यु तो देश के पांच राज्यों में चुनाव है जिनके परिणाम 10 मार्च को आने है । लेकिन पुरे देश की निगाहें इस वक्त उत्तरप्रदेश चुनाव के परिणामों पर टिकी हैं। पांचो राज्यों में चुनावी सरगर्मिया तेज हैं लेकिन केंद्र का रास्ता तो यूपी से होकर ही निकलता हैं । भाजपा 2017 के अपने इतिहास को दोहराना चाहती हैं तो वही अखिलेश 2012 के अपने इतिहास को। लेकिन मायावती एक बार फिर 2007 की तरह ख़ामोशी से सोशल इंजीनियरिंग के बलबूते यूपी की सत्ता पर काबिज होना चाहती हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती के मुकाबले भाजपा और सपा ने चुनावी तारीखों के ऐलान से पहले ही अपनी ताकत बता दी थी। जबकि 2 फरवरी को “दलितों की राजधानी” कहे जाने वाले आगरा से बसपा सुप्रीमो ने अपने चुनावी अभियान का आगाज किया था। जिसके बाद मायावती लगातार चुनावी मोड़ हैं और लगातार बसपा उम्मीदवारों के समर्थन में ताबड़तोड़ जनसभा कर रही हैं। जिसके बाद से यूपी के सियासी समीकरण बदल से गए हैं।
बसपा सुप्रीमो मायावती पर अब तक विपक्ष यह आरोप लगाता रहा हैं की बहनजी चुनाव में कही नहीं हैं। लेकिन मायावती ने आगरा जनसभा में यह बोल कर विरोधियो के मुँह बंद कर दिए की वे पिछले 1 साल साल से लखनऊ में हैं और यहाँ रहकर बूथ स्तर की तेयारिया कर रही थी और पार्टी को बूथ स्तर पर मजबूत बनाने का काम कर रही थी।
बसपा का अपना एक मजबूत कैडर वोट बैंक हैं जिसे कोई राजनितिक पंडित भी ख़ारिज नहीं कर सकता। यही वजह हैं की जो बसपा अब तक रेस में नहीं थी उसे मेनस्ट्रीम मिडिया भी रेस में बता रहा हैं।
मायावती का कांशीराम पर भरोसा –
जब बामसेफ, DS4 और बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम बहुजन मूवमेंट के लिए देशभर में जाने लगे तब कांशीराम ने उत्तरप्रदेश का जिम्मा मायावती को सौंप दिया। मायावती के पास सांगठनिक अनुभव और प्रशासनिक अनुभव था जिसकी बदौलत 1990 के दशक में वह पार्टी को बदल पाईं थी. बाद में कांशीराम ने मायावती की कुशल क्षमता को देखते हुए उन्हे अपना राजनितिक वारिस घोषित कर दिया।
2014 के परिणामों से असंतोष मायावती ने लखनऊ में डाला डेरा –
2014 लोकसभा चुनावो में बसपा को देशभर में 4.2 प्रतिशत वोट मिला था लेकिन वे अपने गढ़ यूपी में भी एक भी सीट नहीं जीत पायी। जबकि बसपा इस चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यूपी की 80 में से 33 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. 2014 लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों ने बसपा सुप्रीमो मायावती को सोचने पर मजबूर कर दिया। निर्वाचन आयोग ने जैसे ही यूपी चुनाव के परिणामों की पुष्टि की वैसे ही मायावती सोफे से उठ गयी और कहा – मै लखनऊ जा रही जा रही हूँ। जिसके बाद 19 मई को ही मायावती ने लखनऊ पहुंचकर बसपा की 75 समितियों को भंग कर दिया और दोबारा नई कार्यकारिणी बनाई।
2017 की हार के बाद से ही मायावती ने 2022 की रणनीति बनानी तैयार कर दी थी, जिसका जिक्र वे अब उनके हर भाषण में करती हैं। एक समय प्रधानमंत्री पद की प्रबल दावेदार मायावती अपने कोर वोट बैंक के साथ दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ के साथ फिर 2007 की तरह सत्ता पर काबिज होना चाहती हैं जहा उनका मुकाबला केंद्र और राज्य में स्थापित भाजपा सरकार दोनों से हैं। क्योकि बसपा देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी हैं।
बसपा सोशल मिडिया पर कम रहती हैं इस सवाल के जवाब में बसपा के कार्यकर्ताओ ने हमारी टीम को बताया की ‘‘फेसबुक और ट्वीटर एलीट वर्ग के लोगों के लिए हैं. लेकिन व्हाट्सएप का इस्तेमाल ग्रमीण इलाकों के युवा भी करते हैं.’’ जिसे हम अपना सोशल मिडिया का हथियार बना रहे हैं। उन्होंने कहा की हम भाजपा की तरह दिखावा नहीं करते जबकि हम जमीन पर मजबूती के साथ हैं।
अब तक यूपी में दो चरण के मतदान हो चुके हो चुके हैं। अब यह तो 10 मार्च को चुनाव परिणाम से पता चलेगा की देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में मायावती का हाथी दौड़ेगा या अखिलेश की साईकिल या फिर एक बार भाजपा का कमल खिलेगा।
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