सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अनुसूचित जाति-जनजाति के पदोन्नति में आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव, संजीव खन्ना और बी आर गवई की बेंच ने कहा कि संबंधित राज्य सरकार एम नागराज बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले में निर्धारित डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य है।
कि राज्य सरकारें अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है। उस डेटा का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। हालांकि, केंद्र यह तय करे कि डेटा का मूल्यांकन एक तय अवधि में ही हो और यह अवधि क्या होगी यह केंद्र सरकार तय करे।
सुप्रीम कोर्ट में अपने इस फैसले में कहा की, ” पहले के फैसलों में तय आरक्षण के प्रावधानों और पैमाने में हम कोई दखल नहीं दे सकते हैं। राज्य एससी-एसटी जनजातियों के कर्मचारियों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले क्वॉन्टेटिव डेटा जुटाने के लिए बाध्य है। SC-ST को प्रमोशन में आरक्षण में सही प्रतिनिधित्व मिला है या नहीं। इस रिव्यू के लिए एक अवधि भी तय करनी चाहिए। हमने इसकी मापदंड का आकलन करने के लिए इसे राज्य पर छोड़ दिया है।”
मध्यप्रदेश में 2016 से पदोन्नति में आरक्षण पर रोक है –
मध्य प्रदेश में अप्रैल 2016 से पदोन्नति में रोक है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल को ‘मप्र लोक सेवा (पदोन्नत) नियम 2002″ खारिज कर दिया था। इसके बाद से अधिकारी और कर्मचारी पदोन्नति को लेकर परेशान हैं और लगातार सरकार से पदोन्नति शुरू करने की मांग कर रहे हैं। इस अवधि में 60 हजार से अधिक कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें से 32 हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
सामान्य वर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नियम खारिज किए थे। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और मई 2016 में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण में यथास्थिति के निर्देश दे दिए। तभी से प्रदेश में पदोन्नति पर रोक लगी है।
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