दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली सीट पर प्रतिष्ठा दांव पर है। बीजेपी और कांग्रेस ने मजबूत उम्मीदवार उतारकर उन्हें घेर लिया है। फर्जी वोटर लिस्ट और हार के डर से ‘आप’ उन्हें दूसरी सीट से भी चुनाव लड़ाने की योजना बना रही है। दलित वर्ग ‘आप’ से नाराज होकर आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस की ओर रुझान कर रहा है। केजरीवाल के यूपी-बिहार पर बयान और रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं, जिससे उनकी राजनीति पर गंभीर आरोप लग रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए नई दिल्ली विधानसभा सीट एक प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है। यहां बीजेपी और कांग्रेस ने अपने मजबूत उम्मीदवार उतारकर केजरीवाल को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है। बीजेपी ने जहां पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को उतारा है, वहीं कांग्रेस ने शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारकर केजरीवाल के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं। इस सीट पर हर रोज नए वोटरों के जुड़ने और चुनावी धांधली के आरोपों ने आम आदमी पार्टी के अंदर बेचैनी बढ़ा दी है। दलित वर्ग, जो पहले ‘आप’ का मजबूत वोट बैंक माना जाता था, अब पार्टी की नीतियों और बयानबाजी से आहत है।
दलित विरोधी बयान और नीतियां: केजरीवाल पर सवाल
अरविंद केजरीवाल का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने यूपी और बिहार के लोगों को दिल्ली की समस्याओं का जिम्मेदार ठहराया, दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ। केजरीवाल ने अपने बयान में अप्रत्यक्ष रूप से उन समुदायों को निशाना बनाया, जो दिल्ली में मेहनत-मजदूरी कर अपनी आजीविका चलाते हैं। यह बयान न केवल उनकी दलित समर्थक छवि पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि ‘आप’ सत्ता की लालसा में सामाजिक न्याय के मुद्दों से दूर होती जा रही है।
नई दिल्ली सीट पर रोना: क्या केजरीवाल हार मान चुके हैं?
अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट पर फर्जी वोटर लिस्ट और धांधली का आरोप लगाकर खुद अपनी कमजोरी उजागर कर दी है। उन्होंने यह कहते हुए चुनाव आयोग पर आरोप लगाए कि 15 दिन में 13 हजार नए वोटर कहां से आ गए। बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि केजरीवाल दिन-रात रोते रहते हैं। यह राजनीतिक ड्रामा दलितों और हाशिए पर खड़े लोगों के लिए निराशाजनक है, जो ‘आप’ से समानता और न्याय की उम्मीद करते थे।
दलितों का मोहभंग: आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस बनी विकल्प
दिल्ली में दलित मतदाता धीरे-धीरे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी से दूर हो रहे हैं। इन मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग अब चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस की ओर देख रहा है। आजाद समाज पार्टी का दलितों के अधिकारों की लड़ाई में सक्रिय भूमिका और कांग्रेस का सामाजिक न्याय का एजेंडा दलितों के लिए एक मजबूत विकल्प बनता जा रहा है।
नई रणनीति: दो सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी या हार का डर?
‘आप’ के रणनीतिकार अब अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली के अलावा एक सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाने की योजना बना रहे हैं। चर्चा है कि नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली की किसी सुरक्षित सीट पर केजरीवाल को उतारा जा सकता है। हालांकि, पार्टी के अंदर ही यह डर है कि यदि केजरीवाल नई दिल्ली सीट छोड़ते हैं तो बीजेपी और कांग्रेस इसे उनकी हार के डर के रूप में प्रचारित करेंगी। यह न केवल केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि पार्टी के अन्य उम्मीदवारों के मनोबल पर भी असर डालेगा।
केजरीवाल की रणनीति: सत्ता के लिए नैतिकता का त्याग
अरविंद केजरीवाल का नई दिल्ली सीट को लेकर दोहरी रणनीति उनकी सत्ता की लालसा को उजागर करती है। यह रणनीति दलित समुदायों के साथ किए गए उनके वादों और विश्वासघात को भी दिखाती है। सत्ता के लिए नैतिकता और ईमानदारी के अपने पुराने वादों को भुलाकर, केजरीवाल ने एक बार फिर साबित किया है कि आम आदमी पार्टी अब ‘आम आदमी’ के लिए नहीं, बल्कि ‘सत्ता के लिए’ काम कर रही है।
निष्कर्ष:
नई दिल्ली विधानसभा सीट पर हो रहा यह राजनीतिक नाटक केवल एक सीट की लड़ाई नहीं है। यह अरविंद केजरीवाल की राजनीति और उनकी पार्टी की प्राथमिकताओं का असली चेहरा दिखाता है। दलित और पिछड़े वर्गों को इस लड़ाई में सावधानी से निर्णय लेना होगा, ताकि वे अपने हितों की रक्षा कर सकें और सत्ता के खेल में मोहरा न बनें।
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