“हमारे देश को आज़ादी तभी मिली समझनी चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता, अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे।” यह शब्द इरोड वेंकट नायकर रामासामी उर्फ़ पेरियार के हैं। वह पेरियार जिन्होंने ताउम्र जातिवाद और ब्राह्मणवाद से लड़ाई लड़ते हुए ईश्वर के अस्तित्व को खारिज़ किया और खारिज़ करते हुए ऐसे तर्क दिए, जिन तर्कों के आधार पर जातिवाद और ब्राह्मणवाद और ईश्वर के अस्तित्व को लेकर लोगों के भीतर प्रश्न खड़े होने शुरू हुए।
दक्षिण भारत के तमिलनाडु में पैदा हुए पेरियार ने जातिवाद और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध करते हुए तर्कवाद, आत्मसम्मान, समानता और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर ज़ोर दिया। जाति प्रथा का तीक्ष्ण विरोध करते हुए पेरियार वैश्विक पटल पर उभकर सामने आए और यूनेस्को ने पेरियार को “नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आंदोलन का पिता कहकर अपने वक्तव्यों में संबोधित किया।
पेरियार कहते हैं कि मैंने सब कुछ किया. मैंने गणेश आदि सभी ब्राह्मण देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ डालीं. राम आदि की तस्वीरें भी जला दीं. मेरे इन कामों के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की गिनती में लोग इकट्ठा होते हैं तो साफ है कि ‘स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है.’ पेरियार के यह शब्द मनुष्यों में तार्किक रूप से सोचने और विचार करने की क्षमता को जागृत करते हैं। प्रत्येक मनुष्य समान और नैसर्गिक रूप से जीवनयापन करने के लिए जन्मा है। फिर कुछ तथाकथित मनुष्यों ने वर्ण और जाति की जो व्यवस्थाएं बनाई हैं वह किस समानता और नैसर्गिकता को परिलक्षित करती हैं? इस तरह से तो वह प्रकृति के समानता और नैसर्गिकता के मूल्यों को ही नकारने का कार्य कर रही हैं।
ईश्वर और ब्राह्मणी कर्मकांड की व्यवस्था को लेकर पेरियार कहते हैं कि आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर सन्देश और अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं। हम ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धों में परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल और खीर भेज रहे हैं। क्या यह बुद्धिमानी की निशानी है? देखा जाए तो पेरियार का यह कथन इस दिशा में तार्किक रूप से सोचने को बाध्य करता है कि पश्चिमी देशों में विकासपरक योजनाओं को लेकर कार्य किया जा रहा है और हमारे देश यानी कि भारत में ब्राह्मण के कर्मकांडी स्वरूपों और व्यवस्थाओं को आंख मूंदकर माना जा रहा है और उनका अनुसरण किया जा रहा है।
यूँ तो पेरियार को लेकर यह कहा जा सकता है कि वह ईश्वर को इसलिए नकारते थे, क्योंकि वह ईश्वर में आस्था नहीं रखते थे। लेकिन इस कथन को भी नहीं नकारा जा सकता कि जिस तरह के तर्क पेरियार ने ईश्वर और ईश्वरीय सत्ता को नकारने के लिए प्रस्तुत किए वह विचारणीय हैं। ईश्वर की सत्ता को नकारते हुए पेरियार कहते हैं कि ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े ही साहस और दृढ़ विश्वास की जरूरत पड़ती है। पेरियार इसी वक्तव्य में आगे कहते हैं कि यह स्थिति उन्हीं के लिए सम्भव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति है।
लेखक: विशेक
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