तेलंगाना के महबूबनगर जिले में सरकार द्वारा बनाए गए एक छोटे से शौचालय के अंदर एक दलित परिवार पिछले दो वर्षों से रह रहा है। परिवार में 30 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर सुजाता, उसकी सास और उसके दो बच्चे शामिल हैं। खाना पकाने के लिए परिवार को शौचालय में भारतीय शैली के कमोड को स्लैब से ढक कर उसके ऊपर एक गैस स्टोव लगाना पड़ा है।
सुजाता और उनके परिवार के सदस्य बालानगर मंडल, तिरुमालागिरी क्षेत्र के एक गांव में रहते हैं, जहां अधिकांश आबादी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से है।
करीब सात साल पहले सुजाता के पति की मौत हो गई और फिर साढ़े तीन साल पहले बारिश के कारण उसका घर ढह गया जिसके बाद वे एक स्थानीय सामुदायिक हॉल में चले गए। जब परिवार को हॉल खाली करने के लिए कहा गया तब उन्होंने शौचालय को अंतिम उपाय के रूप में पाया।
सुजाता ने मीडिया को बताया कि “मैं और मेरी सास बाहर सोते हैं और बच्चे अंदर सोते हैं। जिन दिनों बारिश होती है, मुझे नींद नहीं आती। मैं बच्चों को अंदर सुलाती हूँ और छत के नीचे बैठ जाती हूँ। डबल बेड रूम हाउस कहां है जिसका मुख्यमंत्री ने वादा किया था?”
वह 2014 के विधानस0भा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का जिक्र कर रही थीं, जिन्होंने राज्य के आंध्र प्रदेश से अलग होने के बाद पहली बार समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को बिना शुल्क के 2.8 लाख दो बेडरूम का घर देने का वादा किया था। वादा काफी हद तक पूरा नहीं हुआ है, केसीआर और उनकी तेलंगाना राष्ट्र समिति की इसके लिए बार-बार आलोचना की गई है।
इस मुद्दे पर काफी आक्रोश और कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के बाद, सरपंच, केसिली ने सुजाता के परिवार के लिए उसी स्थान पर शौचालय के बगल में एक घर बनाने का फैसला किया। पिछले गुरुवार को शिलान्यास समारोह भी आयोजित किया गया था। हालांकि, परिवार अभी भी शौचालय में रह रहा है।
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