुई, डीएनए रिपोर्ट नहीं आई, और दलित विधायक मनोज मंजिल को आजीवन कारावास समेत विधायकी रद्द करने की सजा सुना दी गई, दूसरी तरफ दलित जनसंहारों के सैकड़ों अभियुक्तों को बरी कर दिया गया…
प्रेमा नेगी की टिप्पणी
Who is Bihar’s Dalit leader Manoj Manzil : बिहार के जुझारू दलित नेताओं में शामिल मनोज कुमार मंजिल विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिये गये हैं और साथ ही उन्हें उम्रकैद की सजा भी सुनायी गयी है। इसका कारण है उन पर लगा हत्या का एक आरोप। मनोज मंजिल की सदस्यता निरस्त किये जाने को उनकी पार्टी के नेता भाजना की साजिश करार दे रहे हैं। आरोप लगा रहे है। कि नीतीश कुमार के भाजपा के साथ गठबंधन के बाद जानबूझकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)-माले के विधायक मनोज कुमार मंजिल को अयोग्य घोषित किया गया है, ताकि वह सड़क की आवाज सदन तक न ले जा पायें और जनता के सवाल जहां से उठें वहीं दफन हो जायें।
बिहार विधानसभा की ओर से जारी एक अधिसूचना के मुताबिक जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ के मुताबिक मनोज मंजिल की अयोग्यता 13 अप्रैल से प्रभावी होगी, जो उनको ‘दोषी ठहराये जाने और सजा सुनाने’ की तारीख है। मनोज मंजिल को हत्या के एक मामले में अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा सुनाये जाने के 3 दिन बाद शुक्रवार 16 फरवरी को बिहार विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
इस मामले में मनोज मंजिल को ठहराया गया है हत्यारोपी
मनोज मंजिल को आरा के एमपी/एमएलए कोर्ट ने 2015 में हुई जेपी सिंह नाम के व्यक्ति की हत्या के मामले में 22 अन्य लोगों के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसके अलावा मंज़िल पर 30 अन्य मामले भी दर्ज हैं। हत्या के दोषी ठहराये जाने वाले मामले में मंजिल ने एमपी/एमएलए कोर्ट के फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
गौरतलब है कि मनोज मंजिल फिलहाल भोजपुर जिले के तरारी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा)-माले के जुझारू नेता मनोज को जिला मुख्यालय आरा में एमपी-एमएलए अदालत ने 8 साल पुराने हत्या के मामले में दोषी ठहराया था। मनोज मंजिल की सदस्यता निरस्त होने के बाद 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में माले के अब मात्र 11 विधायक बच गये हैं। उनकी पार्टी का आरोप है कि मनोज मंजिल भाजपा की साजिश का शिकार हुए हैं। उनको उम्रकैद की सजा सुनाये जाने और हत्या में दोषी ठहराये जाने के बाद माले ने जोरदार प्रदर्शन भी किया था। इसके अलावा भाकपा मामले के कार्यकर्ताओं ने आरा में मनोज मंजिल के समर्थन में प्रदर्शन करते हुए मार्च निकाला था।
प्रदर्शन में हिस्सेदारी करते हुए भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहते हैं, मनोज मंजिल को एक व्यक्ति की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है, मगर भाजपा के प्रति सहानुभूति रखने वाले जमींदारों के निजी मिलिशिया द्वारा किए गए नरसंहारों में किसी भी आरोपी को दोषी नहीं ठहराया गया है।
गौरतलब है कि जिस जेपी सिंह मर्डर केस में मनोज मंजिल को विधायक के रूप में अयोग्य घोषित किया गया है, वह 2015 के विधानसभा चुनावों के एक अभियान से जुड़ा था। कहा जाता है कि सीपीआई (एमएल) लिबरेशन की एक सार्वजनिक बैठक में जो अज़ीमाबाद के पास बड़गांव गांव में हुई थी, पार्टी सदस्यों को पार्टी कार्यकर्ता सतीश यादव की हत्या के बारे में पता चला था। आरोप है कि प्रतिशोध में सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के सदस्यों पर स्थानीय सवर्ण जाति यानी राजपूतों ने जेपी सिंह की हत्या का आरोप मढ़ दिया। इसीलिए सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने मंज़िल की सजा को “न्यायिक नरसंहार का कार्य और सामंतवादी साजिश का हिस्सा” करार दिया है।
सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के बिहार मीडिया प्रभारी कुमार परवेज बातचीत में कहते भी हैं, जिस हत्या के मामले में मनोज मंजिल की सदस्यता निरस्त की गयी है, उस मामले में हमें अभी तक ये यकीन नहीं है कि वो शव जेपी सिंह का था। गरीबों—पीड़ितों—दलितों—दमितों के लिए मंज़िल की सक्रियता के कारण उनके खिलाफ अन्य मामले भी चल रहे हैं और ये सब राजनीति से प्रेरित है। वहीं माले के बिहार सचिव कुणाल कहते हैं, पार्टी के कार्यकर्ता अदालत के फैसले के विरोध में और मंजिल के लिए न्याय की मांग करेंगे। 19 फरवरी से 25 फरवरी के बीच भोजपुर के सभी गांवों का दौरा करेंगे और मंजिल को न्याय दिलाने के लिए जनता का सहयोग मांगेंगे।
माले के विधायक संदीप सौरव मनोज मंजिल को निर्दोष करार देते हुए कहते हैं, ‘विपक्ष की पार्टियों और नेताओं को तोड़ने और जो न टूटे उसे किसी भी तरह जेल में डालने की साज़िश भाजपा सरकार की शासन पद्धति का ट्रेडमार्क बन गया है। साथी मनोज मंजिल पर राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित फर्जी मुकदमा दायर किया गया था, लेकिन हम भी हार मानने वालों में नही हैं। इन साज़िशों के ख़िलाफ़ राजनीतिक और क़ानूनी संघर्ष जारी रहेगा।’
वहीं माले के एक अन्य विधायक धीरेंद्र झा विरोध व्यक्त करते हुए कहते हैं, ‘भारत के न्यायपालिका के इतिहास में #विधायकमनोजमंजिल सहित 23 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सामंती ताकतों_ दलित विरोधी तंत्र की बड़ी साजिश के बतौर दर्ज हुई है! लाश आइडेंटिफाई नहीं हुआ, डीएनए रिपोर्ट नहीं आई, और सजा सुना दी गई! दलित जनसंहारों के सैकड़ों अभियुक्तों को बरी कर दिया गया?’
कौन हैं दलित नेता मनोज कुमार मंजिल
40 वर्षीय दलित नेता मनोज कुमार मंज़िल ने वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में भोजपुर जिले के अगिआंव निर्वाचन क्षेत्र से विधायकी का चुनाव जीता थे। पिछले कुछ वर्षों से मनोज मंजिल भोजपुर बिहार में कई समाजवादी और किसान आंदोलनों से जुड़े हुए थे। छात्र राजनीति से ही उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी। जब मनोज मंजिल आरा के वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे, तभी ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) से जुड़ गये थे। वर्ष 2006 के बाद मनोज मंज़िल ने भोजपुर की जनता के बीच अपने काम से लोकप्रियता हासिल करनी शुरू कर दी थी। मंजिल ने चर्चित ‘सड़क पर स्कूल’ अभियान के जरिये घर—घर में पैठ बनायी थी। इसके जरिये मनोज मंजिल ने बिहार की शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किये थे। बिहार में कक्षा-विहीन, भवन-विहीन और शिक्षक की कमी वाले अभियान पर नीतीश कुमार ने भी संज्ञान लिया था।
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